Emergency Black Day News : बरेली के लोकतंत्र सेनानी बाेले, काली रात को याद कर आज भी कांप उठता है कलेजा

Emergency Black Day News आजाद भारत के इतिहास पर पुती कालिख। जिन्होंने आपातकाल का दौर देखा उनकी जुबां पर बस यही वाक्य निकलता है इमरजेंसी का नाम सुनकर। इस दौर में जुल्म सह चुके बुजुर्गो ने आपबीती सुनाई तो वे खुद भी सिहर उठे।

By Ravi MishraEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 09:33 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 09:33 AM (IST)
Emergency Black Day News :  बरेली के लोकतंत्र सेनानी बाेले, काली रात को याद कर आज भी कांप उठता है कलेजा
Emergency Black Day News : बरेली के लोकतंत्र सेनानी बाेले, काली रात को याद कर कांप उठता है कलेजा

बरेली, अंकित शुक्ला। Emergency Black Day News : आजाद भारत के इतिहास पर पुती कालिख। जिन्होंने आपातकाल का दौर देखा उनकी जुबां पर बस यही वाक्य निकलता है इमरजेंसी का नाम सुनकर। इस दौर में जुल्म सह चुके बुजुर्गो ने आपबीती सुनाई तो वे खुद भी सिहर उठे और सुनने वालों को भी हैरान कर दिया। आपातकाल की यादों को 24 जून की शाम वीरेंद्र अटल समेत अन्य लोकतंत्र सेनानियों ने साझा किया।

वीरेंद्र अटल ने बताया कि आजादी मिलने के चंद बरसों बाद ही आजादी के मायने बदल जाएंगे इसका किसी को आभास भी नहीं था। अत्याचार और खौफ चरम पर पहुंच गया। अचानक 25 जून 1975 को सुबह आठ बजे जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की रेडियो पर घोषणा की तो अधिकांश लोग समझ भी नहीं पाए। देखते ही देखते कांग्रेसी नीति का विरोध करने वाले गिरफ्तार किए जाने लगे। अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम अखबारों ने अगले दिन 27 जून को या तो अखबारों के संपादकीय कॉलम सपाट छोड़ दिए गए या फिर काली स्याही पुती हुई नजर आई।

इस अपराध में भी अखबारों के संपादकों और मालिकों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। अविवाहित लोगों की जबरन नसबंदी और कर्मचारियों को नसबंदी के लिए पकड़ने का खौफ इस कदर था कि लोग बस के रुकने पर भागने लगते कि कहीं टीम न आ गई हो। उन्होंने बताया कि इंदिरा नीति के विरोध में सत्याग्रह करने वाले चेतराम लोधी को किला पुलिस ने गिरफ्तार कर इतनी यातना दीं कि उनकी हवालात में ही मौत हो गई।

सरकार विरोधी चस्पा किए गए थे पोस्टर

25 जून 1975 को आपातकाल लग चुका था। 27 अक्टूबर की रात उप्र के बरेली शहर के थानों, कोतवाली, डीएम ऑफिस, आवास आदि पर सरकार विरोधी पोस्टर चिपकाए। इसमें एक साथी पकड़ा गया। उसकी मुखबिरी पर पुलिस ने 28 अक्टूबर को सहसवानी टोला स्थित मकान पर पहुंची। तत्कालीन कोतवाल हाकिम राय से बिना दरवाजा खटखटाए घर में दाखिल होने पर लोगों से तीखी बहस हुई, लेकिन उनके हाथ सरकार विरोधी नारे लिखे पोस्टरों का बंडल लग गया था। बताया कि सरकार विरोधी नारेबाजी करने पर कोतवाल ने सभी को डंडे मारना शुरू कर दिया। एक-एक कर सात डंडे तोड़ दिए, लेकिन वह कुछ किसी से उगलवा नहीं सके। इंटेलीजेंस की सूचना पर उन्होंने पश्चिमी उप्र के आंदोलन की जानकारी लेनी चाही। हर बार जवाब न में ही दिया।

डीएम ने दी थी परिवार को बंद करने की धमकी

वीरेंद्र अटल बताते हैं कि पुलिसिया अंदाज में धमकाते हुए डीएम बोले, सब बीए, एमएससी धरे रह जाएंगे। परिवार वालों को भी बंद करा दूंगा। रातभर की पिटाई से मैं आहत था, इसलिए तपाक से बोल दिया- परिवार वालों को भी बंद करा दो। डीएम ने भड़ककर कहा, बहुत बड़ा देश भक्त बनता है तो मैंने भी कह दिया कि साहब इस समय कौन किसकी सुन रहा है। इस पर उन्होंने कोतवाल को इशारा किया। कोतवाल ने कांस्टेबल से प्लास लाने को कहा। जब तक कुछ समझ में आता, उससे पहले ही कोतवाल ने प्लास से दायें हाथ का अंगूठा दबा दिया। खून निकलने लगा।

लाेकतंत्र सेनानी बाेले - पैदल ही कोर्ट ले जाने का दिया था निर्देश

लोकतंत्र सेनानी नेकपुर निवासी राजेंद्र कनौजिया बताते हैं कि 23 सितंबर को बरेली कालेज से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। कालेज से बारादरी थाने रिक्शे से ले गए थे। इसके बाद चालान कर जेल भेज दिया गया। हमारे खिलाफ डिफेंस इंडियन रूल का मुकदमा चला। पुलिसकर्मियों को निर्देश थे कि कोर्ट रिक्शे से लेकर नहीं जाएं, पैदल ही कचहरी पहुंचें।

मुकदमे से बरी हाेने के बाद भी खत्म नहीं हुए आपातकाल के जुल्म

लोकतंत्र सेनानी पुराना शहर निवासी वेदप्रकाश वर्मा बताते हैं कि आपातकाल के जुल्म, मुकदमा से बरी होने पर भी खत्म नहीं हुए। फरार होने पर कई लोगों पर पुलिस ने मीसा लगा दी। जबकि बरेली में सभी पर डीआइआर लगाई गई। अब भी किसी को ये किस्से सुनाता हूं, तो लोग सिहर जाते हैं। वह दौर बड़ा ही खौफनाक था। उस समय न कोई अपील, न कोई दलील और न कोई वकील वाली स्थिति थी। लोकतंत्र सेनानियों को पकड़कर सिर्फ यातनाएं दी जाती थीं।

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