Jagran Investigation : गजब बरेली में दांतों के डाॅक्टर चला रहे ‘अपना’ ट्रामा सेंटर
Jagran Investigation अस्पताल और ट्रामा सेंटर के नाम पर महज एक शटर की दुकान है तो कहीं बुनियादी मानकों का ही पता नहीं। दांतों के डाक्टर के बोर्ड के साथ दुकान में ही अस्पताल और ट्रामा सेंटर भी खुला है।
बरेली, जेएनएन। Jagran Investigation : अस्पताल और ट्रामा सेंटर के नाम पर महज एक शटर की दुकान है तो कहीं बुनियादी मानकों का ही पता नहीं। दांतों के डाक्टर के बोर्ड के साथ दुकान में ही अस्पताल और ट्रामा सेंटर भी खुला है। अस्पताल के लिए जरूरी इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) लगाना तो दूर कई जगह तथाकथित रूप से चल रहे अस्पताल प्रशासन को इसकी जानकारी तक नहीं है। दैनिक जागरण संवाददाता ने ‘ट्रामा का ड्रामा’ अभियान में शनिवार को बदायूं रोड के ट्रामा सेंटरों का जायजा लिया। एक रिपोर्ट...।
केस-एक
अस्पताल अलग तो बोर्ड पर भी बीडीएस का नंबर कैसे
जागरण संवाददाता शनिवार को बदायूं रोड पर बने अपना हास्पिटल एवं ट्रामा सेंटर पहुंचे। यहां महज एक शटर की दुकान थी। अंदर दाखिल हुए तो गैलरी के रास्ते करीब दो सौ वर्ग गज जगह मिली। यहां बड़े हाल में कुछ बेड पड़े थे। एक पर मरीज लेटा था। पास ही स्टाफ था। अंदर बीडीएस डा.आशीष शर्मा मिले। ट्रामा सेंटर के नियमों के बारे में पूछने पर बोले कि ट्रामा सेंटर किराए पर है, मुझे जानकारी नहीं। हालांकि ट्रामा सेंटर के बोर्ड और उनके बोर्ड पर एक ही मोबाइल नंबर होने की बात पर वह बात टाल गए।
केस-दो
बिना विशेषज्ञ सर्जन, लिखा ट्रामा सेंटर
बदायूं रोड पर ही चौरासी घंटा मंदिर से कुछ दूरी पर पलक अस्पताल बना है। दो से तीन मंजिला बने अस्पताल के संचालक से मिलने से पहले स्टाफ से अस्पताल के संसाधनों की जानकारी ली। पता चला कि अभी तक यहां केवल आइसीयू लिखा था, बन अब रहा है। वहीं, ईटीपी के बारे में तो किसी को पता तक नहीं था। अंदर केबिन में डा.अर्जुन गुप्ता ने बुलवाया। यहां जाकर उनसे ट्रामा सेंटर की गाइडलाइन और विशेषज्ञ सर्जन के बारे में पूछा। इस पर पता चला कि सालों पहले ट्रामा सेंटर बंद हो चुका है। अब केवल साधारण केस देखते हैं। हालांकि अस्पताल का नाम वही है।
बने पत्थर दिल, गरीबों को लाखों का बिल
भुता के गांव खरदा के रहने वाले श्रीराम के मुताबिक उसने भाई रामपाल को बीते सात अगस्त महीने में दूल्हा मियां की मजार के पास बने कस्तूरी नर्सिंग होम में भर्ती कराया था। डाक्टर एके सिंह ने कहा कि आंत में परेशानी है, सही होने में कुछ दिन लगेंगे। इलाज में दवा समेत करीब 30-40 हजार रुपए खर्च बताया। लेकिन कई दिन तक इलाज के बावजूद भाई ठीक नहीं हुई। हालात गंभीर होती गई, इस बीच अस्पताल प्रशासन व मैनेजर मोहम्मद नदीम ने कई बार में 1.90 लाख रुपये जमा करा लिए। इसके बाद भी और रुपयों की मांग की। मना किया तो गुस्साए डाक्टर ने मरीज ले जाने को कहा। इसके करीब दो घंटे के अंदर ही दो सितंबर को भाई मर गया। पोस्टमार्टम भी हुआ था। पीड़ित ने जिलाधिकारी से मामले की शिकायत की है।