कई प्रदेशों में चमक रहा बरेली की मिट्टी का हुनर

रुहेलखंड की माटी का कोई सानी नहीं। 1857 की क्रांति से लेकर अबतक तमाम गौरवशाली पलों को अपने दामन में समेटे यह माटी आज भी राष्ट्रीयता की अलख जगा रही है। इस मिट्टी से बनीं कलाकृतियां मूर्तियां व दीये दूसरे प्रदेशों तक चमक बिखेर रहीं। चाइनीज पर निर्भरता अब पुरानी बात है। हमारा देसी हुनर सब पर भारी है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 24 Oct 2021 05:48 AM (IST) Updated:Sun, 24 Oct 2021 05:48 AM (IST)
कई प्रदेशों में चमक रहा बरेली की मिट्टी का हुनर
कई प्रदेशों में चमक रहा बरेली की मिट्टी का हुनर

शुभम शर्मा, बरेली: रुहेलखंड की माटी का कोई सानी नहीं। 1857 की क्रांति से लेकर अबतक तमाम गौरवशाली पलों को अपने दामन में समेटे यह माटी आज भी राष्ट्रीयता की अलख जगा रही है। इस मिट्टी से बनीं कलाकृतियां, मूर्तियां व दीये दूसरे प्रदेशों तक चमक बिखेर रहीं। चाइनीज पर निर्भरता अब पुरानी बात है। हमारा देसी हुनर सब पर भारी है। अब बस जरूरत आपके साथ की है। आइए, दैनिक जागरण की इस मुहिम के साथ हुनरमंदों का उत्साह बढ़ाएं। उनसे खरीदारी कर उनके घरों तक दिवाली की रोशनी पहुंचाएं। इस अभियान के जरिये हम रोजाना उन हुनरमंदों की जानकारी देंगे, जिन्होंने अपनी कला से मिट्टी को भी सजीव जैसा बना दिया।

कोहाड़ापीर निवासी जयंती प्रजापति ताइक्वांडो में ओपन नेशनल में स्वर्ण पदक विजेता हैं। पिता ने मिट्टी के बर्तन आदि का काम शुरू किया था। उनके बाद यह जिम्मेदारी मां सुशीला देवी ने संभाल ली थी। ताइक्वांडो खिलाड़ी जयंती ने उन्हीं से यह हुनर सीखा। कहते हैं कि विरासत में जो कला मिली है, उसे खोने नहीं देंगे। मैंने नौकरी की परवाह छोड़कर अपने काम को बढ़ावा दिया। अब तो देश के लोग देसी उत्पादों को ही वरीयता देने लगे हैं। चाइनीज मूर्तिंयों के बारे में कोई पूछता नहीं।

50 हजार से ज्यादा मूर्तियां दूसरे प्रदेशों तक भेजेंगे

जयंती का पूरा परिवार इसी काम में लगा है। दिवाली से दो महीने पहले मूर्तियां बनाना शुरू कर देते हैं। वह बताते हैं कि गुजरात, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में मिट्टी की मूर्तियों की मांग सबसे ज्यादा होती है। वहां की मिट्टी साझे में आसानी से फिट नहीं बैठती। ज्यादा लागत लगती है। ऐसी स्थिति में वहां के कारीगर हम लोगों से मूर्तियां खरीदकर ले जाते हैं। हर सीजन में करीब 50 हजार मूर्तियां तैयार कर दी जाती हैं। व्यापारी खुद आकर उन्हें ले जाते हैं। जयंती बताते हैं कि हर सीजन में करीब 60 हजार रुपये का लाभ मिल जाता है।

तीन स्थानो पर होता है काम

मिट्टी की मूर्तियां, दीये, करवा और आदि सामानों के बनने का काम शहर में प्रमुख रुप से कोहाड़ापीर के पास सुर्खा, कुदेशिया फाटक व पीलीभीत रोड पर होता है। शहर में करीब 250 से अधिक परिवारों की आजीविका इस कारोबार से चलती है।

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आइए, इनका उत्साह बढ़ाएं

कोहाड़ापीर के पास मूर्तियां बनाने जयंती दूसरे प्रदेशों तक आपूर्ति भेजते हैं मगर, अपने शहर के कम ही लोग उनके हुनर से परिचित हैं। आइए, इस त्योहार पर उनकी कला को सम्मान दें। घर में अपने देश की माटी से बने लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां लेकर आएं। इन लोगों से खरीदारी करें ताकि हमारा पैसा हमारे लोगों के बीच ही रहे। जागरण के इस अभियान पर राय या सुझाव हमें वाट्सएप कर सकते हैं। अपना नाम, पता लिखना न भूलें-

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