कठपुतली कह रही... सियावर रामचंद्र की जय

आवास विकास में इसे देखने के लिए 20-25 लोग उपस्थित हैं मगर सामने मंच पर कोई कलाकार नहीं हैं। रामकथा का यह मंचन कठपुतलियों के जरिये किया जा रहा। दशरथ से वर मांगती कैकेई राम-सीता व लक्ष्मण का वन गमन। मंच पर हर पात्र कठपुतली के रूप में है।

By Samanvay PandeyEdited By: Publish:Mon, 30 Nov 2020 04:49 PM (IST) Updated:Mon, 30 Nov 2020 05:38 PM (IST)
कठपुतली कह रही... सियावर रामचंद्र की जय
शहर की आवास विकास कालोनी में हुई कठपुतली रामलीला में लक्ष्मण के मूछित होने पर सजीवनी लेकर पहुचे हनुमान।

शाहजहांपुर [अंबुज मिश्र] : जनकपुरी सजी हुई है। सीता का स्वयंवर है। भगवान शिव का धनुष रखा है, जिसे तोडऩे के लिए श्रीराम उसकी प्रत्यंचा चढ़ाते हैं। धनुष टूटता है और चहुंओर जयकार होने लगती है। सीता श्री राम के गले में जैसे ही वरमाला डालती हैं, पुष्पवर्षा होने लगती है। पाश्र्व में चौपाइयां गूंजती हैं। आंखें उस मनोरम दृश्य को देखकर संतोष पाती हैं तो कान पाश्र्व में गंूज रही संगीतमय चौपाइयों से मानो तृप्त हो जाते हैं। 

आवास विकास में इसे देखने के लिए 20-25 लोग उपस्थित हैं, मगर सामने मंच पर कोई कलाकार नहीं हैं। रामकथा का यह मंचन कठपुतलियों के जरिये किया जा रहा। दशरथ से वर मांगती कैकेई, राम-सीता व लक्ष्मण का वन गमन। मंच पर हर पात्र कठपुतली के रूप में है। संवाद ऐसे कि रावण वध के वक्त दर्शक युद्ध के मैदान से मानो साक्षात्कार कर रहे हों। राम और भरत मिलाप के मिलाप में भावुकता ऐसी कि आंखों के किनारे नम हो जाएं। 

रंगमंच के हुनरमंदों ने निकाला रास्ता 

कोरोना के कारण बहुत पीछे छूट रहा था। शारीरिक दूरी के कारण रंगकर्मी मंच से दूर होते जा रहे। रामलीलाओं का मंचन नहीं हो रहा। यह देखकर भारतेंदु नाट्य अकादमी से अभिनय के हुनर सीखने वाले कप्तान सिंह कर्णधार ने पुरानी विधा की मदद ली। वह बताते हैं कि अक्टूबर में जब रामलीलाओं का मंचन नहीं हो पा रहा था, तब तय किया कि मंच को जीवंत रखने के लिए दूसरा रास्ता निकालेंगे। कठपुतली कला सीखी थी, उसका उपयोग करेंगे। पहले रामकथा करेंगे, इसके बाद नाटकों का मंचन होगा। इसी कवायद में अपनी संस्था गगनिका के सदस्यों को तैयार किया। चूंकि शुरूआत रामकथा से करनी थी, इसलिए भगवान राम, सीता, हनुमान और रावण समेत सभी पात्रों को कठपुतली में ढाला। राम-रावण, हुनमान के स्वरूप करीब दो फीट लंबे बनाए, अन्य किरदार करीब डेढ़ फीट के। हाथी, घोड़ा, सैनिक, धनुष-वाण भी तैयार किए।

ऐसे होगा शारीरिक दूरी का पालन 

कप्तान सिंह बताते हैं कि कलाकार यदि मंचन करते तो शारीरिक दूरी रख पाना संभव नहीं था। अब कठपुतलियां मंच पर हैं। इनकी डोर संभालने वालों के बीच पर्याप्त दूरी रहती है। प्रशासन से अनुमति के बाद कॉलोनियों व स्कूलों में मंचन शुरू किया है। 20-25 लोग ही बुला रहे, हम इतने में भी संतुष्ट हैं। इस कला को घर-घर तक पहुंचाने के लिए शो को फेसबुक पर लाइव भी देंगे। सुकून इस बात का है कि कोरोना भी हमारी कला को रोक नहीं सकेगा। 

हर किसी की अलग जिम्मेदारी 

प्रत्येक कठपुतली को उसके किरदार के अनुसार सजाया गया। मेकअप उनकी पत्नी सुलोचना कार्की व वस्त्र चयन का कार्य रंगकर्मी दीपा कश्यप ने पूरा किया। नैन सिंह, नौशाद, हनुमंत सिंह, दुष्यंत श्रीवास्तव, फाजिल खान आदि की टीम ने करीब 25 दिन रोजाना तीन-चार घंटे लगकर पात्र तैयार कर लिए। कप्तान सिंह मुख्य पात्र, जबकि बाकी टीम अन्य कठपुतली पात्रों के नियंत्रण की जिम्मेदार संभाल रहे। एक पात्र तैयार करने में करीब चार से पांच हजार रुपये तक खर्च हुए। सभी ने आपसी सहयोग से यह राशि एकत्र की। कठपुतली बनाने में मसाले, पुराना पेपर, गोंद, लकड़ी, स्टील का पाइप, फोम आदि खरीदकर लाया गया। पात्र के अनुरूप कलर, कपड़े व ज्वैलरी खरीदी गई। सारे इंतजाम में करीब 80 हजार रुपये खर्च किए।

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