विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही चुनावी सरगर्मियां शुरु, कई बसपा नेता सपा में हुए शामिल
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही सियासी सरगर्मियां शुरू हो गई हैं। चुनाव लड़ने वाले नेताओं ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है। कोई विधानसभा में मतदाताओं के बीच पकड़ बनाने में जुटा है तो कोई सियासी नैया पार लगाने को दल बदलने में।
बरेली, जेएनएन। विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही सियासी सरगर्मियां शुरू हो गई हैं। नेता नफा नुकसान का गणित लगाने में जुट गए हैं। यही वजह है कि नेता अब इस बात की गणित लगाकर पार्टियां बदल रहे हैं कि उन्हें किस पार्टी में टिकट मिल सकती है और किस पार्टी से चुनाव लड़ने पर उनकी जीत सुनिश्चित हो सकती है। इसमें माहौल, जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर अब नेता सियासी नैया पार लगाने के लिए जुटे हुए हैं। विधानसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आएगा। ये चुनावी सरगर्मियां और तेज होगी। शनिवार को बसपा से सपा में आए विजयपाल यादव ने 2017 में बसपा से चुनाव तो लड़ा लेकिन वह हार गए। इसलिए अब वह सपा की साइकिल पर सवार हो गए क्योंकि वर्तमान में जिले की ज्यादातर विधानसभा पर भाजपा का कब्जा है। ऐसे में उन्हें साइकिल ही रास आई और पत्नी समेत उस पर सवार हो गए। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएंगे नेताओं का एक पार्टी से दूसरी पार्टी में आना जाना और तेज होगा। पार्टियां भी अपना जनाधार और सीटें बढ़ाने के लिए ऐसे प्रत्याशियों के लिए दरवाजा खोल देती हैं जिनकेे जीतने की संभावना ज्यादा दिखती हैं।
हाथी ने डुबाया तो साइकिल पर हुए सवार
चुनाव लड़ने वाले नेताओं ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है। कोई विधानसभा में मतदाताओं के बीच पकड़ बनाने में जुटा है, तो कोई सियासी नैया पार लगाने को दल बदलने में। सूबे की राजनीति में बरेली मंडल की मुख्य भूमिका है। रुहेलखंड में समाजवादी पार्टी ने बसपा में तोड़-फोड़ कर दी है। शनिवार को बरेली के पूर्व विधायक, उनकी पत्नी और शाहजहांपुर के पूर्व मंत्री ने सपा का दामन थाम लिया।
पूर्व विधायक विजयपाल सिंह ने 1996 में बसपा से चुनाव लड़ा और तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 2002 में भाजपा से 39 हजार वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे। वर्ष 2007 में बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर विधायक बने। फिर 2012 में बसपा से एक बार फिर चुनाव लड़ा और दूसरे नंबर पर रहे। वर्ष 2017 में भी बसपा से ही चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। उनकी पत्नी सुनीता सिंह ने वर्ष 2009 में बसपा से शाहजहांपुर से चुनाव लड़ा। करीब ढाई लाख वोट मिले। वह भुता और फरीदपुर से एक-एक बार ब्लॉक प्रमुख भी रहीं। विजय पाल सिंह ने कहा कि बसपा सुप्रीमो मायावती भाजपा की कठपुतली बनी हुई हैं। इसी के चलते उन्होंने सपा के साथ किया गठबंधन खत्म कर दिया। मायावती ने पार्टी पर नहीं बल्कि सिर्फ अपने लिए पैसे इकट्ठे करने का काम किया। उनसे दलित समाज नाराज है और वह सपा के साथ आ गया है। जिलाध्यक्ष अगम मौर्य, महासचिव सत्येंद्र यादव आदि ने उन्हें बधाई दी है। उधर, शाहजहांपुर के पूर्व राज्यमंत्री अवधेश वर्मा ने 1995 में लोकदल (ब) से राजनीति की शुरुआत की। अप्रैल 1998 में बसपा में रहते 2002 व 2007 में ददरौल से चुनाव जीता। मायावती सरकार में वह राज्यमंत्री बनाए गए थे। 2012 में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। ददरौल चुनाव में उन्हें हार मिली तो 2017 विधानसभा चुनाव में अवधेश वर्मा फिर बसपा में आ गए। विधानसभा चुनाव में तिलहर से उन्हें हार मिली।