Saheed Saraj Singh : पूरी रात हाथ में पति की फोटो लेकर रोती रहीं रंजीत, देखती रही बलिदानी का चेहरा
Saheed Saraj Singh सारज को बलिदान हुए पांच दिन बीत चुके हैं। उनकी अस्थियां भी विसर्जित हो चुकी हैं लेकिन रंजीत से वह एक पल भी दूर नहीं हुए हैं। आंखों से आंसू सूख चुके हैं लेकिन वह अब भी पति की याद में बिलख रहीं हैं।
बरेली, जेएनएन। Saheed Saraj Singh : सारज को बलिदान हुए पांच दिन बीत चुके हैं। उनकी अस्थियां भी विसर्जित हो चुकी हैं, लेकिन रंजीत से वह एक पल भी दूर नहीं हुए हैं। आंखों से आंसू सूख चुके हैं, लेकिन वह अब भी पति की याद में बिलख रहीं हैं। गुरुवार को पूरी रात पति की फोटो देखकर रोती रहीं। मां व बहन उन्हें समझाने की कोशिश करते रहे, पर वह कुछ सुनने को तैयार नहीं।
सारज सिंह के जाने के बाद परिवार सदमे में है। सबसे ज्यादा उनकी पत्नी रंजीत कौर की हालत खराब है। रंजीत की मां कुलदीप कौर ने बताया कि बेटी पूरी रात सोई नहीं। वह अपनी दूसरी बेटी रजवंत कौर के साथ उसे संभालने की कोशिश करती रहीं, पर कोई फायदा न हुआ। पानी तक मुश्किल से पी रही है। यही हाल घर के अन्य सदस्यों का है। वे स्वयं को को सामान्य दिखाने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन जो उन पर बीत रही है वे ही जानते हैं।
पीलीभीत से हुई पढ़ाई
घर के बाहर अखबार में खबरें पढ़ रहे सुखवीर सिंह ने बताया कि सारज का जन्म 14 अप्रैल 1994 में हुआ था। सारज की पढ़ाई पीलीभीत के मरौरी स्थित गुरु गोविंद सिंह इंटर कालेज में हुई। 12वीं पास करने के बाद सेना में भर्ती की तैयारी शुरू कर दी। 2015 में सेना में चयन होने के बाद रांची के रामगढ़ में प्रशिक्षण प्राप्त किया। सुखवीर ने बताया कि सारज की पहली पोस्टिंग अरुणाचल प्रदेश में हुई। उसके बाद फरीदकोट ओर फिर राजौरी जिला में 16 आरआर में तैनात हुए।
भर्ती के लिए छोड़ी पढ़ाई
सुखवीर सिंह ने बताया सारज सिंह को वे लोग आगे तक पढ़ाना चाहते थे ताकि वह कुछ और नौकरी या व्यावसाय करें, लेकिन उन्हें सेना में भर्ती होने का जुनून था। इसलिए इंटर के बाद पढ़ाई छोड़ भर्ती की तैयारी में जुट गए। जब वे लोग कुछ समझाते तो कहते उन्हें सेना की वर्दी पहननी है।
रहेगी न मिल पाने की कसक
मायूस बैठे सुखवीर ने बताया कि नौकरी के कारण तीनों भाई एक साथ लंबे समय से नहीं मिले थे। सारज से उन लोगों का विशेष लगाव था। इसलिए लगातार प्रयास कर रहे थे कि किसी तरह एक साथ छुट्टी मिल जाए। कुपवाड़ा में नेटवर्क न होने के कारण बात भी कम हो पाती थी। बोले सारज तो बलिदान हो गए। उनसे न मिल पाने की कसक ताउम्र रहेगी। अब उनसे पता नहीं कब मिल पाएंगे। यह कहकर उनकी आंखों में आंसू आ गए।