शाहजहांपुर में अधिवक्ता की हत्या से पहले आरोपित ने पढ़ी मेडिकल की किताब, फिर मारी गोली
Advocate Bhupendra Murder Case अधिवक्ता सुरेश गुप्ता ने घटना के लिए पूरी तैयारी की थी। अपने मुकदमे लड़ने के लिए कानून की डिग्री हासिल करने वाले सुरेश ने मेडिकल की किताबों और इंटरनेट मीडिया से पता किया कि किस तरह गोली मारने के बाद कोई बच नहीं सकता।
बरेली, जेएनएन। Advocate Bhupendra Murder Case : शाहजहांपुर स्थानीय अदालत में अधिवक्ता भूपेंद्र प्रताप सिंह की सनसनीखेज ढंग से हत्या करने वाले आरोपित अधिवक्ता सुरेश गुप्ता ने घटना के लिए पूरी तैयारी की थी। अपने मुकदमे लड़ने के लिए कानून की डिग्री हासिल करने वाले सुरेश ने मेडिकल की किताबों और इंटरनेट मीडिया से पता किया कि किस तरह गोली मारने के बाद कोई बच नहीं सकता।
शाहजहांपुर में एसीजेएम कोर्ट के पास अधिवक्ता भूपेंद्र प्रताप सिंह की सोमवार को कनपटी पर गोली मारकर हत्या की गई थी। पुलिस ने मामले में प्रतिद्वंद्वी वकील सुरेश को गिरफ्तार किया था। पुलिस के सामने उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। 62 साल की उम्र में उन्होंने घटना को अंजाम को किस तरह तैयारी की, यह पुलिस को पूछताछ में बताया। सुरेश व भूपेंद्र के बीच 20 मुकदमे चल रहे थे। कई बार विवाद हुआ। इसमें सुरेश का पलड़ा हल्का ही रहा।
ऐसे में मान लिया कि अब जिंदगी जीने और परिवार को सुरक्षित करने को भूपेंद्र को खत्म करने के सिवाय कोई तरीका नहीं है। यह काम स्वयं, करने का निर्णय लिया। उन्होंने कई बार लोगों से पूछा कि अगर किसी व्यक्ति को कहां गोली मारी जाए, तो कम से कम बचने के चांस रहते हैं। हालांकि इसमें किसी का नाम नहीं बताया। मेडिकल की किताबों व इंटरनेट मीडिया से भी पता किया। पहले तय कर लिया कि भूपेंद्र की कनपटी पर गोली मारनी है।
भूपेंद्र से आमना-सामना कचहरी में ही होता था। वहाँ भीड़ में गोली नहीं चलाई जा सकती थी। रेकी की तो सुनसान सा रहने वाला कार्यालय का हिस्सा उचित लगा। वहां सीसीटीवी भी नहीं था। सोमवार को पहले चेकिंग से बचकर वह तमंचा लेकर परिसर में पहुंचे। वहां भूपेंद्र पर नजर रखी । जैसे ही वह अदालत की ओर गए। पीछे से स्वयं भी पहुंचे। फाइल में व्यस्त भूपेंद्र के पीछे खड़े होकर कान के पास गोली मारी। तमंचा छोड़कर वहां से चले आए।
6 आरोपित अधिवक्ता को जेल भेज दिया गया है। उन्होंने बताया कि हत्या करने से पहले काफी समय लिया था। जिस प्वाइंट पर गोली मारी वह उसको टारगेट करके आए थे। क्योंकि उन्हें मालूम था कि वहां से जिंदा बचना मुश्किल है। इसके लिए उन्होंने मेडिकल साइंस की किताब, इंटरनेट की भी मदद ली थी। - एस आनंद, एसपी
तीन दिन में आखिरी तैयारी, लिया रिस्क
सुरेश ने तीन दिन में "हत्या की जगह की रेकी से लेकर तमंचा की व्यवस्था करने की तैयारी " वारदात को अंजाम दिया। जिस तमंचे से हत्या की वह भाई योगेंद्र का था इसमें एक ही कारतूस था, जो काफी समय से रखा था। ऐसे में मिस होने का खतरा था, परंतु यह रिस्क उठाया। आरोपित बार-बार कह रहा था कि यदि मैं हत्या नहीं करता तो जी नहीं पाता। ऐसे में दूसरा कोई रास्ता नहीं दिखा।
हत्या करने के पीछे यह भी रही सोच
अधिवक्ता होने के नाते सुरेश को पता था कि घटना को अंजाम देने का नतीजा क्या होगा। केस में कितनी सजा हो सकती है। बावजूद इसके उन्होंने कदम उठाया। सुरेश का कहना था कि इससे भूपेंद्र की ओर से दायर किए गए मुकदमों से मुक्ति मिल जाएगी। बेटे व परिवार भी तनाव से मुक्त हो सकेंगे। उनके कुबूलनामे से बेटों को पूछताछ से राहत मिल जाएगी। अधिवक्ता होने के नाते प्रकरण ज्यादा तूल भी नहीं पकड़ेगा।