पितृपक्ष में बुजुर्ग पिता को बेटे ने घर से निकाला, चार दिन से सड़क पर सो रहे पकौड़ी वाले बल्दी, जानें किसने दिया आसरा
Son Took Father Out of House in Bareilly पितृपक्ष हिंदू परंपरा में पितरों की आत्मा तृप्ति के लिए यह पक्ष बेहद ही अहम माना जाता है। ऐसे समय में एक बेटे द्वारा अपने बुजुर्ग पिता को घर से निकाले जाने का अमानवीय चेहरा सामने आया है।
बरेली, जेएनएन। Son Took Father Out of House in Bareilly : पितृपक्ष, हिंदू परंपरा में पितरों की आत्मा तृप्ति के लिए यह पक्ष बेहद ही अहम माना जाता है। ऐसे समय में एक बेटे द्वारा अपने बुजुर्ग पिता को घर से निकाले जाने का अमानवीय चेहरा सामने आया है। एक वक्त में पकौड़ी वाले बल्दी के नाम से मशहूर सड़कों पर सोये। दारोगा सिद्धांत शर्मा ने बुजुर्ग को खाना खिलवाया। उनके दाढ़ी बाल-बनवाए। उन्हें घर ले जाने का भरसक प्रयास किया लेकिन बुजुर्ग घर जाने का तैयार नहीं हुए। वृद्धाश्रम बुजुर्ग का अब नया ठिकाना है।
बरेली कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत डॉ. राहुल अवस्थी हाटमैन पुल के पास से गुजर रहे थे। उनकी नजर बुजुर्ग पर पड़ी। बुजुर्ग के पास जाकर कहा कि बाबा, यहां कैसे बैठे हो। काफी पूछने के बाद बाबा ने अपना नाम बलदेव प्रताप सक्सेना बताया। कहा कि हाफिजगंज रिठौरा का हर शख्स उन्हें बल्दी के नाम से जानता है। कभी उनकी पकौड़ियां मशहूर हुआ करती थी। शरीर ने साथ छोड़ा तो बेटे ने भी हाथ खींच लिये।
बेटे ने पीटकर घर से निकाल दिया। चार दिन से पुल के नीचे गुजर-बसर कर रहा हूं। राहुल अवस्थी ने फेसबुक पर बुजुर्ग की व्यथा कथा बयां करते हुए लिखा कि पितृपक्ष में यही दिन देखने रह गए थे। राहुल की इस पोस्ट पर नजर पड़ी आइजी रेंज रमित शर्मा की। आइजी ने तत्काल ही दारेागा सिद्धांत शर्मा को बुजुर्ग की मदद के लिए भेजा। देररात सिद्धांता शर्मा बुजुर्ग के पास पहुंचे, उन्हें बहुत मनाया लेकिन वह घर जाने काे राजी नहीं हुए। कहा कि बेटा पीटता है, जाकर करूंगा क्या। मैले-कुचैले बुजुर्ग के लिए सिद्धांत ने नए कपड़े मंगवाए। दाढ़ी बाल बनवाए। फिर प्रेमनगर स्थित वृद्धाश्रम में बुजुर्ग को शिफ्ट किया।
भतीजी ने पहचानने से कर दिया इन्कारः बुजुर्ग काया पर रिश्तों की आमनवीयता की दोहरी मार तब पड़ी जब उनकी भतीजी ने ही उन्हें पहचानने से इन्कार कर दिया। पुलिस के मुताबिक, बुजुर्ग बल्दी हार्टमैन पुल के पास जहां गुजर-बसर कर रहे थे। वहीं पास में उनकी भतीजी रहती है। उन्हें उम्मीद थी कि भतीजी उन्हें देखेगी तो वह मदद के लिए जरूर आएगी। भतीजी आई तो लेकिन, उसने बुजुर्ग को पहचानने से इन्कार कर दिया। भतीजी के इस जवाब पर बुजुर्ग की आंखों से बरबस ही आंसू बहने लगे। ऐसे समय में दारोगा सिद्धांता शर्मा ने बेटे की भूमिका निभाई। हर वह फर्ज निभाया जो एक संस्कारी बेटा पिता के लिए करता है।