UP Lok Sabha Election Results 2019: भाजपा ने रुहेलखंड में रचा नया इतिहास, मंडल की पांचों सीटों पर किया कब्जा
मंडल के पांच संसदीय क्षेत्र और हर सीट का अलग राजनीतिक महत्व। सही मायने में 17 वीं लोकसभा में इस क्षेत्र से जो चेहरे चुने जाएंगे वे नया इतिहास रचेंगे।
बरेली, जेएनएन। मंडल के पांच संसदीय क्षेत्र और हर सीट का अलग राजनीतिक महत्व। सही मायने में 17 वीं लोकसभा में इस क्षेत्र से जो चेहरे चुने गए, उन्होंने नया इतिहास रच दिया। रुहेलखंड की पांचों सीटों पर भाजपा प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है। इस बार पांचों सीटे भाजपा के खाते में आ गई है जिससे रुहेलखंड की राजनीति के इतिहास का नया अध्याय जुड़ गया। क्योंकि राममंदिर लहर में भी मंडल की पांचों सीटें बीजेपी नहीं जीत पाई थी। वहीं, 2014 की मोदी लहर में भी भाजपा बदायूं के सपाई किला भेदने से चूक गई थी। मगर इस बार सपाई किला भी ढह गया। बदायूं में भाजपा प्रत्याशी ने करीबी मुकाबले के बाद गठबंधन प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को करीब 18 हजार वोटों से हरा दिया है।
बरेली: 8 वीं बार संसद का द्वार, टूटा रिकॉर्ड
संसद में सात कार्यकाल हो गए, संतोष गंगवार सदन में बरेली का प्रतिनिधित्व करते आ रहे। वर्ष 2009 का चुनाव छोड़ दें तो हर बार जनता ने उन पर भरोसा किया। कभी बड़ा बाजार में दुकान चलाने वाले संतोष गंगवार जब राजनीति में आए तो प्रतिद्वंद्वी ही नहीं, अपनी पार्टी के नेता भी उनसे पीछे छूट गए। इस बार वे आठवीं बार जीत कर संसद पहुंचे हैं। साथ ही एक ऐसा इतिहास बनाया है जो अब तक बरेली के किसी जनप्रतिनिधि के नाम नहीं है। गठबंधन के भगवत सरन गंगवार से उनकी सीधी टक्कर थी। भगवत ने इससे पहले भी लोकसभा चुनाव लड़ा था, मगर सफल नहीं हुए थे।
बदायूं: पहली बार सपाई किला ढहाने में सफल रही भाजपा
बदायूं सीट को सपा का गढ़ कहा जाता है। धर्मेंद्र यादव यहां से लगातार दो बार के सांसद थे। इस बार जीतकर वह हैट्रिक लगना चाह रहे थे मगर मोदी नाम की ऐसी आंधी चली कि भाजपा पहली बार सपाई किले में सेंधमारी करने में सफल हो गई। यहां से प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य ने गठबंधन प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को करीब 18 हजार वोटों से हरा दिया। संघमित्रा सियासी करियर पहले ही शुरू कर चुकी हैं। दो चुनाव लड़ चुकी हैं मगर जीत नहीं सकीं। मगर इस बार सपा का किला भेदकर उन्होंने सबको चौंका दिया।
पीलीभीत: वरुण की 2 सरी पारी
मेनका गांधी के नाम के साथ पीलीभीत को भाजपा का गढ़ कहा जाता है। उनके बेटे वरुण गांधी इस बार दूसरी पारी खेलने के लिए संसदीय क्षेत्र में आए हैं। वर्ष 2009 में वह चुनाव जीते थे, उसके बाद सुल्तानपुर से जीते। इस बार दोबारा पीलीभीत से संसद तक पहुंचने में कामयाब रहे। चेहरा बदलने के बावजूद क्षेत्र में भाजपा और मेनका-परिवार का नेटवर्क मजबूती से टिका रहा, इसे रिकॉर्ड ही कहा जाएगा। साथ ही वरुण गांधी के नाम भी अब तक अजेय रहने का रिकॉर्ड दर्ज हो गया। वह तीसरी बार लगातार सांसद चुने गए हैं।
आंवला::
आंवला लोकसभा सीट का हमेशा ही अपना मिजाज रहा है। कभी अगड़ों की राजनीति का केंद्र रही इस सीट पर ठाकुर प्रत्याशियों से सबसे ज्यादा राज किया। भाजपा के दिग्गज राजवीर सिंह हों या जदयू और फिर सपा नेता रहे सर्वराज सिंह। दोनों की जीत हार के बीच ही आंवला का भाग्य बनता बिगड़ता रहा। सियासी समीकरण बदले 2009 से। तब कांग्रेस की हवा के बावजूद पीलीभीत सीट छोड़कर आंवला आईं मेनका गांधी ने सर्वराज को शिकस्त देकर भाजपा के लिए जमीन तैयार की। तब कांधरपुर की गलियों से निकले धर्मेंद्र कश्यप सपा के टिकट पर मैदान मेें उतरे और बेहद करीबी अंतर से हार गए। तब, धर्मेंद्र बेशक हार गए थे मगर उन्होंने अपनी और कश्यप बिरादरी की सियासी ताकत का अहसास करा दिया। पांच साल वनवास काटने के बाद मौका 2014 का आया। सपा में उपेक्षित महसूस कर रहे धर्मेंद्र भाजपा में चले गए। पार्टी ने न केवल भरोसा जताया बल्कि मेनका गांधी की पीलीभीत वापसी के बाद उन्हें आंवला से मैदान में उतार दिया। मोदी सुनामी का असर और जातीय समीकरण...दोनों का तालमेल काम आया और धर्मेंद्र पहली बार संसद पहुंच गए। जीत का अंतर भी कम नहीं था। एक लाख 30 हजार के पार...। दूसरी बार भी धर्मेंद्र अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे।
शाहजहांपुर: मंडल में सबसे बड़ी जीत
इस बार सबसे दिलचस्प चुनाव शाहजहांपुर सीट पर था। भाजपा से अरुण सागर और गठबंधन से अमर चंद्र जौहर, दोनों सजातीय प्रत्याशी पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े। इन्हीं के बीच सीधा मुकाबला होने की आशंका थी। मगर पहले ही राउंड की मतगणना के बाद भाजपा एक तरफा जीत मिलने का अहसास हो चला, क्योंकि वोटों का अंतर काफी था। वहीं, अरुण सागर ने वोट के मामले में मंडल में संतोष और वरुण जैसे बड़े चेहरों को पीछे छोड़ दिया और करीब 268718 वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की। खास बात यह है कि उन्हें इस सीट से केंद्रीय मंत्री कृष्णाराज का टिकट काटकर उतारा गया था। पार्टी ने उनपर जो विश्वास जताया था, उसपर वह पूरी तरह से खरे उतरते नजर आए।
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