कोरोना काल में नौकरी छूटने पर एक हजार रुपये में शाहजहांपुर के युवक ने शुरू किया रोजगार, जानिये कितनी हो रही कमाई
बेशक कोरोना महामारी व आपदा है। वायरस संक्रमण से हजारों जान तथा लॉकडाउन व कर्फ्यू में तमाम लोगों की नौकरी भी जा चुकी है। रोजी रोटी छिन जाने से हताश किस्मत को कोस रहे हैं। लेकिन कुछ लोग संकटकाल में घबराए नहीं। हिम्मत व नवाचार से आपदा को अवसर बनाया।
बरेली, जेएनएन। (नरेंद्र यादव)। बेशक, कोरोना महामारी व आपदा है। वायरस संक्रमण से हजारों जान तथा लॉकडाउन व कर्फ्यू में तमाम लोगों की नौकरी भी जा चुकी है। रोजी रोटी छिन जाने से हताश किस्मत को कोस रहे हैं। लेकिन कुछ लोग संकटकाल में घबराए नहीं। हिम्मत व नवाचार से उन्होंने आपदा को अवसर बना लिया।शाहजहांपुर की तहसील सदर के गांव कहिलिया निवासी राहुल राठौर इसकी मिसाल है। गत वर्ष लॉकडाउन में नमकीन फैक्ट्री के मालिक ने उत्पादन बंद होने पर छुट्टी कर दी। पिता रामऔतार चार बीघा पैतृक खेती की वजह से अपेक्षित मदद नहीं कर सके। लेकिन स्नातक राहुल व उनकी पत्नी विनीता ने हिम्मत नही हारी। दोनों ने मिलकर एक हजार की लागत में आठ से दस हजार की मासिक आमदनी का जरिया ढूंढ निकाला।
फल की पेटी से मिली मोटरसाइकिल को दुकान में तब्दील करने की प्रेरणा: सकारात्मक सोच से राहुल को रोजगार का उपाय मिल गया। दरअसल परेशान राहुल लॉकडाउन में फेरी लगाकर सब्जी बिक्री की सोची। इसके लिए वह रोजा मंडी सब्जी खरीदने गए। वापसी में उन्होंने एक पेटी संतरा खरीद लिए। पेटी देख राहुल के दिमांग की घंटी बजी। उन्होंने मोटरसाइकिल की सीट पर जाली की आलमारीनुमा पेटी लगवाने का ठान ली। पत्नी ने पास रखे एक हजार रूपये विचारों को बल दे दिया। इसके बाद राहुल को मंजिल मिल गई।
जाली की पेटी में नमकीन, बिस्कुट, खूंटी में टांग लेते एक दर्जन सामान के बैग: राहुल ने दो फीट चौड़ी दो फीट लंबी व डेढ़ फीट ऊंची जालीदार पेटी बनवाने के साथ तीन साइडों में आठ खूंटी लगवा ली। इस पेटी को रबड़ से खींचकर मोटरसाइकिल की सीट पर बांध लिया। पेटी में नमकीन, बिस्कुट समेत समेत छोटा सामान् भर लेते है। खूंटियों में पोप्स, क्रैक्स, चिप्स, भुजिया समेत खाद्य पदार्थो से भरे बैग टांग लेते। पड़ोसी गांव में फेरी लगाकर रोजाना करीब 300 से 400 रुपये की शुद्ध कमाई कर लेते हैं। साल भर में राहुल ने बेहतर सेवा से नियमित ग्राहक भी बना लिए है। उनकी मांग पर सब्जी, अचार समेत हर जरूरत का सामान घर बैठे मुहैया कराकर बेहतर जिंदगी जी रहे हैं।
वस्तु विनिमय के सिद्धांत से भी चलती है दुकान: किक से स्टार्ट होने वाली राहुल की चलती फिरती दुकान वस्तु विनिमय का भी प्रतीक है। पैसे न होने पर राहुल किसानों को गेहूं, आटा, चावल, दाल, आलू के बदले भी सामान मुहैया कराते हैं। इससे किसानाें भी सुविधा हो रही है, राहुल को भी घरेलू जरूरत के लिए गल्ला मिल जाता है।