सीमावर्ती गांवों में भारतीय नहीं नेपाल के मोबाइल नेटवर्क का हो रहा इस्तेमाल, जानिये क्या है वजह

पीलीभीत में नेपाल सीमा से सटे करीब 20 हजार ग्रामीणों को अब तक भारत की ओर से संचालित मोबाइल नेटवर्क नहीं मिल सका। जरूरत पूरी करने के लिए सीमावर्ती गांवों के लोग नेपाली नेटवर्क नमस्ते और एन-सेल इस्तेमाल कर रहे हैं। पिछले कुछ समय से सीमा पर संवेदनशीलता बढ़ी है।

By Samanvay PandeyEdited By: Publish:Thu, 17 Jun 2021 07:17 AM (IST) Updated:Thu, 17 Jun 2021 07:17 AM (IST)
सीमावर्ती गांवों में भारतीय नहीं नेपाल के मोबाइल नेटवर्क का हो रहा इस्तेमाल, जानिये क्या है वजह
भारतीय नेटवर्क न होने से नेपाली कंपनियों की सेवा उपयोग करते हैं ग्रामीण।

बरेली, [अंकित शुक्ला]। पीलीभीत में नेपाल सीमा से सटे करीब 20 हजार ग्रामीणों को अब तक भारत की ओर से संचालित मोबाइल नेटवर्क नहीं मिल सका। जरूरत पूरी करने के लिए सीमावर्ती गांवों के लोग नेपाली नेटवर्क नमस्ते और एन-सेल इस्तेमाल कर रहे हैं। पिछले कुछ समय से सीमा पर संवेदनशीलता बढ़ी है। ऐसी स्थिति में तस्करों या अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को सर्विलांस के जरिये ट्रेस नहीं किया जा सकता।

स्थिति देख भारतीय संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) अब उस क्षेत्र में दो टावर लगाने की कवायद कर रहा है।नेपाल की मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों का नेटवर्क भारतीय सीमावर्ती गांवों में 10 किमी अंदर तक आता है। महाराजपुर, रमनगरा, लग्गा-बग्गा, बूंदी, कबीरगंज, अशोक नगर, महाराणा प्रताप नगर, शांतिनगर, आजाद नगर, नहरोना आदि सीमावर्ती गांवों के कई लोग नेपाली नेटवर्क का इस्तेमाल कर मोबाइल फोन चलाते हैं।

आतंरिक सुरक्षा पर सवाल : दोनों ओर के सीमावर्ती गांवों में रहने वाले तस्कर खाद, राशन, कपड़े आदि की तस्करी करते हैं। छह महीने से दर्जन भर से ज्यादा तस्करों को सशस्त्र सीमा बल पकड़ चुका है। भारतीय क्षेत्र में रहने वाले तस्करों को यदि सर्विलांस के जरिये ट्रेस करने का प्रयास किया जाए, तो संभव नहीं। यदि वे नेपाली नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं तो उससे जुड़ा ब्योरा यहां की पुलिस को नहीं मिल सकता। ऐसे में आंतरिक सुरक्षा का सवाल उठता है। हालांकि पुलिस अफसर इस बाबत बात करने से इन्कार करते हैं। एडीजी अविनाश चंद्र ने टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया।

राशन वितरण में भी होती है परेशानी : इस क्षेत्र में नेटवर्क नहीं मिलने से ई पास मशीनों से राशन वितरण में परेशानी होती है। बच्चों की आनलाइन पढ़ाई बाधित होती है। आवासों व शौचालयों की जियो टैङ्क्षगग समेत सभी सरकारी कार्यों में असुविधा होती है। टिल्ला नंबर चार में एक टावर लगा है, जिससे आसपास के गांवों में बीएसएनएल का नेटवर्क पहुंच जाता है।

यहां प्रस्तावित हैं बीएसएनएल के टावर : पीलीभीत जिले में करीब 56 किमी की सीमा है, जोकि एक ओर उत्तराखंड के खटीमा व दूसरी ओर लखीमपुर खीरी जिले से जुड़ती है। इन गांवों में सशस्त्र सीमा बल गश्त करता है। उन्हें भी अपने कैंप या अधिकारियों से वार्ता करने में परेशानी होती है। इसे देखते हुए दो साल पहले धर्मपुरी व राघवपुरी ङ्क्षसघाड़ा में बीएसएनएल के दो टावर लगवाने का प्रस्ताव बना था। इस पर विचार नहीं हुआ तो मई में दोबारा प्रस्ताव भेजा गया।

इसलिए अब तक इंतजार : निजी कंपनियों ने इन गांवों में दिलचस्पी नहीं दिखाई। बीएसएनएल के सामने बजट का संकट है। अधिकारी बताते हैं कि एक टावर लगवाने में करीब 25 लाख का खर्च आता है। बार्डर पर रेडिएशन गाइड लाइन का पालन भी करना होता है।बीएसएनएल के महाप्रबंधक अनिल कुमार ने बताया कि पीलीभीत में नेपाल के सीमावर्ती गांवों में दो टावर लगाए जाने का प्रस्ताव बना था। इसे दोबारा परिमंडल कार्यालय, मेरठ भेजा गया है। वहां से अनुमोदन के बाद यहां टावर लगाने का काम शुरू हो सकेगा।

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