Badaun UP Zila Panchayat Chunav News : बरेली मंडल में सियासी हलचल से बदायूं के सपा नेताओं की उड़ी नींद, अब गढ़ बचाना बड़ी चुनौती
Badaun UP Zila Panchayat Chunav News बदायूं जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में शाहजहांपुर और पीलीभीत में मची सियासी हलचल ने यहां भी सपा नेताओं की नींद उड़ा दी है। यह जिला सपा का गढ़ रहा है।
बरेली, जेएनएन। Badaun UP Zila Panchayat News : बदायूं जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में शाहजहांपुर और पीलीभीत में मची सियासी हलचल ने यहां भी सपा नेताओं की नींद उड़ा दी है। यह जिला सपा का गढ़ रहा है, लंबे समय तक प्रथम नागरिक की कुर्सी पर भी दबदबा रहा है। वर्तमान में सपा के सामने अपना गढ़ बचाने की बड़ी चुनौती है। सत्तारूढ़ दल के नेता भी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। दोनों पार्टियों की प्रतिष्ठा से जुड़े इस चुनाव में मतदान की तारीख जैसे-जैसे करीब आ रही है, प्रत्याशियों और जिम्मेदार नेताओं के एक-एक पल भारी गुजर रहे हैं। जिला पंचायत सदस्यों को अलग-अलग स्थानों पर ठहराकर जीत के लिए जरूरी समर्थन का आंकड़ा जुटाने में पसीने छूट रहे हैं।
सत्तारूढ़ दल भाजपा में कुर्सी के लिए चार दावेदार सामने आए थे। जातीय समीकरण बैठाकर पूर्व एमएलसी जितेंद्र यादव की पत्नी वर्षा यादव को चुनाव मैदान में उतारा गया। सपा में शुरूआत से ही दमदार प्रत्याशी की तलाश की जा रही थी। जिलाध्यक्ष प्रेमपाल सिंह यादव की पुत्रवधू ऐश्वर्या यादव के नाम पर ही चर्चा हो रही थी। नामांकन के दिन लंबे समय तक बसपा में रहे पूर्व विधायक विनोद कुमार शाक्य को पार्टी में शामिल कराकर उनकी पत्नी सुनीता शाक्य को सपा का चेहरा बनाकर चुनावी रण में उतारा गया।
अपनी पुत्रवधू को टिकट न मिलने पर जिलाध्यक्ष मायूस जरूर हुए होंगे। अब सत्ता और विपक्ष आमने-सामने है। भाजपा से मंत्री, सांसद, विधायक एक-एक सदस्य की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। सपा में पूर्व विधायक विनोद शाक्य के साथ पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव भी दम भर रहे हैं। निर्दलीय निर्वाचित सदस्यों पर पहले से ही दबाव बनाया जा रहा था, अब तो हर सदस्य किसी न किसी पार्टी या प्रत्याशी के साथ है। भाजपा के जन प्रतिनिधियों को भी ऊपर से हिदायत मिली है कि अगर उनके क्षेत्र से समर्थन नहीं मिला तो विधानसभा चुनाव में टिकट मिलना आसान नहीं होगा।
सदस्य तो किसी न किसी के साथ खड़े हैं, लेकिन मतदान कक्ष में पहुंचकर पाला बदलने की भी आशंका बनी हुई है। दोनों दलों में किसी के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है, निर्दलीय सदस्य भी एक साथ नहीं हैं, इसलिए चुनाव में पलड़ा किसका भारी हो जाएगा कुछ भी कहना मुश्किल है। हर किसी को अब तीन जुलाई का इंतजार है।