लाहोरी पिता की बेटी ने गर्व से ऊंचा किया सीना, समाज के तानों से हुई मजबूत, गोरखपुर एम्स में पक्की की एमबीबीएस की सीट

Bareilly Ki Beti परिवार की आर्थिक स्थिति भले ही कमजोर हों लेकिन अगर हौसले बुलंद हैं तो किसी भी मुश्किल राह पर चलना कठिन नहीं। शहर में रहने वाली फरहत असगर ऐसी ही एक मिसाल बनकर आगे आई हैं। ।

By Ravi MishraEdited By: Publish:Sun, 10 Oct 2021 08:48 AM (IST) Updated:Sun, 10 Oct 2021 01:58 PM (IST)
लाहोरी पिता की बेटी ने गर्व से ऊंचा किया सीना, समाज के तानों से हुई मजबूत, गोरखपुर एम्स में पक्की की एमबीबीएस की सीट
Bareilly Ki Beti : लाहोरी पिता की बेटी ने गर्व से ऊंचा किया सीना, समाज के तानों से हुई मजबूत

बरेली, शुभम शर्मा। Bareilly Ki Beti : परिवार की आर्थिक स्थिति भले ही कमजोर हों लेकिन अगर हौसले बुलंद हैं तो किसी भी मुश्किल राह पर चलना कठिन नहीं। शहर में रहने वाली फरहत असगर ऐसी ही एक मिसाल बनकर आगे आई हैं। उसके सपनों का पता चला तो पिता के लोहार होने को कमजोरी का आधार बनाकर समाज ने खूब ताने मारे। लेकिन हर तंज से फरहत और मजबूत होती गई और डाक्टर बनने की राह में पहली परीक्षा पास की। अब गोरखपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही हैं।

दसवीं और बारहवीं में स्कूल टाप करने से मिली हिम्मत 

अली अहमद का तालाब निवासी फरहत असगर ने बताया कि बचपन से ही डाक्टर बनने का सपना था। लेकिन पिता की कम आय और परिवार की स्थिति सही न होने की वजह से उसने सपने को मन में दबा ही रखा। खाली समय में सोचती कि अगर किसी से मन की बात कहूंगी तो लोग क्या कहेंगे? बाहर किसी से सलाह ली तो यही जवाब मिला कि एमबीबीएस की पढ़ाई पैसे वालों की है, इसका खर्च उठाना तुम्हारे पिता के लिए मुमकिन नहीं होगा। मगर, दसवीं और बारहवीं में स्कूल टाप किया तो हिम्मत जागी और हौसले को पंख लगे। तीन साल तैयारी करने के बाद आखिर फरहत ने गोरखपुर एम्स में अपनी एमबीबीएस की सीट पक्की कर ली। अब डाक्टर बनकर समाज की सेवा करना ही उनका सपना है।

आज जहां भी हूं सिर्फ पापा की ही बदौलत 

फरहत के पिता मोहम्मद असगर लोहार थे। वह भले ही फीस का इंतजाम करने में सक्षम न रहे हों। लेकिन, कुछ न कुछ पढ़ाई की सामग्री बेटी के लिए लेकर आते रहते थे। फरहत बताती हैं कि पिता की मेहनत और विश्वास से हौसला बढ़ा और उसने ज्यादा मनोयोग से पढ़ाई शुरू कर दी। जहां कोचिंग भी की, वहां अपनी मेधा के बल पर स्कालरशिप हासिल की। इससे एमबीबीएस की पढाई का खर्च और कम हो गया।

जरूरतमंदों के लिए बनवाना चाहती हैं अस्पताल 

महंगे खर्चे के डर से बड़े अस्पताल और कोचिंग करने से पीछे हटने वालों के लिए बरेली में पिता के नाम से अस्पताल और कोचिंग खोलना चाहती हूं। जहां जो अपनी मर्जी से अपनी सहूलियत के हिसाब से ही फीस देकर इलाज या पढ़ाई कर सके।

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