नागा संत बाबा अलाखिया के तपोवन में प्रवेश नहीं कर पाए थे मुगल

नागा संत बाबा अलाखिया ने वट वृक्ष के नीचे कठिन तप किया। उन्होंने यहां शिव मंदिर की स्थापना की। इन्हीं के नाम से मंदिर का नाम अलखनाथ पड़ा।

By Edited By: Publish:Mon, 06 Jul 2020 02:12 AM (IST) Updated:Mon, 06 Jul 2020 01:43 PM (IST)
नागा संत बाबा अलाखिया के तपोवन में प्रवेश नहीं कर पाए थे मुगल
नागा संत बाबा अलाखिया के तपोवन में प्रवेश नहीं कर पाए थे मुगल

बरेली, जेएनएन: करीब नौ सौ साल पहले नैनीताल रोड पर किला क्षेत्र के आसपास घना वन हुआ करता था। उस वक्त नागा संत बाबा अलाखिया ने वट वृक्ष के नीचे कठिन तप किया। उन्होंने यहां शिव मंदिर की स्थापना की। इन्हीं के नाम से मंदिर का नाम अलखनाथ पड़ा। 17वीं शताब्दी के आखिर में जब मुगलों का शासन शुरू हुआ तो कई मंदिर तोड़े गए। ऐसे में तमाम साधु-संतों और अन्य लोगों ने बाबा की इस तपस्थली में शरण ली। बाबा के प्रताप के कारण इस तपोवन में मुगल प्रवेश नहीं कर पाए थे। सप्तनाथ मंदिरों में शुमार अलखनाथ मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है। नागा संप्रदाय के पंचायती अखाड़े द्वारा संचालित इस मंदिर की पहचान दूर-दूर तक है। मौजूदा समय में मंदिर के मुख्य द्वार पर 51 फीट लंबी विशालकाय रामभक्त हनुमान की प्रतिमा है। मंदिर परिसर में रामसेतु वाला पत्थर है जो पानी में तैरता है। इस बात का उल्लेख बरेली के प्राचीन देवालय पुस्तक में मिलता है। मंदिर कमेटी के पंडित प्रशांत शर्मा बालाजी बताते हैं कि मंदिर का इतिहास करीब 925 वर्ष पुराना है और यहां का वट वृक्ष करीब 32 सौ साल पुराना है। वर्तमान में यहां के महंत बाबा कालू गिरि महाराज हैं। शहर के नाथ मंदिर धोपेश्वर नाथ मंदिर : सदर कैंट में स्थित इस स्थान पर धूम्र ऋषि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। तब से यहां शिव लिंग धूम्रेश्वर नाथ के नाम से पूजित है। धीरे-धीरे इसे धोपेश्वर नाथ कहा जाने लगा। यहां वैष्णो देवी के स्वरूप में बनी गुफा भी है। वनखंडीनाथ मंदिर : जोगी नवादा स्थित वनखंडीनाथ मंदिर का संबंध द्वापर युग से है। राजा द्रुपद की पुत्री व पांडवों की पत्नी द्रोपदी ने अपने राजगुरू से इस लिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई थी। मुगल शासकों ने मंदिर को क्षति पहुंचाने के प्रयास किया गया, लेकिन वह हिला तक नहीं। वन में लिंग को खंडित किए जाने की इस घटना के बाद यहां का नाम वनखंडीनाथ मंदिर पड़ गया। त्रिवटी नाथ मंदिर: तीन वृक्षों के बीच में लिंग के दर्शन विक्रम संवत 1474 में एक चरवाहे को त्रिवट वृक्षों के नीचे स्वप्न आया। उसने खोदाई की तो तीन वृक्षों के नीचे उसे शिवलिंग के दर्शन हुए। यहां नौ देवियों की प्रतिमा और 12 ज्योतिर्लिग स्वरूप हैं। तपेश्वर नाथ मंदिर : सुभाषनगर के दक्षिण में स्थित तपेश्वर नाथ मंदिर में अनेक ऋषि मुनियों ने यहां कठोर तपस्या की। इस कारण इस लिंग को तपेश्वर नाथ कहकर पुकारने लगे। इनमें भालू दास बाबा, बाबा मुनिश्वर दास और राम टहल दास आदि रहे। मढ़ीनाथ मंदिर : वर्षो पूर्व एक सिद्ध बाबा यहां आए थे। परम तपस्वी बाबा के पास मणि वाला सांप होने के कारण यह मणिनाथ कहलाया। बताते हैं कि उन्हें दूधाधारी मणिनाथ भी कहा जाता था। पशुपतिनाथ मंदिर : पीलीभीत बाईपास पर स्थित यह मंदिर वर्ष 2003 में शहर के एक बिल्डर ने बनवाया। यहां का शिवलिंग पशुपतिनाथ (नेपाल) के समान ही पंचमुखी है। यहां भैरव मंदिर भी है। मंदिर के चारों ओर सरोवर है। ------------------- द्वादश शिव¨लग के मंत्र का जाप कांवड़़ यात्रा से अधिक फलदायी जासं, बरेली : बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा ने बताया कि कोरोना काल में कांवड़ यात्रा वर्जित है, लेकिन घर पर ही जलाभिषेक कर उससे अधिक फल पा सकते हैं। उन्होंने बताया कि जिन लोगों के घरों में गंगाजल रखा है, वह घर में ही उससे शिव¨लग का जलाभिषेक करें। कांवड़ नहीं ला पाने वाले भक्त मायूस नहीं हों। वह अपने घर में ही द्वादश शिव¨लग का नाम लेकर उनके मंत्रों का जाप करे। यह अधिक फलदायी होगा। उन्होंने बताया कि श्रावण मास का पहला सोमवार अपने आप में दुर्लभ एवं महत्वपूर्ण है। सौम्य योग से सम्पन्न होने के कारण यह अपने आप में सिद्धिदायक है। इस दिन शिव उपासना से ग्रहों की शांति के साथ भगवान शिव की कृपा प्राप्त होगी। भक्त घर में ही शिव¨लग पर गंगाजल मिश्रित जल, दूध, बिल्व पत्र, मदार के पुष्प, भांग, धतूरे का फल तथा नागकेशर अर्पित करें।

chat bot
आपका साथी