Kargil Vijay Diwas : सेना की इस रेजीमेंट में होता है पुर्नजन्‍म, जानने के लि‍ए पढ़िए ये खास र‍िपाेर्ट

Kargil Vijay Diwas भारतीय सेना में हर रेजीमेंट का अपना एक युद्ध नारा (सिंहनाद) होता है। जाट रेजीमेंट सेंटर (जेआरसी) का है..‘जाट बलवान जय भगवान’।

By Ravi MishraEdited By: Publish:Wed, 22 Jul 2020 11:54 AM (IST) Updated:Wed, 22 Jul 2020 05:51 PM (IST)
Kargil Vijay Diwas : सेना की इस रेजीमेंट में होता है पुर्नजन्‍म, जानने के लि‍ए पढ़िए ये खास र‍िपाेर्ट
Kargil Vijay Diwas : सेना की इस रेजीमेंट में होता है पुर्नजन्‍म, जानने के लि‍ए पढ़िए ये खास र‍िपाेर्ट

बरेली, [दीपेंद्र प्रताप स‍िंंह]। Kargil Vijay Diwas : भारतीय सेना में हर रेजीमेंट का अपना एक युद्ध नारा (सिंहनाद) होता है। जाट रेजीमेंट सेंटर (जेआरसी) का है..‘जाट बलवान, जय भगवान’। जाट रेजीमेंट को गौरवशाली इतिहास और भरोसे का प्रतीक बनाने वाला इसका ट्रेनिंग सेंटर बरेली में है। यहां नौ महीने के कड़े प्रशिक्षण के बाद जांबाज जवान तैयार किए जाते हैं। अब एक सवाल कि नौ महीने ही क्यों? इस पर जेआरसी के अधिकारी मानते हैं कि यह एक तरह से पुनर्जन्म है।

पहला, जब नौ महीने मां के गर्भ में तैयार होकर बच्चा जन्म लेता है। वहीं, जेआरसी में नौ महीने के कड़े प्रशिक्षण के बाद आम इंसान से अनुशासित जवान, जाट बलवान बनता है। लेकिन नौ महीनों में प्रशिक्षण का चरण आसान नहीं। कारगिल विजय दिवस (26 जुलाई) के उपलक्ष्य में दैनिक जागरण आपको कारगिल युद्ध के अग्रिम मोर्चे पर रही जाट रेजीमेंट और उसके जांबाज जवानों के बारे में क्रमबद्ध तरीके से बताएगा। इसी कड़ी में आज बताएंगे कि जाट रेजीमेंट सेंटर में कैसे जाट बलवान तैयार होते हैं।

वीरता की मिसाल जाट रेजीमेंट

अटूट बल व अद्भुत युद्ध कौशल की जीती जागती मिसाल है भारतीय सेना और इसका महत्वपूर्ण अंग है जाट रेजीमेंट। चाहे भारत-पाकिस्तान का युद्ध हो या इंडो-चाइना वार। जाटों ने हर जंग में अपनी वीरता का लोहा मनवाया है। भारतीय सेना में जाट रेजीमेंट का नाम पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है।

एक नजर में जाट रेजीमेंट

1975 में बनी थी जाट रेजीमेंट

1947 के बाद से भारतीय रेजीमेंट में बदला स्वरूप

152 साल ब्रिटिश राज में रही रेजीमेंट

23 वाहिनियां हैं जाट रेजीमेंट के अंतर्गत

17 वीं बटालियन से थे महावीर चक्र विजेता कैप्टन अनुज नैयर

साढ़े तीन बजे से दिन की शुरुआत

जाट रेजीमेंट सेंटर के रिक्रूट (प्रशिक्षु) सुबह ठीक 3.30 बजे जागते हैं। इसके बाद पांच बजे तक ग्राउंड पहुंचते हैं। यहां हल्की दौड़ से लेकर अभ्यास का समय शुरू होता है। रिक्रूट के इंस्ट्रक्टर (ट्रेनर) बताते हैं कि पैदल सेना में रिक्रूट प्रशिक्षण का उद्देश्य एक आत्मविश्वासी, उत्तम, अनुशासित, आत्मनिर्भर जवान तैयार करना है जो शारीरिक व मानसिक रूप से कठोर हों।

छोटी पड़ जाती दस फीट की सात दीवार

रिक्रूट को जवान बनाने का प्रशिक्षण बेहद कड़ा होता है। इसी क्रम में रोज रायफल, पिट्ठू समेत रोज महज दो फिट चौड़े टनल से गुजारा जाता है। नदी-नाले या खाई पार करने के लिए रस्सी पर लटकते हुए लंबी दूरी तक जाने की ट्रेनिंग दी जाती है। खड़ी चढ़ाई पार करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षित रिक्रूट की पहुंच के आगे दस-दस फीट की दीवार भी छोटी पड़ जाती है। वे दीवार पर चढ़कर पार निकल जाते हैं।

शौर्यता में जेआरसी का अलग है इतिहास

जाट रेजीमेंट का वीरता भरा इतिहास है। यही वह रेजीमेंट है, जिसके पास आजादी के बाद आठ महावीर चक्र समेत शायद सबसे ज्यादा वीरता पुरस्कार हैं। सन् 1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों को नेस्तोनाबूद करने वाले शहीद कैप्टन अनुज नैयर भी जाट रेजीमेंट से थे।

एक दिन में चालीस किलोमीटर तक दौड़

इन नौ महीनों में रिक्रूट को पहले 19 हफ्ते बेसिक और 15 हफ्ते एडवांस ट्रेनिंग दी जाती है। शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए रोजाना दस से बारह घंटे तक इम्तिहान देना होता है। बेसिक ट्रेनिंग के दौरान शुरू के चार हफ्तों में 6.4 किलोग्राम वजन (पिट्ठू और बंदूक) के साथ 16 किलोमीटर तक दौड़ निकालनी होती है। वहीं, एडवांस ट्रेनिंग में परीक्षा और कड़ी हो जाती है। इसमें पीठ पर वजन 22 किलो होता है ।

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