Subhash Chand Bose Jyanti : बरेली से रहा गहरा नाता, कर्नल अमर बहादुर तैयार करते थे आजाद हिंद फौज के रणबांकुरे

Subhash Chand Bose Jyanti 2021 आजादी के लिए संघर्ष करने वाले देश के महानायकों में शुमार हैं नेताजी यानी सुभाष चंद्र बोस। आजाद हिंद फौज के रणबांकुरे तैयार करने और युद्ध भूमि में घायल होने के बाद जवानों की रक्षा करने में भी बरेली का योगदान रहा।

By Ravi MishraEdited By: Publish:Sat, 23 Jan 2021 07:51 AM (IST) Updated:Sat, 23 Jan 2021 01:33 PM (IST)
Subhash Chand Bose Jyanti : बरेली से रहा गहरा नाता, कर्नल अमर बहादुर तैयार करते थे आजाद हिंद फौज के रणबांकुरे
बरेली से रहा गहरा नाता, कर्नल अमर बहादुर तैयार करते थे आजाद हिंद फौज के रणबांकुरे

बरेली, जेएनएन। Subhash Chand Bose Jyanti 2021: आजादी के लिए संघर्ष करने वाले देश के महानायकों में शुमार हैं नेताजी यानी सुभाष चंद्र बोस। आजाद हिंद फौज के रणबांकुरे तैयार करने और युद्ध भूमि में घायल होने के बाद जवानों की रक्षा करने में भी बरेली का योगदान रहा। सिविल लाइंस निवासी कर्नल अमर बहादुर सिंह और बिहारीपुर के पास रहने वाले झम्मनलाल वो नाम हैं, जिन्होंने आजाद हिंद फौज के जरिए देश की आजादी में योगदान दिया। ‘नेताजी’ के रहस्यमय ढंग से लापता होने पर ‘भूमिगत सुभाष’ किताब लिखने और सुभाषजी से जुड़े जिले के लोगों की जानकारी रखने वाले साहित्यकार रंजीत पांचाले ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कई बातें साझा कीं। एक रिपोर्ट..

ब्रिटिश सरकार ने बैन की थी नेताजी की किताब ‘दि इंडियन स्ट्रगल’

वीरांगना कालेज में राष्ट्रीय सेवा योजना की नोडल अधिकारी व चित्रकला की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.अनु महाजन बताती हैं कि 1930 में नेताजी यूरोप गए। वहां उन्होंने ‘दि इंडियन स्ट्रगल’ नाम से किताब लिखी। लंदन में किताब प्रकाशित हुई, जिसे ब्रिटिश सरकार ने बैन करवा दिया।

सिंगापुर में आजाद हिंदूफौज को ट्रेनिंग देते थे कर्नल अमर सिंह

स्वतंत्रता सेनानी कर्नल अमर सिंह का जन्म 27 जनवरी 1915 को वाराणसी के भदोही में हुआ था। वह पहले ब्रिटिश आर्मी में कमीशंड अफसर थे। नेताजी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने आजाद हिंद फौज ज्वाइन की। सैन्य जानकारी होने की वजह से कर्नल अमर सिंह को आजाद हिंद फौज प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी मिली। वह सिंगापुर के आजाद हिंद ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल में जवानों को प्रशिक्षित करते थे। वह बरेली के सिविल लाइंस में बनी लालकोठी में रहते थे। 20 अगस्त 2017 को 102 वर्ष की उम्र में उनका देहावसान हुआ।

घायल फौजियों को उठाते समय झम्मन लाल को लगी थी गोली

एसवी कॉलेज से कुछ दूरी पर झम्मन लाल रहते थे। पहले ये भी ब्रिटिश फौज में थे। 1942 में ये ब्रिटिश भारतीय सेना के साथ सिंगापुर गए थे। यहां जापानियों ने इन्हें बंदी बना लिया था। यहीं पहली बार नेताजी को देखा था। बाद में यह छूटे और इनका नाम झम्मन लाल ‘आजाद’ पड़ा। फिर ये आजाद हिंद फौज में सब ऑफिसर थे। आर्मी मेडिकल कोर में उनकी पोस्टिंग थी। रणजीत पांचाले बताते हैं कि एक युद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज के घायलों को उपचार के लिए ले जाते समय दुश्मन की गोली इनके भी कंधे और जांघ पर लगी थी।

बरेली में 80 साल पहले गूंजी थी ‘नेता जी’ की बुलंद आवाज

जनवरी 1941..यानी ठीक 80 साल पहले देश का वीर सपूत यानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने बरेली के डीएवी कॉलेज मैदान पर पहली और आखिरी जनसभा की थी। कांग्रेस स्टूडेंट फेडरेशन ने उन्हें आमंत्रित किया था। फेडरेशन के सचिव थे शहर के डीडीपुरम निवासी अमरनाथ अग्रवाल। समाजसेवी अमरनाथ अग्रवाल का दिसंबर 2016 में देहावसान हो गया। हालांकि उनके बेटे हर्ष अग्रवाल ने उस ऐतिहासिक जनसभा से जुड़े किस्से पिता से खूब सुने थे, जो आज भी उनके जेहन में जीवंत हैं। डीएवी कॉलेज का मैदान दिखाते हुए हर्ष बताते हैं कि सर्दी में भी विशाल जनसमूह पसीने से तर-ब-तर था। सफेद ऊनी शाल पहनकर आम लोगों की भीड़ से नेताजी मंच पर पहुंचे। 

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