संविधान के प्रारुप में बरेली के सतीश चंद्र व दामोदर स्वरुप सेठ ने निभाई थी अहम भूमिका Bareilly News

रुहेलखंड का नेतृत्व कर रहे थे सतीश चंद्र और दामोदर स्वरूप सेठ। दोनों शख्सियत ने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

By Abhishek PandeyEdited By: Publish:Mon, 27 Jan 2020 11:23 AM (IST) Updated:Mon, 27 Jan 2020 05:53 PM (IST)
संविधान के प्रारुप में बरेली के सतीश चंद्र व दामोदर स्वरुप सेठ ने निभाई थी अहम भूमिका Bareilly News
संविधान के प्रारुप में बरेली के सतीश चंद्र व दामोदर स्वरुप सेठ ने निभाई थी अहम भूमिका Bareilly News

जेएनएन, बरेली : आजादी की लड़ाई में रुहेलखंड की भूमिका काफी अहम रही है। कई क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। आजादी के बाद भी रुहेलखंड ने देश के विकास में काफी अहम योगदान दिया। संविधान को बनाने में लगभग तीन साल लगे। इस बीच संविधान सभा की 146 बैठक हुई। 369 प्रतिनिधि शामिल थे जो देश के हर कोने से थे। हर वर्ग का नेतृत्व इसमें शामिल था और इसी में रुहेलखंड का नेतृत्व कर रहे थे सतीश चंद्र और दामोदर स्वरूप सेठ। दोनों शख्सियत ने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

संविधान के कई विषयों पर दिया था सुझाव : दामोदर सेठ ने संविधान के प्रारूप पर बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर को कई विषयों पर सुझाव दिया था जिसे स्वीकार भी किया गया। दामोदर स्वरूप का जन्म यहां 1896 में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा राजकीय हाईस्कूल से हुई। इसके बाद वकालत की पढ़ाई के लिए वह इलाहाबाद (प्रयागराज) गए। पढ़ाई के बाद वह चंद्रशेखर आजाद की हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी से जुड़ गए। सेठ साहब ने आजादी की लड़ाई में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। 1925 के काकोरी कांड में भी उनका नाम शामिल था। बाद में वह कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए।

संविधान सभा में बनाया गया था सदस्य : कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य भी रहे और उन्हें संविधान सभा में सदस्य बनाया गया। सेठ काफी मुखर वक्ता थे यही कारण है कि संविधान सभा में रहते हुए उन्होंने कई बार बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के कई मतों का विरोध भी किया। उनका मानना था कि यह संविधान सभा देश का वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं करता था। इसलिए इसको भंगकर एक बड़ी सभा बनाई जाए। अनुच्छेद 22 और 30 में सुधार के लिए भी सभा के समक्ष अपने प्रस्ताव रखे। उनका मानना था कि पिछड़ों को संविधान के माध्यम से न्याय मिलना चाहिए। 1965 में उनका निधन हो गया।

1958 में रक्षा राज्य मंत्री रहे थे सतीश चंद्र  : शहर से संविधान सभा के दूसरे सदस्य सतीश चंद्र रहे। उनका जन्म 1917 में बरेली में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा लोकमान्य तिलक विद्यालय बरेली से की। सतीश चंद्र ने आजादी की लड़ाई भी लड़ी। वह संविधान सभा के अलावा कई महत्वपूर्ण कमिटी के सदस्य रहे। 1952 में बरेली से पहली लोकसभा के सदस्य चुने गए। 1958 में उन्हें रक्षा राज्य मंत्री बनाया गया।

इंदिरा गांधी का चुनाव रद कर बचाया लोकतंत्र लोकतंत्र और गणतंत्र को बचाए रखने में बरेली का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर आरोप था कि उन्होंने गलत तरीके से चुनाव जीता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह मामला न्यायमूर्ति बीपी सिन्हा की कोर्ट में पहुंचा। न्यायमूर्ति सिन्हा बरेली के ही रने वाले थे। यहां बरेली की जिला कोर्ट में वकालत भी की थी। न्यायमूर्ति सिन्हा ने मामले की सुनवाई करते हुए इंदिरा गांधी पर लगे आरोपों को सही पाया और उन्होंने रायबरेली से उनका चुनाव रद कर दूसरे उम्मीदवार रहे राजनारायण को विजयी घोषित कर दिया। इसी के बाद इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी। - डॉ. अमित सिंह, विधि विभाग, रुहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली

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