BSNL News: सार्थक प्रयासों से आज भी सक्षम हो सकती है मुनाफा कमाने में बीएसएनएल

BSNL News बीएसएनएल की खस्ताहाल दशा के बीच कुछ हालिया संकेतों से यह समझा जा सकता है कि केंद्र सरकार यदि एक बेहतर योजना का प्रारूप तैयार करते हुए उसे कारगर तरीके से क्रियान्वित करे तो निश्चित तौर पर इसे बचाया जा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 04 Oct 2021 10:52 AM (IST) Updated:Mon, 04 Oct 2021 10:52 AM (IST)
BSNL News: सार्थक प्रयासों से आज भी सक्षम हो सकती है मुनाफा कमाने में बीएसएनएल
सार्थक प्रयासों से आज भी सक्षम हो सकती है मुनाफा कमाने में बीएसएनएल। प्रतीकात्मक

अवधेश माहेश्वरी। भारतीय दूरसंचार सेवा के एक अधिकारी ने लगभग 15 साल पहले भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) छोड़कर मल्टीनेशनल कंपनी का करियर के लिए चयन किया। फैसला चौंकाने वाला था। वजह थी कि नवरत्न बीएसएनएल अपने विज्ञापन की टैगलाइन के अनुरूप ‘कनेक्टिंग इंडिया’ की भूमिका में थी। परंतु युवा अधिकारी दृढ़ थे कि कंपनी का लंबे समय चलना मुश्किल होगा, क्योंकि यह संचार क्षेत्र की बदलती जरूरतों के मुताबिक नई योजनाओं पर कार्य नहीं कर रही। लालफीताशाही और भ्रष्टाचार नीचे तक फैल चुका है। वह जब यह बता रहे थे तब लग रहा था कि करियर की तेज रफ्तार में वह गलत अनुमान लगा रहे हैं। परंतु वह जो सोच रहे थे, वही सही था।

सरकार को लाभांश देने वाली नवरत्न बीएसएनएल जल्द बड़ा घाटा दिखाने लगी। टूजी स्पेक्ट्रम की नीलामी में हुई भारी गड़बड़ी से गलाकाट प्रतियोगिता में इसके बचाने का रास्ता भी नहीं दिख रहा था, तो बंद करने के लिए दबाव बनने लगा। वर्ष 2019 में भी इसे बंद करने के लिए कहा जा रहा था, लेकिन सरकार ने सामरिक महत्व की वजह से दृढ़ शब्दों में इन्कार कर दिया। सैन्य और बैंकिंग जरूरतों के लिए बीएसएनएल के नेटवर्क की उपयोगिता को स्वीकार किया। सुदूर गांवों में नेटवर्क विकसित करने और प्राकृतिक आपदाओं के वक्त तेजी से नेटवर्क बनाने में जब निजी कंपनियां हाथ खींच लेती हैं, तब भी बीएसएनएल ही यह बखूबी करती है। कुछ और देशों ने सामरिक क्षेत्र में निजी कंपनियों की सेवाओं से परहेज ही किया है, लेकिन बाजार समर्थक कुछ यूरोपीय देशों का तर्क रखते हैं, जहां सब कुछ निजी संचार कंपनियों के हाथ में है। परंतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के तेजी से विकास और भारत की निजी संचार कंपनियों के सुरक्षा उपायों के प्रति कम सतर्क रहने से सामरिक क्षेत्र को निजी क्षेत्र के हाथों सौंपना बेहतर रास्ता नहीं है। बीएसएनएल के रोगों को दूर कर इसकी सेवाएं सतत रखना बेहतर है।

बीएसएनएल को बचाने की अब बड़ी जरूरत वोडा-आइडिया के संकट ने भी बताई है। व्यापक देनदारी और नेटवर्क के कुशल संचालन के लिए नकदी प्रवाह न होने के चलते वोडा-आइडिया प्रबंधन ने सरकार को अपने शेयर मुफ्त में देने की पेशकश कर दी। भविष्य के हालात का अनुमान लगाकर ही देश की दूसरी बड़ी संचार कंपनी एयरटेल के सुनील मित्तल प्रतिद्वंद्वी कंपनी के पक्ष में सामने आए। सरकार से कहा कि वह वोडा-आइडिया को बचाए। यह जरूरी इसलिए भी था कि वोडा-आइडिया की इतनी बड़ी ग्राहक संख्या है कि वह पिछले कुछ समय में गिरावट के बावजूद इतनी है कि सिर्फ दो कंपनियों का नेटवर्क उसे संभालने की स्थिति में नहीं है।

