आर्थिक तंगी में हुनर बना सहारा
पांच साल पहले दीपावली से कुछ महीने पहले पति को काम न मिलने से परिवार पर आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ। कुछ दिन तो पड़ोसियों से उधार लेकर काम चलाया लेकिन मुश्किलों ने पीछा नहीं छोड़ा। तब बचपन में पिता से सीखा हुनर काम आया। पति के साथ मूर्तियां बनाना शुरू किया। इससे त्योहार आने पर उसे उत्सव की तरह मनाने में सहायता मिली।
जागरण संवाददाता, बरेली: पांच साल पहले दीपावली से कुछ महीने पहले पति को काम न मिलने से परिवार पर आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ। कुछ दिन तो पड़ोसियों से उधार लेकर काम चलाया, लेकिन मुश्किलों ने पीछा नहीं छोड़ा। तब बचपन में पिता से सीखा हुनर काम आया। पति के साथ मूर्तियां बनाना शुरू किया। इससे त्योहार आने पर उसे उत्सव की तरह मनाने में सहायता मिली। विषम परिस्थिति में बच्चों को किसी के आगे हाथ न फैलाने पड़े, इसके लिए वह बच्चों को भी यह हुनर सिखा रही हैं। ऐसे में हमारा भी दायित्व बनता है कि उनके हौसले को आगे बढ़ाएं। इनकी मूर्तियों को खरीदेंगे तो ऐसे परिवारों का मनोबल बढ़ेगा।
बानखाना नीम की मठिया निवासी लक्ष्मी प्रजापति अब कुंभकार हो गई हैं। उन्होंने बचपन में अपने पिता से मूर्तियां बनाना सीखा था, लेकिन शादी हो जाने के बाद उन्होंने यह काम बंद कर दिया। बताया कि उनके पति शंकर मिस्त्री हैं। पांच साल पहले दीपावली से ही दो-तीन महीने पहले परिवार पर आर्थिक संकट आया तो पड़ोसी से उधार लेकर मिट्टी और मूर्ति बनाने की सामग्री खरीदी और हुनर को कमाई का जरिया बनाया। बताया कि जब तक त्योहार आता, उससे पहले ही उधारी चुका दी और खुशहाली से त्योहार भी मनाया। अगर यह हुनर बचपन में न सीखा होता तो गुजारा करना बहुत मुश्किल होता।
मुहल्ले के बच्चे भी आते हैं सीखने
लक्ष्मी बताती हैं कि वह अपने बच्चों को शिक्षा के साथ ही मिट्टी का हुनर भी सिखा रही हैं। उनका बेटा देव और दिव्यांशु दोनों मूर्ति बनाने और उसमें रंग भरने में उनकी मदद करते हैं। आसपास के बच्चे भी उनके घर मूर्तियां बनाने की कला सीखने आते हैं।