पीलीभीत में फसलों में कचरा कर रहा यूरिया की पूर्ति
गांव में घरों से निकलने वाला कूड़ा-कचरा लोग घूरे पर डाल आते हैं। यह घूरा जैविक खाद बनाने में बड़े काम का साबित हो रहा है।
पीलीभीत, जेएनएन। गांव में घरों से निकलने वाला कूड़ा-कचरा लोग घूरे पर डाल आते हैं। यह घूरा जैविक खाद बनाने में बड़े काम का साबित हो रहा है। प्रगतिशील किसान पुष्पजीत सिंंह इसका प्रयोग अपने खेतों में जैविक खाद के तौर पर पांच साल से कर रहे हैं। इसे डालने के बाद फिर उन्हें फसल में यूरिया का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
पूरनपुर क्षेत्र के गांव पचपेड़ा प्रहलादपुर के इस प्रगतिशील किसान ने इसका सफल प्रयोग अपने खेतों में किया है। वह परंपरागत रूप से धान, गेहूं के साथ ही केला और कटहल की खेती भी करते हैं। इन सभी फसलों में उन्होंने यही विधि अपनाई है। पुष्पजीत का कहना है कि किसी भी फसल की बुवाई से पहले वह खेतों में घूरा डाल देते हैं।
इससे जमीन के काफी अंदर पहुंच चुके केंचुआ सतह पर आने लगते हैं। जमीन के अंदर जाने और सतह पर केंचुआ के आने की प्रक्रिया 24 घंटे में ही शुरू हो जाती है। कम से कम चार सौ बार केंचुआ के बाहर आने और जमीन के अंदर जाने की प्रक्रिया चलती रहती है। घूरे में घुलमिल कर केंचुआ की यह क्रिया खेत में पर्याप्त नाइट्रोजन बना देती है। इसके बाद फिर फसल में अलग से यूरिया खाद डालने की जरूरत नहीं रह जाती है।