Health : सावधान बरेली में लाड़लों को चिड़चिड़ा बना रहा स्मार्टफोन, एकाग्रता शक्ति कमजोर करने के साथ दे रहा हाइपरटेंशन, जानिए क्या है स्थिति

Health आधुनिक हो रहे दौर के साथ ही बच्चे भी हाईटेक हो रहे हैं। एक दौर था जब बच्चे तड़के ही क्रिकेट खेलने के लिए लिए मैदान पर पहुंचना शुरू कर देते थे। लेकिन कोरोना संक्रमण का ग्रहण मैदान की रौनक पर भी पड़ा। वर्तमान में स्थिति यह है

By Ravi MishraEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 09:26 AM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 09:26 AM (IST)
Health : सावधान बरेली में लाड़लों को चिड़चिड़ा बना रहा स्मार्टफोन, एकाग्रता शक्ति कमजोर करने के साथ दे रहा हाइपरटेंशन, जानिए क्या है स्थिति
सावधान बरेली में लाड़लों को चिड़चिड़ा बना रहा स्मार्टफोन

बरेली, जेएनएन। आधुनिक हो रहे दौर के साथ ही बच्चे भी हाईटेक हो रहे हैं। एक दौर था जब बच्चे तड़के ही क्रिकेट खेलने के लिए लिए मैदान पर पहुंचना शुरू कर देते थे। लेकिन, कोरोना संक्रमण का ग्रहण मैदान की रौनक पर भी पड़ा। वर्तमान में स्थिति यह है कि बच्चों के हाथों में क्रिकेट और बाल नहीं बल्कि उनके हाथों में स्मार्ट फोन आ गया है। संक्रमण के चलते स्कूल भी बंद हैं। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई आनलाइन हो रही है। यही कारण है पढ़ाई के बाद भी बच्चे अपना ज्यादातर समय फोन पर ही बीता रहे हैं।

चिकित्सकों के साथ ही विशेषज्ञों का कहना है कि फोन के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चे तनाव व मानसिक रूप से कमजोर हो रहे हैं। उनका मानना है कि बच्चों में दो वर्षों से गुस्सा व चिड़चिडा़पन जैसी आदत बनने लगीं हैं। संक्रमण के दौरान बच्चे पढ़ाई और गेम के लिए लैपटाप, फोन व अन्य उपकरणों का इस्तेमाल अधिक करने लगे हैं। इन उपकरणों के अत्याधिक प्रयोग के कारण बच्चों में एकाग्रता की कमी होती जा रही है। विशेषज्ञों की मानें तो ज्यादा स्मार्ट फोन के इस्तेमाल से बच्चों में हाइपर टेंशन की शिकायत काफी आ रही है। ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों का फोन इस्तेमाल करने के लिए समय सारणी निर्धारित करें। साथ ही बच्चों को अच्छा वातावरण देने की जरूरत है।

हर वक्त घर में रहने के दौरान फोन पर ज्यादा समय देने पर बच्चों में एटेंशन डेफिसिट व्यवहार देखने को मिलता है। इसमें बच्चों में तनाव और दुश्चिंताएं बढ़ जाती हैं। साथ ही सामाजिक अलगाव की समस्याएं होने का भी खतरा बढ़ जाता है। इसलिए जरूरी है कि बच्चे रोज सुबह घर के आसपास पार्क या पार्क न होने पर छत पर ही टहलें। साथ ही शिक्षकों व दोस्तों से फोन पर बात करते रहें। डा. हेमा खन्ना, मनोविज्ञानिक सलाहकार

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