'कबाड़' में कलाकारी और हरियाली का सम्मोहन
आमतौर पर यांत्रिक कारखाना सुनते ही पुरानी जर्जर दीवारें, जगह-जगह लगी काि
जागरण संवाददाता, बरेली : आमतौर पर यांत्रिक कारखाना सुनते ही पुरानी जर्जर दीवारें, जगह-जगह लगी कालिख, जमीन पर फैली ग्रीस और अस्त-व्यस्त सामान से भरी जगह ही जेहन में आती है। पर, आप अगर एक बार इज्जतनगर मंडल के यांत्रिक कारखाने में जाएंगे तो आपकी ये धारणा निश्चित तौर पर बदल जाएगी। मुख्य द्वार से अंदर आने के बाद कुछ समय के लिए भूल जाएंगे कि यह कोई यांत्रिक कारखाना है। आपको यहां की साफ-सफाई और प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही इस जगह को बेहतर बनाने के लिए किए गए मानवीय प्रयास देखकर अहसास होगा कि मानो किसी खूबसूरत पर्यटन स्थल पर पहुंच गए हों। खास बात यह कि इस जगह को बाहर के लोगों ने नहीं सजाया-संवारा, बल्कि कारखाने के ही रेलकर्मियों और अप्रेंटिस करने वाले युवाओं ने इसके लिए श्रम किया और हुनर दिखाया।
ध्यान खींचते डायनासोर और मछली
पहले सड़क किनारे या मुख्य भवन में यहां-वहां कबाड़ पड़ा देख लोग मुंह बनाते थे। अब इसी कबाड़ को देखकर अवाक रह जाते हैं। प्लास्टिक और लोहे के अलग-अलग बेकार टुकड़ों की मदद से ऐसा विशालकाय डायनासोर बना दिया, जिसे देखकर लोग चकित रह जाते हैं। वहीं, खराब हो चुके पंखों के कंडम ब्लेड को मछली का आकार देते हुए उसमें खूबसूरत रंग भरकर इतना आकर्षक बना दिया कि यह कलाकारी सम्मोहित करती है। मछली भी इतनी विशालकाय कि लगभग तीन इंसानों के बराबर। अब इस कामयाबी से उत्साहित कर्मचारी यहां इसी तरह के कुछ और प्रयोग करने की तैयारी कर रहे हैं।
सुकून देती है पार्को की हरियाली
यांत्रिक कारखाने में यांत्रिक पर्यावरण उद्यान बनाया गया है। रंग-बिरंगे लोहे के गेट से भीतर घुसते ही यहां की हरियाली दिल को सुकून देती है। प्रकृति के रंगों से रंगी उद्यान की दीवारें और मैदान रात की जगमगाती रोशनी में और भी खूबसूरत हो जाते हैं। इसी तरह ट्यूलिप गार्डन भी है। दीवारों पर ट्रेनों का इतिहास, देशभक्ति का जज्बा भी प्रदर्शित किया गया है। वर्जन
इज्जतनगर मंडल का प्रयास बेहतर परिचालन के साथ ही लोगों को स्वच्छता की सीख देना भी है। बेहतर और साफ-सुथरे स्थान पर रेलकर्मियों की कार्य क्षमता भी निखरती है। अन्य संस्थान भी ऐसे प्रयोग कर सकते हैं।
- दिनेश कुमार सिंह, डीआरएम, इज्जतनगर मंडल