Basic Education : बरेली में शिक्षिका की पहल पर 70 शिक्षकों ने किया ये काम, हैरान रह गया शिक्षा विभाग
Basic Education मन उनका भी नाजुक है चंचलता उनमें भी है चहकना और पढ़ना वे भी चाहते हैं। मगर जन्म के समय हुई विकृति ने उन्हें शारीरिक चुनौतियां दे दीं। उन्हें एक ऐसे सहारे की जरूरत थी जो आम बच्चों के साथ दौड़ने का हौसला दे सके।
बरेली, अखिल सक्सेना। मन उनका भी नाजुक है, चंचलता उनमें भी है, चहकना और पढ़ना वे भी चाहते हैं। मगर, जन्म के समय हुई विकृति ने उन्हें शारीरिक चुनौतियां दे दीं। उन्हें एक ऐसे सहारे की जरूरत थी जो आम बच्चों के साथ दौड़ने का हौसला दे सके। दिव्यांग बच्चों को यह सहारा दीपमाला ने दिया। अब ऐसे 600 बच्चे स्कूल का दरवाजा खुलने का इंतजार कर रहे हैं।
प्राइमरी स्कूल डभौरा की शिक्षिका दीपमाला ने ऐसे बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाने का जो अभियान शुरू हुआ, उसे नाम दिया- वन टीचर, वन काल। इसी के जरिये शिक्षक गांवों में आवाज लगाकर ऐसे बच्चों को तलाशते गए। दीपमाला बताती हैं कि लाकडाउन के दौरान जब स्कूल बंद हो गए तो कुछ अलग सोचने का मौका मिला। गांवों में ऐसे कई दिव्यांग बच्चे देखे, जोकि असहाय रहते। इन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए तय किया कि शुरूआत इनकी पढ़ाई से करेंगे। अप्रैल में शिक्षकों के वाट्सएप ग्रुप पर इसकी चर्चा होने लगी। कई साथियों ने सराहा तो हिम्मत बढ़ी और अभियान की रूपरेखा बना ली।
इस तरह बच्चों तक पहुंची टोली
दीपमाला के साथ 70 शिक्षक इस अभियान में साङोदार बनने के लिए तैयार हो गए। तय हुआ कि प्रत्येक शिक्षक 10-10 दिव्यांग बच्चों को तलाशें। अनलाक के दौरान आठ टोलियां बनाकर ये लोग गांवों की ओर निकल पड़े। दिव्यांग बच्चों के अभिभावकों को बताया कि अब इनका प्रवेश कराएंगे। दीपमाला बताती हैं कि संपर्क के बाद सितंबर में जब प्रवेश की बारी आई तो सभी 70 शिक्षकों ने अपने संपर्क वाले बच्चों का नजदीकी सरकारी स्कूल में ऑनलाइन दाखिल कराने में मदद की। करीब 600 बच्चे इस तरह प्रवेश पा चुके हैं। अभी आनलाइन कक्षाओं के कारण इन बच्चों को पढ़ने में कठिनाई हो रही। स्पेशल पढ़ाई में काम आने वाली सामग्री उनके घर भिजवा रहे।
वर्ष 2021 की तैयारी
टोली में फीजियोथेरेपिस्ट का कोर्स कर शिक्षक बने अरुण सिंह, काउंसलर अमित यादव, स्पेशल एजुकेटर विजय त्रिपाठी भी शामिल हैं। खुद दीपमाला वर्ष 2017 में मास्टर ट्रेनर रह चुकी हैं। वह बताती हैं कि ये 600 बच्चे जिले में अलग स्कूलों में हैं। जिन शिक्षकों के जरिये इनके प्रवेश हुए, उन्होंने इनकी देखरेख का जिम्मा लिया है। पजिले के छह स्पेशल एजुकेटर्स से बात की है। प्रयास है कि क्रमसवार प्रत्येक सप्ताह में तीन विशेष कक्षाएं इन छात्रों से संबंधित स्कूलों में लगवा दी जाएं। ये हम नौकरी से इतर निजी प्रयासों से करेंगे।
शिक्षक भी दिव्यांगों को समझें
इन बच्चों को सामान्य स्कूलों में प्रवेश दिला दिया गया, वहां के शिक्षक भी उन्हें ठीक से समझें इसलिए स्वभाव आदि की जानकारी होना जरूरी है। इसके लिए स्पेशल एजुकेटर्स की मदद से वेबसाइट तैयार कराई जा रही है। मूक-बधिर बच्चों को पढ़ाने के लिए मोबाइल एप तैयार करा रहे हैं।
दीपमाला व कई अन्य शिक्षकों ने दिव्यांग बच्चों को स्कूल तक जाने का अच्छा प्रयास किया है। सभी शिक्षक यही भावना रखें तो दिव्यांग बच्चों को मुख्य धारा में लाने सहजता होगी। इस समय जिले में करीब छह हजार दिव्यांग बच्चे हैं। सितंबर में सबसे ज्यादा प्रवेश हुए। -विनय कुमार, बेसिक शिक्षा अधिकारी, बरेली