न जिस्म में खून है, न आंखों में राेशनी, यूपी के इस शहर में ये कैसे 'नौजवान' Bareilly News

यहां 24 फीसद लड़कियों में खून की कमी पायी गई जबकि 15 प्रतिशत छात्र-छात्राएं ऐसे मिलें जिनकी आंखें कमजोर हैं।ऐसे छात्रों की मेडिकल रिपोर्ट तैयार कर उनकी सेहत का ख्याल रखा जाएगा।

By Abhishek PandeyEdited By: Publish:Sun, 15 Dec 2019 03:53 PM (IST) Updated:Sun, 15 Dec 2019 05:36 PM (IST)
न जिस्म में खून है, न आंखों में राेशनी, यूपी के इस शहर में ये कैसे 'नौजवान' Bareilly News
न जिस्म में खून है, न आंखों में राेशनी, यूपी के इस शहर में ये कैसे 'नौजवान' Bareilly News

हिमांशु मिश्र, बरेली : जिन नौजवानों पर पूरे देश की उम्मीदें टिकी हुई हैं वही शारीरिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं। इसका खुलासा रुहेलखंड विश्वविद्यालय में पिछले दिनों हुए हीमोग्लोबिन और आंखों की जांच की रिपोर्ट से सामने आयी है। यहां 24 फीसद लड़कियों में खून की कमी पायी गई जबकि 15 प्रतिशत छात्र-छात्राएं ऐसे मिलें जिनकी आंखें कमजोर हैं। अब विश्वविद्यालय प्रशासन ने ऐसे छात्रों की मेडिकल रिपोर्ट तैयार कर उनके सेहत पर लगातार निगरानी रखने का फैसला लिया है। छात्रों को चिकित्सकीय सलाह दिलाई जा रही है ताकि, जल्द से जल्द उनमें पायी गईं शारीरिक कमियों को दूर कराया जा सके।

200 लड़कियों में हीमोग्लोबिन की हुई थी जांच

डीन स्टूडेंट वेलफेयर (डीएसडब्ल्यू) प्रो. एके जेटली ने बताया कि राज्यपाल ने छात्राओं के हीमोग्लोबिन जांच के लिए विशेष आदेश दिया था। शिविर लगाकर दो सौ छात्राओं के खून की जांच हुई। इसमें करीब 24 प्रतिशत ऐसी छात्राएं निकलीं जिनका हीमोग्लोबिन आठ से दस प्रतिशत तक निकला। सेहत सुधार के लिए इन छात्राओं को बताया गया कि क्या खाना है? दवाइयां कौन सी लेनी है? आदि की जानकारी दी गई है। सभी की रिपोर्ट भी विश्वविद्यालय में है। अब हर 15 से 25 दिन में फिर से शिविर लगाकर इनकी जांच कराई जाएगी।

मोबाइल ने आंखों की रोशनी को किया कमजोर

इसी तरह विश्वविद्यालय परिसर में आंखों की जांच के लिए भी शिविर का आयोजन कराया गया। इसमें 144 छात्र-छात्राओं ने शिरकत की। जांच में 15 प्रतिशत छात्र-छात्राओं की नजरें कमजोर निकलीं। इन छात्रों को कम पॉवर वाले चश्मे का प्रयोग करने की सलाह डॉक्टरों ने दी है। जिन छात्रों की नजरें कमजोर मिली हैं उनमें अधिकतर मोबाइल का प्रयोग काफी ज्यादा करते हैं। रात में लाइट ऑफ होने के बाद भी करीब दो से तीन घंटे मोबाइल लगातार चलाते हैं। लाइट की रिफलेक्शन का प्रभाव आंखों की रेटिना पर पड़ती है।

रोजाना 9 से 12 घंटे मोबाइल प्रयोग कर रहे युवा

बरेली कॉलेज की मनोवैज्ञानिक डॉ. हेमा खन्ना ने हाल ही में 14 से 28 आयु वर्ष के 1200 युवाओं पर अध्ययन किया था। इसमें 70 फीसद युवा ऐसे निकले जो रोजाना नौ से 12 घंटे अपना समय मोबाइल, लैपटॉप या कंप्यूटर पर देते हैं। ऐसे युवा न सिर्फ मानसिक तौर अस्वस्थ होते हैं बल्कि शारीरिक तौर पर भी कई बीमारियां उन्हें घेरने लगती हैं। छात्रों की बौद्धिक क्षमता का भी तेजी से पतन होने लगता है।  

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