सात से आठ हजार रुपये खर्च कर बचा सकते हैं वर्षा का जल
जल है तो कल है। अगर जल संरक्षण के प्रति हम आज सचेत न हुए तो कल हमारी आने वाली पीढि़यां पानी तक को तरसेंगी। हालांकि हम कुछ सार्थक प्रयास करके बेकार बह जाने वाले वर्षा जल का संचयन कर सकते हैं। इससे भूजल स्तर भी बढ़ेगा और पानी का संकट कभी गहराने नहीं पाएगा। इसीलिए सरकार ने भी विभिन्न स्थानों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के निर्देश जारी किए हैं। कई स्थानों पर जागरूक लोग इसके प्रति सचेत हैं तो कुछ अब भी नहीं चेत रहे।
बरेली, जेएनएन: जल है तो कल है। अगर जल संरक्षण के प्रति हम आज सचेत न हुए तो कल हमारी आने वाली पीढि़यां पानी तक को तरसेंगी। हालांकि हम कुछ सार्थक प्रयास करके बेकार बह जाने वाले वर्षा जल का संचयन कर सकते हैं। इससे भूजल स्तर भी बढ़ेगा और पानी का संकट कभी गहराने नहीं पाएगा। इसीलिए सरकार ने भी विभिन्न स्थानों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के निर्देश जारी किए हैं। कई स्थानों पर जागरूक लोग इसके प्रति सचेत हैं तो कुछ अब भी नहीं चेत रहे।
पहले हर गांव में एक तालाब हुआ करता था। इसमें वर्षा जल एकत्रित होता था। अब हालात बदल गए। पुराने तालाब बमुश्किल मिलते हैं। गांवों में लोग सबमर्सिबल का उपयोग कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले 30 सालों में ग्रामीण इलाकों में एक तरफ जल संचित नहीं हो रहा, वहीं भूजल दोहन 20 से 30 गुना बढ़ गया है। सेंटर फॉर एनवायरमेंट एजुकेशन की ओर से प्रदेश में किए गए एक सर्वे के अनुसार शहरी क्षेत्र में भूजल का दोहन 40 से 45 गुना बढ़ा है। ऐसे हालात में जल संरक्षण की महती आवश्यकता है। कम लागत में सालों रख सकते हैं भूजल स्तर को सामान्य
सेंटर फार एनवायरमेंट एजुकेशन के प्रदेश समन्वयक नीरज पाल कहते हैं कि रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम दो प्रकार से लगा सकते हैं। एक सिर्फ वर्षा जल को संचित कर उसे प्रयोग में न लाया जाए। दूसरा, पानी को संचय करें। उसकी रीसाइकिलिंग करें। इसके बाद उसे प्रयोग में ला सकते हैं। इसके लिए दो चैंबर बनाने पर करीब 12 से 15 हजार का खर्च आता है। एक गढ्ढा बनाने में सिर्फ सात से आठ हजार का खर्च आता है। औसतन 80 वर्ग गज में बने घर की छत लगभग 700 स्कवायर फीट की होती है। इसके लिए रेन हार्वेस्टिग सिस्टम लगाने के लिए दो चैंबर बनाने में 15 हजार रुपये तक खर्च आ सकता है। व्यावसायिक या बहुमंजिली इमारतों के लिए उनके इंफ्रास्ट्रक्चर के हिसाब से खर्च आएगा।
यहां होती है जल संचयन की आवश्यकता
सेंटर फार एनवायरमेंट एजुकेशन के विशेषज्ञ जितेंद्र कुमार बताते हैं कि जिन क्षेत्रों में प्रतिवर्ष न्यूनतम 200 मिमी वर्षा होती है, वहां जल संचय करना आवश्यक होता है। घर की छतों, कार्यालयों की छतों या फिर विशेष रूप बनाए गए क्षेत्र में वर्षा का जल एकत्रित किया जाता है। इसके लिए दो गढ्ढे बनाने होंगे। इसमें एक सीमेंट और ईंट से बनाया जाता है। इसकी गहराई सात से 10 फीट व लंबाई और चौड़ाई लगभग चार फीट होती है। इन गढ्डों को पाइप द्वारा छत की नालियों और टोटियों से जोड़ दिया जाता है। वर्षा का जल सीधे इन गढ्ढों में पहुंचता है। दूसरे गढ्ढे को ऐसे ही कच्चा छोड़ दिया जाता है। इस विधि के जरिए भी वर्षा जल का संचय कर हम आने वाली पीढि़यों के लिए कुछ बेहतर कर सकते हैं।