अध्यादेश आने के बाद से बरेलवी मसलक के गढ में तलाक थमे
एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर रोक के लिए मोदी सरकार का कानून बनाने का फार्मूला रंग लाता नजर आ रहा है।
बरेली(जेएनएन)। एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर रोक के लिए मोदी सरकार का कानून बनाने का फार्मूला रंग लाता नजर आ रहा है। तीन तलाक पर अध्यादेश आने के बाद से बरेलवी मसलक के गढ़ रुहेलखंड परिक्षेत्र में इक्का-दुक्का मामले ही सामने आए हैं। जबकि कानून से पहले यह तादाद बहुत ज्यादा थी। मामूली बात पर बीवियां बेघर कर दी जाती थीं। यही कारण है कि तलाक, हलाला और बहुविवाह के खिलाफ आवाज उठाने वालीं महिला कार्यकर्ता बड़ी उपलब्धि मान रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को करार दिया असंवैधानिक
22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में एक बार में तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने तीन तलाक पर कानून बनाने की पहल की। लोकसभा से यह बिल पास हो गया, पर राज्यसभा में अटक गया। इसके बाद केंद्र सरकार की कैबिनेट ने 19 सितंबर 2018 को पहले से पेश बिल में संशोधन के साथ अध्यादेश लाकर ट्रिपल तलाक को अपराध के दायरे में ला दिया। अध्यादेश आए करीब 52 दिन का वक्त गुजर गया है, जो काफी प्रभावी साबित हुआ है।
महीने में पांच से छह होते थे मामले
अध्यादेश से पहले तक तीन तलाक के मामलों की झड़ी लगी रहती थी। हर हफ्ते में एक दो मामले और महीने में आधा दर्जन तक महिलाएं तीन तलाक बोलकर बेघर कर दी जाती थीं। अब यह औसत तीन महीने में इक्का-दुक्का पर आकर ठहर गया है।
यह है तलाक बिल
मुस्लिम समाज भी हुआ सजग
तीन तलाक पर अध्यादेश आने के बाद मुस्लिम समाज से भी जागरूकता की मुहिम चली। मस्जिदों में तलाक को लेकर तकरीर हुई। उलमा-ए-कराम ने मियां-बीवी के रिश्ते बेहतर रखने के पैगाम दिए। इसके अलावा उलमा की एक समझौता पंचायत बनी। इसमें मियां-बीवी के आपसी विवादों को सुलझाने की पहल शुरू हुई है।
घर से निकाला नहीं दिया तलाक
अध्यादेश आने के बाद से तलाक की घटनाएं रुकी हैं। सितारगंज की यासमीन के शौहर शबाब दूसरी शादी करना चाहते हैं। उन्होंने यासमीन को घर से निकाल दिया, पर सजा के डर से तलाक नहीं दिया। यह घटना तस्दीक करती है कि पुरुषों में अब तलाक को लेकर सजा का डर पैदा हुआ है। - निदा खान, अध्यक्ष आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी
चाय फीकी बनने पर तलाक दी तो हवालात जाना पड़ेगा
तीन तलाक पर सजा का प्रावधान होने से महिलाओं की सुरक्षा बढ़ी है। अध्यादेश के बाद तलाक का कोई केस सामने न आना खुशी की बात है। अब मर्दो को डर है कि चाय फीकी बनने पर तलाक दी तो हवालात जाना पड़ेगा। - फरहत नकवी, अध्यक्ष मेरा हक फाउंडेशन