Pilibhit Gambujia Palan : पीलीभीत की प्रमिला ने गंबूजिया मछली पालन से दो माह में कमाएं 40 हजार
Pilibhit Gambujia Palan पीलीभीत में स्वयं सहायता समूह आत्मनिर्भर बन रहे है। जिन्हें जिलाधिकारी पुलकित खरे का सहयोग भी मिल रहा है।स्वरोजगार के माध्यम से महिला समूहाें की महिला सदस्य अपने परिवारों के लिए अतिरिक्त आमदनी कर रही है।
बरेली, जेएनएन। Pilibhit Gambujia Palan: पीलीभीत में स्वयं सहायता समूह आत्मनिर्भर बन रहे है। जिन्हें जिलाधिकारी पुलकित खरे का सहयोग भी मिल रहा है।स्वरोजगार के माध्यम से महिला समूहाें की महिला सदस्य अपने परिवारों के लिए अतिरिक्त आमदनी कर रही है। ऐसी ही एक स्वयं सहायता समूह की महिला सदस्य प्रमिला है। जो अन्य महिलाअों को गंबूजिया पालन की ओर अग्रसर कर रही है। दरअसल गंबूजिया पालन कर प्रमिला ने दो माह में 40 हजार की कमाई कर महिला सदस्यों के सामने नई मिसाल कायम कर दी है।
कृष्णा स्वयं सहायता समूह की प्रमिला मिस्त्री द्वारा गमबुझिया मछली पालन का कार्य किया जा रहा है। प्रमिला न्यूरिया क्षेत्र की गुप्ता कालोनी की निवासी हैं। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट नूपुर गोयल को प्रमिला ने अपनी सफलता की कहानी बताते हुए कहा कि सरकार द्वारा स्वयं सहायता समूह के गठन के उपरांत 2500 गमबुझिया मछली के बीज से मछली पालन का कार्य प्रारंभ किया। इससे धीरे धीरे आगे कार्य बढ़ाते हुए दो माह में 40 हजार रुपये का लाभ प्राप्त किया है। उन्होंने कहा कि समूह की सभी महिलाओं का सहयोग प्राप्त करते हुए मछली पालन का कार्य किया जा रहा है।
प्रमिला द्वारा मछली पालन से जनपद के सात विकासखंड में वितरित की गई हैं। विकासखंड बिलसंडा में चार हजार, बीसलपुर व पूरनपुर में एक-एक हजार, ललौरीखेडा में दो हजार, बरखेडा में एक हजार, मरौरी में दो हजार एवं नगर पालिका पीलीभीत में दो हजार मछलियां प्रदान की गई हैं। विकासखंडों में तालाबों में डाली जाएंगी। ये मछलियां डेंगू मच्छर के लार्वा को खत्म करने में सहयोग करेगीं। प्रमिला के अनुसार मछली पालन कार्य में नियमित बढोत्तरी की जा रही है। उनकी मछलियों की मांग प्रदेश के अन्य जनपदों से भी की जा रही है।
यह मछली तालाब में डेंगू मच्छर के लार्वा को खा जाती है, जिससे तालाब का पानी स्वच्छ रहता है। क्षेत्र में बीमारियां नहीं फैलती है। इसके अलावा जिले में संचालित स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं राखी, गाय के गोबर से बने गमले, दीपक, धूपवती, मास्क, शहद उत्पादन, जैविक खाद, विभिन्न प्रकार की मूर्तियां निर्मित की जा रही है।