बरेली में रात के कर्फ्यू ने 109 साल के इतिहास में दूसरी बार रमजान माह में गुलजार रहने वाले बाजारों को सूना किया
साल भर में एक बार आने वाले मुकद्दस रमजान के महीने को लेकर लोगों में गजब उत्साह रहता है। पहले से ही लोग घरों और मस्जिदों को सजाने लगते हैं। इस वक्त कोरोना के कारण रात का कर्फ्यू चल रहा है। ऐसे में रमजान की तैयारियां फीकी पड़ गई हैं।
बरेली, जेएनएन। साल भर में एक बार आने वाले मुकद्दस रमजान के महीने को लेकर लोगों में गजब उत्साह रहता है। पहले से ही लोग घरों और मस्जिदों को सजाने लगते हैं। इस वक्त कोरोना के कारण रात का कर्फ्यू चल रहा है। ऐसे में रमजान की तैयारियां फीकी पड़ गई हैं। गुलजार रहने वाले बाजार सूने पड़ गए हैं। 109 साल के इतिहास में दूसरी बार ऐसा हुआ हा जब रमजान के महीने में बाजारों की रौनक नहीं दिखाई दे रही। पिछले साल भी लॉकडाउन के कारण रमजान की रौनक दिखाई नहीं दी थी।
रमजान माह आने से पहले ही शहर के सैलानी, बड़ा बाजार, फुटा दरवाजा, किला इंग्लिशगंज, बाजार संदल खां, जखीरा, बानखाना, शाहबाद, कांकरटोला, सूफी टोला जैसे कई बाजार रात भर गुलजार रहते थे, लेकिन अबकी बार ऐसा कुछ भी नहीं है। क्षेत्रवासियों का कहना है कि कोरोना संक्रमित के बढ़ते मामले और रात के कर्फ्यू की वजह से इस बार रमजान का महीना बेनूर है। लोगों के मुताबिक रमजान में ऐसा दूसरी बार देखा है कि बाजार, इबादगाहों में सन्नाटा है। अंग्रेजों के समय का सैलानी बाजार बेनूर है।
गलियों में रहने वाली रौनक भी इस बार दिखाई नहीं दे रही हैं। अंग्रेजों का बनाया हुआ फूटा दरवाजा पर रमजान महीने में लजीज पकवान बाजार में बिकते थे। रमजान से पहले हलवाई, बावरची, ब्रेड, खजला बनाने वाले काम में जुट जाते थे। जहां उन्हें जाना होता था वो जाते थे। इधर, रमजान आने पर रोजेदार रोजे और तरावीह की तैयारी में जुट गए। वहीं महिलाएं सेहरी और इफ्तार की तैयारी में लग गई। मस्जिद, घरों में तरावीह की नमाज और कुरान की तिलावत करते लोग नजर आए। रात के कर्फ्यू की वजह से इस बार न मस्जिदों में रौनक हुई और न मोहल्लों को सजाया गया। शहर के प्रमुख बाजार भी बेनूर हो गए।