विश्व हिंदी दिवस एक्सक्लूसिव : सात समंदर पार तक फैला रहे हिंदी की सोंधी खुशबू

महाभारतकालीन धरोहरों को खुद में समेटे रुहेलखंड की क्रांतिधर्मी धरती साहित्यिक दृष्टि से भी बेहद उर्वर रही है।

By Edited By: Publish:Thu, 10 Jan 2019 02:06 AM (IST) Updated:Thu, 10 Jan 2019 12:31 PM (IST)
विश्व हिंदी दिवस एक्सक्लूसिव : सात समंदर पार तक फैला रहे हिंदी की सोंधी खुशबू
विश्व हिंदी दिवस एक्सक्लूसिव : सात समंदर पार तक फैला रहे हिंदी की सोंधी खुशबू

बरेली(स्पेशल डेस्क) : महाभारतकालीन धरोहरों को खुद में समेटे रुहेलखंड की क्रांतिधर्मी धरती साहित्यिक दृष्टि से भी बेहद उर्वर रही है। सदियों से यहां के साहित्यसेवियों ने अपनी रचनाशीलता के बदौलत हिंदी को समृद्ध किया है। देश-दुनिया के विभिन्न देशों में इसकी व्यापकता और स्वीकार्यता बढ़ाने के भरपूर यत्न किए हैं। यह परंपरा आज भी निरंतर कायम है, आगे बढ़ रही है और विस्तार पा रही है। आज विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर आपको कुछ ऐसे ही साहित्यसेवियों से रू-ब-रू कराते हैं जो हिंदी को आगे बढ़ाने के जतन में जुटे हुए हैं..। 

महज 13 साल की उम्र में ही उपन्यास लिखकर कलम की दुनिया में मजबूत दखल देने वाले सुकेश साहनी आज देश-दुनिया में लघुकथा लेखन में खास पहचान रखते हैं। उनकी लघुकथाओं पर जर्मनी के छात्रों ने एमफिल की। कहानी 'रोशनी' पर दूरदर्शन के लिए टेलीफिल्म बनी। सुकेश के चर्चित लघुकथा संग्रह 'डरे हुए लोग' का अंग्रेजी, मराठी, पंजाबी, गुजराती और उर्दू में अनुवाद हुआ। सुकेश जी ने दुनियाभर में हिंदी की लघुकथाओं का विशाल पाठक वर्ग तैयार करने के लिए वर्ष 2000 में लघुकथा डॉट कॉम की शुरुआत की। उन्हें रचनाधर्मी रामेश्वर काम्बोज 'हिमाशु' का सहयोग मिला। काम्बोज के बेटे निशांत और सुशांत ने वेबसाइट डिजाइन की। यह वो दौर था जब इंटरनेट आज की तरह हर जेब में नहीं था। आम लोगों की पहुंच से काफी दूर हुआ करता था। पर, दुनिया के अन्य देशों तक भी हिंदी पहुंचे, इसी सोच के साथ यह परिवर्तनकामी पहल की। सुकेश कहते हैं, 'तब मुझे लगा कि इंटरनेट अपनी भावाभिव्यक्ति का सर्वोत्तम माध्यम तो हो ही सकता है, इससे हिंदी की व्यापकता को भी और विस्तार मिलेगा। वर्ष 2007 से इसे नियमित स्तम्भों के साथ मासिक कर दिया गया।'

शहर के महानगर पार्ट-2 में रहने वाले भूगर्भ जल विभाग के निदेशक पद से सितंबर, 2016 में सेवानिवृत्त हुए सुकेश साहनी अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में पूछने पर कहते हैं कि पहले तो नौकरी की व्यस्ताओं के चलते अक्सर पत्नी रीता की बनाई चाय की चुस्कियों के साथ लिखने के लिए आधी रात बाद का वक्त निकालता था। इसी समय में लघुकथा डॉट कॉम का काम भी करता रहा। वर्षो से लेखन-संपादन का काम निरंतर जारी है। अब थोड़ी फुर्सत है। इत्मीनान से सोचने और लिखने का समय मिल जाता है। हम लघुकथा डॉट कॉम को और सुविधाजनक, सुदर्शन और वैविध्य पूर्ण बनाने के उपक्रम में जुटे हैं, ताकि वैश्रि्वक स्तर पर हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं की रचनाएं और पढ़ी जाएं। वे बताते हैं कि लघुकथा डॉट कॉम के आज करीब 50 देशों में लाखों पाठक हैं। कलम की दुनिया से नाता रखने वाले हर शख्स को आने वाले दौर पर नजर रखते हुए इंटरनेट से जुड़ाव बढ़ाना ही होगा, वरना हम हाशिए पर चले जाएंगे या कर दिए जाएंगे। लंबी साधना के बाद तपकर आनी चाहिए रचना सुकेश साहनी कहते हैं कि इस सच को स्वीकारने में मुझे कतई गुरेज नहीं है कि अधिकतर युवा रचनाकारों की कृतियों में 'आच' नहीं है, क्योंकि वे लंबी साधना के बाद तपकर सामने नहीं आ रहीं। नई पीढ़ी को और अध्ययनशीलता विकसित करनी होगी। लेखन यात्रिक नहीं होना चाहिए। प्रयोग के नाम पर रचना ऐसी पहेली न बन जाए जिसे पढ़ने के बजाय पाठक उसे सुलझाने की माथापच्ची में जुटा रहे। लेखन में जीवन की धड़कन होनी चाहिए।

..पर बनी रहे किताबों की भूख

सुकेश कहते हैं कि इंटरनेट के प्रसार के चलते फेसबुक, वाट्सएप जैसी तमाम सोशल साइट्स के जरिए भी आज हिंदी विस्तार पा रही है। इससे सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि असाहित्यिक लोगों में भी पढ़ने-लिखने की रुचि पैदा हो रही है। पढ़ने की भूख बिना किताबों के भी शात हो रही है। पर, मेरा मानना है कि किताबों की भूख बनी रहनी चाहिए। हम हिंदी वाले अगर खुद को तकनीक से जोड़ते चलें और लिखने से पहले खूब पढ़ें तो रचना में भी जान आएगी और हमारी हिंदी वैश्रि्वक स्तर पर और सम्मान पाएगी।

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