खाना लेकर आए बेटेे को पिता ने पहले दुलारा फिर अस्पताल की चौथी मंजिल से फेंक दिया

Father jumped from hospital with son नौ वर्षीय दिव्यांश को मौत अस्पताल खींच लाई। 15 जून को दीपक के भर्ती होने के बाद बेटा दिव्यांश और छह वर्षीय बेटी अर्पिता घर पर थी। दीपक की बहन आरती बेटे आयुष के साथ उसे खाना देने पहुंचती।

By Samanvay PandeyEdited By: Publish:Sat, 19 Jun 2021 04:34 PM (IST) Updated:Sat, 19 Jun 2021 04:34 PM (IST)
खाना लेकर आए बेटेे को पिता ने पहले दुलारा फिर अस्पताल की चौथी मंजिल से फेंक दिया
दीपक ने बेटे के बगैर मन न लगने का हवाला दे अपने साथ ही उसे लिया था रोक।

बरेली, जेएनएन। Father jumped from hospital with son : नौ वर्षीय दिव्यांश को मौत अस्पताल खींच लाई। 15 जून को दीपक के भर्ती होने के बाद बेटा दिव्यांश और छह वर्षीय बेटी अर्पिता घर पर थी। दीपक की बहन आरती बेटे आयुष के साथ उसे खाना देने पहुंचती। दीपक के साथ रात में उसकी मां चंद्रावती रुकती। 17 जून को दीपक ने मम्मी से कहा कि दिव्यांश की बड़ी याद आ रही है। दीदी से कह दो शाम को जब खाना लाएंगी तब दिव्यांश को भी लेते आएंगी। इसके बाद शाम को दिव्यांश बुआ के साथ अस्पताल पहुंच गया।

दिव्यांश फूफा रामअवतार, बुआ आरती, भाई आयुष के साथ अस्पताल पहुंचा था। दो दिन बाद दीपक ने जब बेटे को देखा तो गले से लगा लिया। दिव्यांश पापा व भाई आयुष व दादाी चंद्रावती के साथ खेलता रहा। घर लौटने की बारी हुई तो आरती ने दीपक से कहा अच्छा अब हम लोग चलते हैं, सुबह आएंगे। वह साथ में दिव्यांश को भी ले जाने लगीं। इस पर दीपक ने कहा कि इसे मेरे पास ही रोक दीजिए। मना करने के बाद जब दीपक नहीं माना। दीपक के साथ उसकी मां चंद्रावती व बेटा दिव्यांश रुक गया। रात में दिव्यांश पापा के साथ ही सोया। सुबह नाश्ता पानी हुआ। आयुष के साथ दिव्यांश खेलता रहा। आयुष कमरे में बेंच पर बैठ मोबाइल चला रहा था, इसी दौरान बेटे से बोलते-बतलाते दीपक आयुष की अंगुली पकड़ उसे बाहर ले गया। वह बेटे को खूब दुलारा। छज्जे पर बैठाकर भी दुलारने लगा। दुलारते-दुलारते ही दीपक ने दिव्यांश को नीचे फेंक दिया।

अचानक कोई गिरा...फिर कोई गिरा, मैं हो गया बेहोश : घटनास्थल गार्ड रुम के सामने का है। ड्यूटी पर गार्ड रामप्रकाश तैनात थे। वह गार्ड रुम के बाहर कुर्सी पर बैठे हुए थे। रामप्रकाश बताते हैं कि कुर्सी पर बैठा हुआ था। अचानक से कोई गिरा, इससे मैं औंधे मुंह गिर गया। जब तक कुछ समझ पाता फिर कोई गिरा। मैं बेहोश हो गया। इसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ नहीं पता। दिव्यांश के गार्ड रामप्रकाश के ऊपर गिरने से उनके गर्दन व सिर पर चोट आई है। वह गंगाशील अस्पताल में ही भर्ती है।

कमरे में था भांजा, सुनी थी भाई की चीख : घटना के दौरान दीपक का 18 वर्षीय भांजा आयुष कमरे में था। दिव्यांश व आयुष दोनों मोबाइल पर गेम खेल रहे थे। दीपक जब बेटे को बाहर घुमाने की बात कह उसे साथ बाहर ले गया तब मोबाइल आयुष ने ले लिया और वार्ड की ही बेंच पर बैठकर चलाने लगा। दीपक ने जब दिव्यांश को फेंका तब बचने के लिए वह चीखा। भाई आयुष चिल्लाया...लेकिन, फिर वह न बोल सका। आयुष कहता है कि दिव्यांश की चीख सुन बाहर दौड़ा। जब तक बाहर पहुंचा तब तक मामा व भाई दोनों नीचे जमीन पर पड़े हुए थे। दिव्यांश की मौत हो चुकी थी। मामा की सांस चल रही थी, लेकिन उनकी भी मौत हो गई।

नाती के लिए अभी तो लाई थी कक्षा चार की किताबें : बेटे और नाती के वियोग में चंद्रावती का बुरा हाल है। कहतीं हैं कि अभी तो कक्षा चार में नाती का एडमिशन कराया था। किताबें लाईं थी। अब वह किताबे कौन पढ़ेगा। कहती हैं कि मेरा तो सबकुछ खत्म हो गया। दिव्यांश की बहन छह वर्षीय अर्पिता को पता भी नहीं कि अब उसका भाई नहीं रहा। अर्पिता कहती है कि दादी पापा अस्पताल में हैं लेकिन, भैया कहां हैं। अब उसे मैं क्या जवाब दूं।

