बरेली में बेटियों को हुनरमंद बना रहीं गोमती

मिट्टी की मूर्तियां बनाने का काम 40 साल पुराना है। घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि बच्चों को उच्च स्तर की पढ़ाई कराई जा सके। दीपावली के आसपास होने वाले मुख्य त्योहारी सीजन में ही एक लाख रुपये की बचत हो जाती है। आज जिस तरह युवा रोजगार को भटक रहे हैं उससे अच्छा अपना ही काम है। सिर्फ इसलिए बेटियों को हुनरमंद बना रहे हैं ताकि उन्हें भविष्य में नौकरी के लिए भटकना न पड़े।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 27 Oct 2021 05:36 AM (IST) Updated:Wed, 27 Oct 2021 05:36 AM (IST)
बरेली में बेटियों को हुनरमंद बना रहीं गोमती
बरेली में बेटियों को हुनरमंद बना रहीं गोमती

जागरण संवाददाता, बरेली: मिट्टी की मूर्तियां बनाने का काम 40 साल पुराना है। घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि बच्चों को उच्च स्तर की पढ़ाई कराई जा सके। दीपावली के आसपास होने वाले मुख्य त्योहारी सीजन में ही एक लाख रुपये की बचत हो जाती है। आज जिस तरह युवा रोजगार को भटक रहे हैं, उससे अच्छा अपना ही काम है। सिर्फ इसलिए बेटियों को हुनरमंद बना रहे हैं, ताकि उन्हें भविष्य में नौकरी के लिए भटकना न पड़े।

सुर्खा निवासी गोमती देवी की उम्र लगभग 80 वर्ष है। पति से मूर्तियां बनाने का हुनर सीख उन्होंने खुद तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि इसकी हर एक बारीकी बहु और बेटियों को भी सिखाई। वह कहती हैं इतना पढ़-लिख जाने के बाद भी लोग नौकरी के लिए घर छोड़कर दूर शहरों में बसे हैं। वहां भी गुजर बसर नहीं हो पा रहा। नौकरी की तलाश में सबसे ज्यादा दिक्कत लड़कियों को उठानी पढ़ती है। इसलिए छोटी उम्र से ही उन्हें ऐसा हुनर सिखा रही हूं, जिससे वह भविष्य में स्वयं अपनी किस्मत लिख सकें।

स्कूल का होमवर्क करने के बाद मूर्तियों को रंग देती हैं बेटियां

तन्या कक्षा सात, भूमिका कक्षा पांच और आर्या कक्षा चार में पढ़ती हैं। स्कूल से घर पहुंचने पर पहले वे खाना खाती हैं और फिर चार से पांच घंटे दादी गोमती देवी और मां शशिप्रभा से मूर्तियों में रंग भरना सीखकर छोटी मूर्तियों में रंग भी भरती हैं। शशिप्रभा ने बताया कि मूर्तियों की बिक्री ज्यादा हो इसके लिए हर साल रंगों को बदलना पड़ता है। मूर्तियों को आकर्षक रूप देने के लिए जो रंग बनाने पड़ते हैं, वो बाजार में नहीं मिलते है।

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