Kargil Vijay Diwas: पांच मीटर पर दुश्मन और जीत गए पांच घंटे तक जंग Bareilly News

द्रास सेक्टर से टारगेट की तरफ बढऩा शुरू किया। उन ऊंची पहाडिय़ों तक पहुंचना था जहां तक पहुंचने के लिए न तो पर्याप्त ऑक्सीजन थी और न ही रास्ता।

By Abhishek PandeyEdited By: Publish:Thu, 25 Jul 2019 03:27 PM (IST) Updated:Thu, 25 Jul 2019 09:15 PM (IST)
Kargil Vijay Diwas: पांच मीटर पर दुश्मन और जीत गए पांच घंटे तक जंग Bareilly News
Kargil Vijay Diwas: पांच मीटर पर दुश्मन और जीत गए पांच घंटे तक जंग Bareilly News

बरेली [शांत शुक्ला] : वर्ष 1999, मई का आखिरी सप्ताह था। अचानक जाट रेजीमेंट सेंटर को निर्देश मिले कि सीमा पर तनाव है इसलिए तैयारियां शुरू कर दें। कभी भी बुलाया जा सकता है। अलर्ट जारी हुआ, जो जवान छुट्टी पर थे, उन्हें वापस बुलाकर लिया गया। इसके बाद 17 वीं जाट रेजीमेंट के जांबाज वहां पहुंच गए।

द्रास सेक्टर से टारगेट की तरफ बढऩा शुरू किया। उन ऊंची पहाडिय़ों तक पहुंचना था जहां तक पहुंचने के लिए न तो पर्याप्त ऑक्सीजन थी और न ही रास्ता। मगर, मकसद उन पोस्टों पर फतह करना था जिन पर दुश्मन देश ने कब्जा कर लिया था इसलिए बिना कुछ सोचे जवान आगे बढ़ते गए।

बर्फ से ढकी पहाडिय़ों में रास्ता बनाने के लिए जेआरसी के जवानों गेती और बेल्चा तक चलाए। चूंकि ऊंचाई पर बैठा दुश्मन नीचे हमारे जवानों की हर गतिविधि पर नजर रखे था इसलिए रात में यह काम होता। बीच-बीच में 16 हजार 250 फीट की ऊंचाई पर बैठा दुश्मन गोलियां भी चलता मगर, हमारे जवान बढ़ते गए। साथ में 32 किलो का स्लीपिंग बैग, जिसमें 72 घंटे का खाना और ड्राईफ्रूट थे। यह सब तो था ही मगर, हमारे जाबांज बात के लिए भी प्रशिक्षित थे कि यदि युद्ध के दौरान कुछ भी खाद्य नहीं मिला तो पेड़-पौधों की पत्तियां खाकर किस तरह खुद को जिंदा रखते सकते हैं।

गोलाबारी के बीच जवानों को इशारों में समझा दिया जाता कि जब दुश्मन पर फायरिंग की जाएगी तो उन्हें अगले किस प्वाइंट पर पहुंचना है। उसी फायरिंग के बीच दिमाग शरीर और शस्त्र से शक्तिशाली जवान अगले प्वाइंट की ओर बढ़ते जाते।

यह था टारगेट
17 वीं जाट रेजीमेंट को टाइगिल हिल के आसपास स्थित पिंपलवन पिंपलटू रोकी नो वेलबैक जैसी पहाडिय़ों को दुश्मन के कब्जे से मुक्त कराना था। इस पूरे इलाके को पिंपल कांप्लेक्स भी कहा जाता है। साथ ही इस रेजीमेंट को आपात स्थित में उस बटालियन को बैकअप भी देना था जोकि टाइगर हिल की तरफ बढ़ रही थी। हालात को मात देते हुए हमारे जवान नौ हजार फीट की ऊंचाई तक पहुंच चुके थे। इसके बाद पेड़ों का नामोनिशान नहीं था। जैसे-जैसे वे टारगेट के करीब पहुंच रहे थे, वैसे-वैसे दुश्मन के करीब भी पहुंच रहे थे। पूरी रात गोलियां चलतीं। जवान घायल होते, उन्हें प्राथमिक उपचार दिया जाता। कई तो ऐसे थे जोकि गोली लगने के बाद भी आगे बढ़ते जाते। जो आगे नहीं बढ़ पाते, उन्हें हीं छोड़ दिया जाता।

रात नौ बजे निर्णायक हमला
जैसा कि जाट रेजीमेंट सेंटर के अधिकारियों ने बताया क‍ि छह जुलाई 1999 का दिन था, जब जाट रेजीमेंट के जवान के जवान निर्णायक जंग के लिए बढ़ रहे थे। रात करीब नौ बजे थे। हमारी सेना पहाड़ी पर पहुंच चुकी थी, बीस मीटर की दूरी पर दुश्मन था। हमारे जांबाजों ने ग्रेनेड और दूसरे हथियारों से हमला किया।

सामने से भी जवाब आता जा रहा था। करीब पांच घंटे तक गोला बारी होती गई। लड़ाई होते होते यह फासला पांच मीटर तक आ गया। भारतीय सेना और जाट सेंटर के जांबाजों के आगे दुश्मन टिक न सका और घुटने टेक दिए। कुछ दिन पहले जिन पहाडिय़ों पर दुश्मन का कब्जा था, वहां तिरंगा शान से लहराने लगा।

इस युद्ध में कैप्टन अनुज नैय्यर शहीद हुए थे जिन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। साथ ही जाट रेजीमेंट सेंटर को पराक्रम और शूरवीरता के लिए कारगिल थियेटर ऑनर और साइटेशन यूनिट अवार्ड से सम्मानित किया गया। 

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