शाहजहांपुर में आजादी के बाद उतरा बाबा साहब की काेठी से कांग्रेस का झंडा, लहराया भगवा, भाजपा में शामिल हुए पूर्व राज्यमंत्री जितिन प्रसाद

शाहजहांपुर में आजादी के बाद से अब तक जिले में कांग्रेस का मलतब कोठी था। तमाम नेताओं ने दल बदले लेकिन कोठी कांग्रेसियों का स्वाभिमान रही। नेताओं व कार्यकर्ताओं में आपस में भले ही मतभेद हुए लेकिन उनके लिए कोठी का निर्णय सर्वोपरि था।

By Ravi MishraEdited By: Publish:Wed, 09 Jun 2021 09:30 PM (IST) Updated:Thu, 10 Jun 2021 06:20 AM (IST)
शाहजहांपुर में आजादी के बाद उतरा बाबा साहब की काेठी से कांग्रेस का झंडा, लहराया भगवा, भाजपा में शामिल हुए पूर्व राज्यमंत्री जितिन प्रसाद
शाहजहांपुर में आजादी के बाद उतरा बाबा साहब की काेठी से कांग्रेस का झंडा

बरेली, जेएनएन। शाहजहांपुर में आजादी के बाद से अब तक जिले में कांग्रेस का मलतब कोठी था। तमाम नेताओं ने दल बदले, लेकिन कोठी कांग्रेसियों का स्वाभिमान रही। नेताओं व कार्यकर्ताओं में आपस में भले ही मतभेद हुए, लेकिन उनके लिए कोठी का निर्णय सर्वोपरि था। पार्टी नेतृत्व भी इसको बेहतर तरीके से समझता था। यही कारण था कि यहां टिकट आवंटन से लेकर संगठन तक के निर्णय बिना कोठी की रजामंदी के नहीं होते थे, लेकिन कांग्रेस का झंडा उतरने के साथ ही बाबा साहब की कोठी अब भगवामय हो गई है।

जिले के साथ-साथ प्रदेश की राजनीति में बाबा साहब यानी कुंवर जितेंद्र प्रसाद की कोठी का कद ऐसे ही नहीं बड़ा। पिता कुंवर ज्योति प्रसाद की राजनीतिक विरासत को अपनी साफ छवि के बल पर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया। उनके छोटे भाई कुंवर जयेंद्र प्रसाद उर्फ छोटे बाबा साहब जिले की राजनीति की बागडोर संभाले हुए थे। एक दौर था जब यह यह कोठी पूरे प्रदेश में कांग्रेस की धुरी थी। प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर का कोई नेता आता, कोठी पर हाजिरी जरूर लगाता। जितेंद्र प्रसाद के छोेटे भाई जयेंद्र प्रसाद उर्फ छोटे बाबा साहब का भी इसमें अहम योगदान था।

जितेंद्र प्रसाद के निधन के बाद बेटे जितिन प्रसाद ने राजनीतिक विरासत संभाली तो रसूख लगभग वैसा ही कायम रहा। मनमोहन सरकार के दोनों कार्यकाल में उन्हें मंत्रिपद मिला। प्रदेश में भी उनका अहम कद रहा। यहां के निर्णय बिना पूछते नहीं होते थे।

कुंवर जितेंद्र प्रसाद की परदादी पूर्णिमा देवी रविंद्रनाथ टैगार की भांजी थीं। उनकी मां प्रमिला देवी कपूरथला राजघराने से थीं। पिता कुंवर ज्योति प्रसाद महात्मा गांधी जी से प्रेरित थे। आजादी के बाद से वह कांग्रेस में रहे। एमएलसी भी चुने गए। उनके निधन के बाद 1970 में जितेंद्र प्रसाद एमएलसी बने। 1971 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद 1980 में फिर सांसद बने। 1994 से 1999 तक वह राज्यसभा सदस्य रहे। 1999 में सांसद बने। 2001 में उनका निधन हो गया था।

साफ छवि के दम पर जितेंद्र प्रसाद का कद केंद्रीय राजनीति में बढ़ता गया। 1984 में राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनने पर उन्हें अपना राजनीतिक सलाहाकर बनाया। इसके बाद 1991 में जब पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भी जितेंद्र प्रसाद को अपना राजनीतिक सलहाकार बनाया। 1995 में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, 1997 में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के अलावा विभिन्न पदों व समितियों में रहते हुए कांग्रेस को मजबूत करने का काम किया। 2000 में सोनिया गांधी के खिलाफ उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव भी लड़ा था, हालांकि हार गए थे।

जयेश हुए थे पहले शामिल

जितिन प्रसाद के चचेरे भाई जयेश प्रसाद दो बार एमएलसी रह चुके हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान वह भाजपा में शामिल हुए थे। पार्टी प्रत्याशी की जीत में अहम भूमिका भी निभाई थी, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने पंचायत चुनाव में उन्हें संगठन विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाते हुए निष्कासित कर दिया था।

chat bot
आपका साथी