अब चिडि़याघर नहीं भेजे जाएंगे बिगड़ैल बाघ, मुख्यालय में बैठकर ही जानिये अधिकारी कैसे कर सकेंगे गतिविधियों की निगरानी

Pilibhit Tiger Reserve News पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगल में बाघों का कुनबा बढ़ रहा है। अक्सर बाघ जंगल से निकलकर खेतों व आबादी क्षेत्र में पहुंच जाता है। ऐसे बाघ को चिड़ियाघर भेज दिया जाता है लेकिन अब नई टेक्नालॉजी के जरिये ऐसा नहीं होगा।

By Samanvay PandeyEdited By: Publish:Fri, 18 Jun 2021 06:26 AM (IST) Updated:Fri, 18 Jun 2021 06:26 AM (IST)
अब चिडि़याघर नहीं भेजे जाएंगे बिगड़ैल बाघ, मुख्यालय में बैठकर ही जानिये अधिकारी कैसे कर सकेंगे गतिविधियों की निगरानी
रेडियो कॉलर बताएगा बाघ की लोकेशन, ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) से पता रहेगा जंगल में कहां विचरण कर रहा बाघ।

बरेली, जेएनएन। Pilibhit Tiger Reserve News : पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगल में बाघों का कुनबा बढ़ रहा है। अक्सर बाघ जंगल से निकलकर खेतों व आबादी क्षेत्र में पहुंच जाता है। ऐसे बाघ को ट्रैंकुलाइज करके किसी जंगल अथवा चिड़ियाघर भेज दिया जाता है लेकिन अब पीलीभीत टाइगर रिजर्व प्रशासन इसमें नई टेक्नालॉजी को अपनाने की तैयारी कर रहा है। जंगल से बाहर निकले बाघ को ट्रैंकुलाइज करके उसके गले में रेडियो कॉलर लगा दिया जाएगा। इसके बाद उसे जंगल में वापस छोड़ दिया जाएगा। जीपीएस सिस्टम से लैस रेडियो कॉलर लगा होने से टाइगर रिजर्व के अधिकारी मुख्यालय में बैठकर उस बाघ की लोकेशन और गतिविधियों को जान समझ सकेंगे।

वर्ष 2019-20 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की गाइडलाइन से कराई गई गणना के बाद पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगल में 65 से अधिक बाघ होने की पुष्टि हुई थी। तब से अब तक जंगल में बाघों की संख्या और बढ़ने का अनुमान किया जाता है। चार साल के भीतर बाघों की संख्या दोगुनी हो जाने पर टाइगर रिजर्व को अवार्ड भी मिल चुका है। बढ़ती संख्या के कारण अक्सर कोई न कोई बाघ जंगल से बाहर निकल आता है। कई बार खेतों से लेकर आबादी तक इनकी चहलकदमी होने लगती है।

अभी तक यह व्यवस्था रही है कि जंगल से बाहर घूमने वाले बाघ को रेस्क्यू करके पिंजरे में कैद कर लिया जाता है। इसके बाद विभागीय उच्चाधिकारियों के निर्देश पर किसी जंगल अथवा कानपुर के प्राणि उद्यान में भिजवाया जाता है। रेस्क्यू करके पकड़े गए बाघ को वापस जंगल में छोड़ने के बाद उसकी गतिविधियों की निगरानी करने का अभी तक टाइगर रिजर्व के पास कोई कोई तंत्र नहीं रहा है लेकिन अब दो रेडियो कॉलर मिल गए हैं। इसके माध्यम से वापस जंगल में छोड़े जाने के बाद लंबे समय तक बाघ की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सकेगी। 

ऐसे काम करेगा रेडियो कॉलर : जंगल से बाहर आए बाघ को विशेषज्ञों की टीम ट्रंकुलाइज किया जाएगा। इससे कुछ समय के लिए बाघ बेहोश हो जाता है। उसी दौरान ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) से लैस रेडियो कॉलर बाघ के गले में फिट कर दिया जाएगा। इसके बाद बाघ पिंजरे में कैद हो जाएगा। इस कार्य में समय प्रबंधन का विशेष ध्यान रखा जाना होता है। क्योंकि ट्रंकुलाइज किया बाघ अधिक समय तक बेहोश नहीं रहता। डोज देने वाले विशेषज्ञ वन्यजीव चिकित्सक को समय का पता रहता है। उसी निर्धारित समय में यह कार्रवाई पूरी करनी होगी। बाघ के स्वास्थ्य की जांच के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर उसे वापस किसी जंगल में छोड़ दिया जाएगा। बाघ के गले में रेडियो कॉलर फिट होगा। ऐसे में टाइगर रिजर्व मुख्यालय के कंट्रोल से इसकी जानकारी मिलती रहेगी कि बाघ कहां और किस स्थिति में है।

इस साल पकड़े जा चुके चार बाघ

- माला रेंज में पकड़े गए दो बाघ कानपुर प्राणि उद्यान में भेजे

- ललौरीखेड़ा क्षेत्र में गन्ने के खेत में जाल में फंसी बाघिन को रेस्क्यू करके दुधवा के जंगल में छोड़ा

- माधोटांडा क्षेत्र में घूमने वाले बाघ को रेस्क्यू कर पिंजरे में कैद करके किशनपुर के जंगल में किया आजाद

दो रेडियो कॉलर का किया गया इंतजाम : टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल ने बताया कि दो रेडियो कॉलर का इंतजाम किया गया है। इन्हें रिजर्व में रखा गया है। विशेष परिस्थितियों में ही रेडियो कॉलर का उपयोग किया जाएगा। इसके माध्यम ये जंगल में वापस छोड़े गए बाघ की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सकेगी। सामान्य तौर पर जंगल से बाहर आने वाले बाघ खुद ही लौट जाते हैं। इस दौरान ग्रामीणों को सतर्क करने व बाघ की मानीटरिंग के लिए विभागीय टीम को लगाया जाता है। 

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