Nepalese Elephants : नेपाली हाथियों को पसंद आ रहा तराई का जंगल, बार्डर पर कर रहे माैज
Nepalese Elephants नेपाली हाथियों को पीलीभीत टाइगर रिजर्व का जंगल भा रहा है। यहां उन्हें भरपूर भोजन और पानी के साथ ही छिपने के स्थान आसानी से सुलभ हो रहे हैं। बरसात के मौसम में नेपाल के शुक्ला फांटा के जंगल में भोजन की कमी हो जाती है।
बरेली, जेएनएन। Nepalese Elephants : नेपाली हाथियों को पीलीभीत टाइगर रिजर्व का जंगल भा रहा है। यहां उन्हें भरपूर भोजन और पानी के साथ ही छिपने के स्थान आसानी से सुलभ हो रहे हैं। बरसात के मौसम में नेपाल के शुक्ला फांटा के जंगल में इन हाथियों के लिए भोजन की कमी पैदा हो जाती है। इसीलिए ये हाथी बार्डर के पिलर संख्या 17 से होकर शारदा पार भारतीय वन क्षेत्र लग्गा भग्गा में आते रहे हैं। कई बार शारदा नदी को पार करके हाथी बराही रेंज में भी आते रहे लेकिन महोफ और माला रेंज के जंगल में नेपाली हाथियों की आमद लंबे अरसे बाद हुई है।
इस बार नेपाली हाथी टाइगर रिजर्व के नए नए इलाकों में विचरण करते रहे हैं. समय भी लगभग डेढ़ महीना होने जा रहा है। वन्यजीव विशेषज्ञों का यही मानना है कि ये हाथी भोजन की तलाश में विचरण करते हुए यहां तक आते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार नेपाल बार्डर के पिलर संख्या सत्रह से लेकर भारतीय क्षेत्र में टाइगर रिजर्व के लग्गा भग्गा जंगल होते हुए दुधवा की किशनपुर सेंक्युरी तथा संपूर्णानगर रेंज के जंगल तक गया है।
पहले नेपाली हाथी इसी कारिडोर में विचरण करते थे। इनका सबसे प्रिय भोजन बांस है। पहले लग्गा भग्गा के जंगल में बांस की बहुतायत रही है। साथ ही काफी ऊंची घास हाथियों के छिपने के काम आती है। अब ये दोनों चीजें नहीं रहीं। लग्गा भग्गा में मानव बस्तियां बस गई है। इससे वन्यजीवों का प्राकृतिक कारिडोर प्रभावित हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि महोफ और माला रेंज तक हाथियों के आ जाने का यह भी एक कारण है।
इस बार नेपाली हाथियों को यहां विचरण करते डेढ़ माह हो चुका है। जाहिर है कि यहां का वातावरण व भोजन की भरपूर उपलब्धता के कारण यह इलाका हाथियों को भा रहा है। जंगल की चौड़ाई कम है, ऐसे में हाथियों के चार कदम चलते ही सामने धान, गन्ना के खेत आ जाते हैं। गन्ना भी हाथियों का प्रिय भोजन है। यहां इसकी भरपूर उपलब्धता मिल जाती है। झुंड में ज्यादातर मादा हाथी और उनके बच्चे रहते हैं। नर हाथी कुछ समय तक ही झुंड में रहता है और फिर वह उसके अलग हो जाता है। नरेश कुमार, वरिष्ठ परियोजना अधिकारी, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ
सबसे आवश्यक तो यह है कि लग्गा भग्गा वन्यजीव कारिडोर को व्यवस्थित किया जाना है। वहां इंसानी दखल खत्म होना चाहिए। जिससे नेपाल से आने वाले हाथी तथा दूसरे वन्यजीव वहां स्वच्छंद होकर विचरण कर सकें। दरअसल नेपाल के शुक्ला फांटा जंगल में शीशम के पेड़ों की बहुतायत है जबकि हाथियों का मुख्य भोजन बांस है। बांस के बाद उन्हें गन्ना प्रिय है। नेपाल में जंगल से दूर दूर तक न बांस हैं और न ही गन्ना।
टाइगर रिजर्व में धनाराघाट के आसपास कई किमी तक बांस का जंगल है। पहले लग्गा भग्गा में भी खूब बांस हुआ करता था, लेकिन वहां खेती के लिए लोगों ने बांस और घास दोनों साफ कर दिए। लग्गा भग्गा कारिडोर के लिए वन विभाग को अपनी सोसायटी की तरफ से एक प्रस्ताव भी दिया था लेकिन उस पर अभी तक काम नहीं हुआ।
नेपाली हाथी टाइगर रिजर्व में पहले भी आते रहे हैं। इस बार ज्यादा दिनों तक रुक गए। ये हाथी जिस रास्ते से आए, उसी से वापस लौंटेंगे। नेपाली हाथियों को यहां का जंगल पसंद आ रहा है। संभवत: इसी कारण अभी वापस नहीं लौटे। विभाग की टीमें हाथियों की गतिविधियों पर लगातार नजर रखे हुए हैं। प्रयास यही रहता है कि हाथी किसानों के खेतों की ओर न जाएं। जिन किसानों की फसलों का नुकसान हुआ है, उन्हें विभाग की तरफ से मुआवजा दिया जाएगा। नवीन खंडेलवाल, प्रभागीय वनाधिकारी, टाइगर रिजर्व