राइस मिलर्स का बड़ा ऐलान, बोले- पुरानी क्रय नीति पर नहीं करेंगे धान की कुटाई, दबाव बनाया तो मिल बंद कर सरकार को सौंप देंगे चाबियां
Rice Millers Announcement धान कुटाई को लेकर राइस मिलर्स ने बड़ा फैसला लिया है। जिसके चलते राइस मिलर्स ने पुरानी क्रय नीति पर धान की कुटाई न करने का निर्णय लेते हुए ऐलान कर दिया है कि वह पुरानी क्रय नीति पर कुटाई नहीं करेंगे।
बरेली, जेएनएन। Rice Millers Announcement : धान कुटाई को लेकर राइस मिलर्स ने बड़ा फैसला लिया है। जिसके चलते राइस मिलर्स ने पुरानी क्रय नीति पर धान की कुटाई न करने का निर्णय लेते हुए ऐलान कर दिया है कि वह पुरानी क्रय नीति पर कुटाई नहीं करेंगे। शाहजहांपुर और पीलीभीत के राइस मिलर्स ने संयुक्त रूप से यह फैसला एक बैठक में लिया। राइस मिलर्स का कहना है कि अगर सरकार उन पर धान कुटाई का दबाव बनाती है तो वे अपनी मिलों को बंद करके उसकी चाबियां सरकार को सौंपने पर मजबूर होंगे।
पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष बाेले- तब 20 रुपए थी मजदूरी
पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष रमाकांत मोदी ने कहा कि सरकार ने आज से चालीस साल पहले धान की कुटाई का रेट तय किया था। उस दौर में सरकार ने मिल मालिकों को धान की कुटाई दस रूपए प्रति क्विंटल तय की थी। तब मजदूरी 20 रूपए थी। आज मजदूरी बढ़कर 300 रुपए हो गई है। डीजल का रेट भी 100 रुपए लीटर के आस पास पहुंच रहा है, लेकिन कुटाई का रेट दस रूपए प्रति क्विंटल ही मिल रहा है। जिसके कारण परेशानी उत्पन्न हो रही है।
अध्यक्ष हरि किशाेर ने किया रिकवरी का विराेध
अध्यक्ष हरिकिशोर गुप्ता ने 67 प्रतिशत रिकवरी का विरोध किया। कहा कि 60 फीसद रिकवरी के साथ धान की कुटाई 250 रुपये प्रति क्विंटल मिलने पर ही सरकारी धान की कुटाई की जाएगी। बैठक में पीलीभीत से अजमेर सिंह छीना, मोहन मित्तल, संजीव मिश्र, रामसेवक, रोमी, सुखदेव सिंह, हर्ष गुप्ता, सोनू, गगनदीप, पवन कटियार, जसपाल मल्होत्रा आदि मौजूद रहे ।
कस्टम मिलिंग काे लेकर पहले भी दे चुके हैं ज्ञापन
कस्टम मिलिंग की मजदूरी दस रुपये से बढ़ाकर 250 रुपये प्रति क्विंटल करने के लिए पीलीभीत के राइस मिलर सरकार को संबोधित ज्ञापन सौंप चुके है।राइस मिलर्स भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने सहित किसानों को उनकी उपज का अधिकतम मूल्य मिल सके।इसके लिए भी ज्ञापन दे चुके है। धान की खरीद व्यवस्था सहकारी समितियों, खाद्य एवं रसद विभाग के स्थान पर आढ़तियों, मिलरों के माध्यम से कमीशन पर की जाए। इन दोनों व्यवस्थाओं से परिवर्तन के साथ ही उद्योग को भी जीवनदान मिलने की बात कह चुके हैं।