एंबुलेंस के लिए 'नो ट्रैफिक सेंस'

जागरण संवाददाता, बरेली : शहर में आए दिन एंबुलेंस जाम में फंसी हुई दिख जाएगी। इसके पीछे वजह है आपातकालीन सेवाओं के प्रति न हम जागरूक हैं और न ही दूसरों की जिंदगी के प्रति हम संवेदनहीन। यही वजह है कि किन्हीं विशेष मौकों पर हमें किडनी या हार्ट ट्रांसप्लांट करने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाना पड़ता है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 16 Apr 2018 02:47 AM (IST) Updated:Mon, 16 Apr 2018 02:56 AM (IST)
एंबुलेंस के लिए 'नो ट्रैफिक सेंस'
एंबुलेंस के लिए 'नो ट्रैफिक सेंस'

जागरण संवाददाता, बरेली : शहर में आए दिन एंबुलेंस जाम में फंसी हुई दिख जाएगी। इसके पीछे वजह है आपातकालीन सेवाओं के प्रति न हम जागरूक हैं और न ही दूसरों की जिंदगी के प्रति हम संवेदनहीन। यही वजह है कि किन्हीं विशेष मौकों पर हमें किडनी या हार्ट ट्रांसप्लांट करने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाना पड़ता है। वहीं, पाश्चात्य देशों में आपातकालीन सेवा, मसलन एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड या पुलिस की गाड़ी के लिए रास्ता अपने-आप खाली कर दिया जाता है। खाली एंबुलेंस को लेकर कई बार राहगीर यह कहकर उलझ जाते हैं कि छूट का फायदा उठाकर खाली एंबुलेंस में भी हूटर बजा रहे हो। जबकि हकीकत यह है कि एंबुलेंस मरीज को लेकर जा रही है तो भी उतनी ही आपात स्थिति में है, जितनी मरीज को लेने के लिए जाते समय। क्योंकि सवाल किसी की जिंदगी और मौत का है..।

जिले में सरकारी एंबुलेंस की स्थिति

जिले में जिला अस्पताल में पांच एंबुलेंस आपातकालीन 102 नंबर की है। इसके अलावा एडवांस लाइफ सपोर्ट की दो गाड़ियां और आपातकालीन 108 के लिए दो एंबुलेंस कोतवाली में खड़ी रहती हैं। वहीं, साढ़े तीन सौ के करीब निजी एंबुलेंस शहर में हैं। ये कोहाड़ापीर, कुतुबखाना, चौकी चौराहा, अयूब खां चौराहे से जिला अस्पताल, चौपुला चौराहा, श्यामतगंज, कालीबाड़ी के आसपास अधिकांश समय एंबुलेंस फंसी रहती हैं।

क्या कहते हैं आपातकालीन सेवा कर्मी

सायरन और हॉर्न बजाने के बावजूद शहर के लोग वाहन सामने नहीं हटाते हैं। इससे कई बार मरीजों की जान खतरे में पड़ जाती है। बाद में सारी जिम्मेदारी एंबुलेंस चालक पर पड़ जाती है।

-मनीष त्रिवेदी,

एंबुलेंस चलाने के लिए हैवी लाइसेंस वाले कम से कम पांच साल के अनुभवी चालक ही रखे जाते हैं। ताकि, जल्द से जल्द मरीज को उपचार दिलाया जा सके। मगर जाम में गाड़ी फंस जाती है।

-भूपेंद्र कुमार, पायलट एंबुलेंस के प्रति लोगों को ज्यादा जागरूक करने के लिए पुलिस और प्रशासन की मदद बेहद जरूरी है। अयूब खां से जिला अस्पताल तक आने में कई बार दस से पंद्रह मिनट लग जाते हैं।

-ओमप्रकाश, मेडिकल टेक्नीशियन, 102 एंबुलेंस

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