कुंडल बेच भरी फीस, फिर भी बेटे को न भेज सकी स्कूल, दास्तां पढ़कर आंंखों से पानी निकल आएगा

लॉकडाउन के दौरान कई समाजसेवी संस्थाएं और उनसे जुड़े लोग जरूरतमंदों की मदद कर रहे थे। शायद यह लोग गली नवाबान में रहने वाले इस परिवार तक नहीं पहुंच सके। किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर बेटे के साथ गुजर कर रही है।

By Ravi MishraEdited By: Publish:Fri, 26 Feb 2021 08:28 AM (IST) Updated:Fri, 26 Feb 2021 08:28 AM (IST)
कुंडल बेच भरी फीस, फिर भी बेटे को न भेज सकी स्कूल, दास्तां पढ़कर आंंखों से पानी निकल आएगा
कुंडल बेच भरी फीस, फिर भी बेटे को न भेज सकी स्कूल, दास्तां पढ़कर आंंखों में पानी निकल आएगा

बरेली, अंकित गुप्ता। लॉकडाउन के दौरान कई समाजसेवी संस्थाएं और उनसे जुड़े लोग जरूरतमंदों की मदद कर रहे थे। शायद यह लोग गली नवाबान में रहने वाले इस परिवार तक नहीं पहुंच सके। किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर बेटे के साथ गुजर कर रही मां उस समय मुसीबत में आ गई, जब बेटे की फीस भरने का समय आया। प्रयास किए तो उसके पास सोने के कुंडल ही थे। उन्हें बेच तीन महीने की फीस जमा की, लेकिन स्कूल प्रशासन ने पूरी फीस जमा न करने तक बेटे को परीक्षा दिलाने से मना कर दिया। अब वह फिर बेटे की फीस के लिए मदद की आस लगाए है।

शहर के बड़ा बाजार स्थित गली नवाबान निवासी 11 वर्षीय बालक कैंट स्थित बिशप कानरॉड में कक्षा छह का छात्र है। लॉकडाउन के बाद से ऑनलाइन ही पढ़ाई कर रहा था। पिता लॉकडाउन के बाद काम की तलाश में अपने बड़े भाई को लेकर गए थे। अब तक नहीं लौटे। कभी कभार किसी दूसरे के मोबाइल से हाल तो जान लेते हैं, लेकिन मदद करने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में परिवार की जरूरतों और जिम्मेदारी का बोझ छात्र की मां पर ही है। उसकी मां ने पहले घर से ही कॉस्मेटिक का काम शुरू किया, लेकिन वह नहीं चला। इसके बाद एक दुकान पर नौकरी शुरू कर दी। उससे घर खर्च चलने लगा।

मार्च में छोटे बेटे पारस की वार्षिक परीक्षाओं की जानकारी मिली। स्कूल प्रबंधन ने फीस भरने को कहा। काफी प्रयास के बाद जब मां पैसे न जुटा पाई तो उसने साढ़े पांच हजार रुपये में अपने कुंडल बेच फीस जमा करने पहुंची। समस्या बताई तो स्कूल प्रबंधन ने करीब दो हजार रुपये फीस कम कर दी। इसके बाद तीन महीने का शुल्क और परीक्षा फीस के 5,325 रुपये मां से जमा करा लिए। इसके बाद उससे शेष फीस जमा करने को कहा गया। उसने बच्चे की पढ़ाई और परीक्षा दिलाने की गुहार लगाई, लेकिन स्कूल ने मना कर दिया। अब वह बेटे की परीक्षा दिलाने के लिए परेशान है।

ऐसे करें मदद

आर्थिक संकट से जूझ रहे इस बच्चे की पढ़ाई में आप भी मददगार साबित हो सकते हैं। यदि आप उसे किसी भी रूप में मदद करना चाहते हैं तो अपना नाम, पता हमें भेजें। वाट्सएप नंबर 8791441676

कहां गए आरटीई जैसे कानून

शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत स्कूल कुछ छात्रों को निशुल्क शिक्षा दे सकते हैं। कोरोना काल के बाद फीस को लेकर आ रही समस्याओं को देखते हुए इस अधिनियम के तहत स्कूल कुछ बच्चों को तो पढ़ा ही सकते हैं। गली नवाबान निवासी इस छात्र की स्थिति देख ऐसा प्रतीत नहीं होता कि कहीं आरटीई का पालन भी हो रहा है।

 परेशानी बताने पर कुछ फीस कम की थी, लेकिन बेटे की परीक्षा तभी दिलाने को कहा गया जब पूरी फीस जमा हो जाए। साफ कह दिया गया कि जो मदद कर सकते थे, कर दी। अब फीस जमा करें। - छात्र की मां

अभिभावकों से फीस बाद में जमा कराने की बात लिखित लेकर बच्चों को परीक्षा दिलाई जा रही है। तीन महीने की फीस जमा करने के बाद भी परीक्षा दिलाने से मना किए जाने की बात सही नहीं है। अगर ऐसा है तो छात्र की मां ऑफिस आ कर मिलें। - फादर क्रिस्टोफर शाजी, प्रिंसिपल, बिशप कॉनरॉड

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