एक माह से मायके में है पत्नी कंचन, दीपक खुद गया था छोड़ने : वंशीनगला की रहने वाली कंचन के साथ वर्ष 2008 में दीपक की शादी कंचन के साथ हुई थी। वर्ष 2012 में दीपक एक बेटे के पिता बन गए। इसके बाद वर्ष 2015 में बेटी हुई। उनके मुताबिक, दीपक शुरुआत में थोड़ी ही शराब पीछे थे लेकिन, जैसे-जैसे वक्त बीतता गया। वह शराब के आदी होते चले गए। पति की शराब छूट जाए इसके लिए पत्नी ने हर जतन किए। मन्नतें मांगी, खुद दीपक को वह साथ ले जाती। बावजूद उनकी शराब नहीं छूटी। एक माह पहले खुद दीपक उसे मायके छोड़कर आया था।

शराब पीकर करता था झगड़ा, पत्नी ने आने से कर दिया था मना : पत्नी को छोड़ने के तीसरे दिन ही दीपक कंचन को लेने घर गया लेकिन, कंचन ने कहा कि शराब कब छोड़ोगे। जब शराब छोड़ोगो तभी घर चलेंगे। तूल-तकरार के बाद भी जब कंचन दीपक के साथ नहीं गई तब वह लौट गया। पांच दिन बाद दीपक फिर ससुराल पहुंचा और अपने साथ बच्चों को ले आया। इस दौरान दोनों बच्चे बुआ आरती के घर भी रहते और दादी के साथ भी रहते। दीपक के भर्ती होने के बाद भी कंचन उसे देखने नहीं पहुंची थी। दीपक की मौत के बाद वह घर पहुंची।

कंफेक्शनरी की दुकाने चलाते थे दीपक, बीते साल बंद कर दी थी दुकान : दीपक की शिव मंदिर दुर्गानगर में खुद की दो दुकानें हैं। पहले वह कंफेक्शनरी की दुकान चलाता था। पांच साल तक उसने दुकान चलाई। बीते तीन साल पहले उसने दुकान बंद कर दी और किराए पर दे दी। एक वेल्डिंग वाले ने एक दुकान किराए पर ली जबकि दूसरी खाली पड़ी थी। शराब का दीपक इस कदर आदी हो गया था कि दुकान बंद करने के बाद उसने काम-धाम करना भी छोड़ दिया।

पैसे की नहीं थी कोई बात...सबकुछ बिक जाता, तब भी कराती बेटे का इलाज : दीपक की मां चंद्रावती कहती हैं कि पैसे की कोई बात नहीं थी। सबकुछ बिक जाता, तब भी बेटे का इलाज कराती। बताती हैं कि बेटे को शराब की लत लग गई थी लेकिन, मेरी हर बात वह कहना मानता। बस यह कहता कि शराब के लिए कुछ न कहो। जनवरी में खूब बीमार पड़ गई, दीपक ने पूर ईलाज कराया। आंखों में दिक्कत थी। डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी। फिर बेटे ने आंख का आपरेशन कराया। रोती हुई कहती हैं कि क्या यही दिखाने के लिए आंख का आपरेशन कराया था।

नहीं छूट पा रही थी शराब की लत, नशा मुक्ति केंद्र में पहले भी हो चुका था भर्ती : चंद्रावती के मुताबिक, बेटे की शराब की लत छूट जाए। इसके लिए बेटे को इससे पहले भी दो बार नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया जा चुका था। दो साल पहले जब भर्ती कराया गया तो दीपक ने चार-पांच महीने शराब नहीं पी। फिर से शराब पीने लगे तो फिर नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया। फिर शराब छूट गई। पांच-छह महीने बाद फिर से दीपक शराब पीने लगा। झगड़ा करने लगा, तभी 15 जून को उसे गंगाशील अस्पताल लेकर पहुंची थी।

मां की तरह फूट-फूटकर रोई पड़ोसन : दिव्यांश की मौत पर पर मां की तरह पड़ोसन रंजना मिश्रा मिश्रा फूट-फूटकर रोई। रंजना कहती है कि शुरू से दिव्यांश को गोद में खिलाया। कोई ऐसा दिन नहीं होता था जब वह मुझसे न मिले। घर न आए। पूरा-पूरा दिन घर रहता। वह मां जी कहकर ही पुकारता...घर के आंगन में उसकी किलकारियां गूंजती। अब तो हमारे घर का आंगन सूना हो गया। वह पूरे समय रोती रहीं।

तीन साल पहले भी कूदा था युवक : गंगाशील अस्पताल में करीब तीन साल पहले भी ऐसा हादसा हो चुका है। वाबजूद अस्पातल प्रबंधन ने सुरक्षा-व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं दिया। यदि अस्पताल प्रबंधन सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान देता तो दीपक व दिव्यांश जिंदा होते। बरहाल, इसी के चलते स्वजन अस्पताल प्रबंधन को कटघरे में खड़ा कर रहा है।

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