महंगे 4जी और 5जी स्पेक्ट्रम के चलते कोई विदेशी कंपनी आने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में चौथी कंपनी का कार्य सिर्फ बीएसएनएल ही कर सकती है। इसे अपने नेटवर्क को भी दुरुस्त करना होगा। बकाया भी चुकाना होगा। इसके लिए 40 हजार करोड़ रुपये की राशि चाहिए। पिछले साल सितंबर में बांड के जरिये कंपनी 8500 करोड़ रुपये की पूंजी वित्तीय संस्थानों से ले चुकी है। उस वक्त कंपनी ने आगे संपत्तियों को मोनेटाइज कर 20 हजार करोड़ रुपये जुटाने की योजना बताई थी, लेकिन महामारी के चलते वह इसे सफलतापूर्वक अंजाम नहीं दे पाई। ऐसे में सरकार को ही कंपनी की गारंटी देने के लिए आगे आना होगा।

पिछले वित्तीय वर्ष के अंत में कंपनी ने आय के मामले में कुछ अच्छे संकेत दिए हैं। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना से भी स्थिति बदली है, कंपनी के लिए हर माह लगभग 700 करोड़ रुपये का वेतन का बोझ आधा रह गया है। ऐसे में सरकार कुछ शर्तो के साथ गारंटी को आगे बढ़ सकती है। करीब 12500 करोड़ रुपये स्वदेशी उपकरणों पर खर्च करने होंगे, जबकि 5000 करोड़ रुपयों के ट्रांसमिशन नेटवर्क उपकरणों की खरीद की जरूरत का अनुमान है। यदि वह अपना नेटवर्क दुरुस्त कर लेती है तो करीब 1200 करोड़ रुपये की महीने की बिलिंग को तेजी से विस्तार दे सकती है।

वैसे बीएसएनएल की खराब हालत में संचार नीति और नियमों में बदलाव का भी योगदान रहा है। महंगे स्पेक्ट्रम और नान प्लेइंग लेवल फील्ड ने कुछ कंपनियों की कठिनाइयां लगातार बढ़ाई हैं। इसे ऐसे भी देखना चाहिए कि ऐसा न होता तो कुशल प्रबंधक के रूप में पहचान रखने वाले कुमार मंगलम बिड़ला आइडिया के वोडा में विलय के बाद भी घाटे की ओर ही लगातार न बढ़ते। एयरटेल जैसी दिग्गज कंपनी बैलेंसशीट में भारी घाटा नहीं दर्शा रही होती। हालांकि सुनील मित्तल फिर भी परेशान नहीं हुए तो इसकी वजह सिर्फ यह रही कि वह सíवस की कुशलता और विस्तार का आक्रामक प्लान तैयार करते रहे, जिस पर उनके निवेशकों ने विश्वास किया।

अब वह गेमिंग और दूसरी कंपनियों के अधिग्रहण के लिए आगे बढ़ रहे हैं। यह रास्ता बीएसएनएल को भी अपनाना होगा, लेकिन पहली जरूरत यही होगी कि सरकार बीएसएनएल के रिवाइवल प्लान पर तेजी से आगे बढ़े। इसके लिए संचार क्षेत्र के कुशल पेशेवरों के हाथों में कंपनी की कमान सौंप उन्हें पूरी छूट दे। ऐसे पेशेवरों की देश में कमी नहीं है, आखिर वह दुनिया की कई दिग्गज संचार कंपनियों का नेतृत्व संभाल रहे हैं। यदि बीएसएनएल अच्छा करेगी तो निश्चित रूप से भविष्य में फिर रत्न ही बनेगी।

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