बरेली में युवाओं का एक ग्रुप कोरोना संक्रमितों को पहुंचा रहा इम्युनिटी बढ़ाने वाला खाना, जानिये ग्रुप से जुड़े लोगों के बारे में

संक्रमित व्यक्ति को ऐसा भोजन मिले जिसमें प्रोटीन की मात्रा भरपूर हो तो वह जल्द ठीक हो जाते हैं। इसीलिए शहर के युवाओं की एक टोली संक्रमितों के लिए प्रोटीन से युक्त और इम्युनिटी बढ़ाने वाला भोजन पहुंचा रही है। यह युवा खुद ही भोजन तैयार करते हैं।

By Samanvay PandeyEdited By: Publish:Thu, 13 May 2021 10:39 AM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 10:39 AM (IST)
बरेली में युवाओं का एक ग्रुप कोरोना संक्रमितों को पहुंचा रहा इम्युनिटी बढ़ाने वाला खाना, जानिये ग्रुप से जुड़े लोगों के बारे में
खाने में हरी सब्जियों के साथ पनीर और सोयाबीन का भी इस्तेमाल कर रहे युवा।

बरेली, जेएनएन। संक्रमित व्यक्ति को ऐसा भोजन मिले जिसमें प्रोटीन की मात्रा भरपूर हो तो वह जल्द ठीक हो जाते हैं। इसीलिए शहर के युवाओं की एक टोली संक्रमितों के लिए प्रोटीन से युक्त और इम्युनिटी बढ़ाने वाला भोजन पहुंचा रही है। यह युवा खुद ही भोजन तैयार करते हैं और संक्रमित व्यक्ति के घर तक खुद ही पहुंचाने जाते हैं। खाने में प्रतिदिन हरी सब्जियों के साथ पनीर और सोयाबीन का इस्तेमाल भी किया जाता है। इतना ही नहीं प्रतिदिन संक्रमित से भोजन के बारे में पूछते भी हैं। अगर संक्रमित कुछ स्पेशल मांगता है तो उसका इंतजाम भी किया जाता है।

शहर के मयंक गंगवार अभी 25 साल के ही हैं, लेकिन जरूरतमंदों की मदद करना उन्हें खूब भाता है। वह 2019 से आवाज फाउंडेशन चला रहे हैं, जिसमें गरीब बच्चों की पढ़ाई में वह उनकी मदद करते थे। लेकिन 2020 के बाद कोरोना संक्रमण आ गया और बच्चों की पढ़ाई थम सी गई। लेकिन मदद करने का जज्बा मयंक के दिल से नहीं गया। उन्होंने 2020 में लॉकडाउन के दौरान भी खाना व अन्य सामान जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाए थे। लेकिन इस बार जब संक्रमण अपने भयावह दौर में पहुंचा और लोग परेशान हुए तो उन्होंने अपने साथियों से संक्रमितों के घर खाना पहुंचाने की बात रखी।

इस पर उनके साथी देवेश गंगवार, नवेद अंसारी, रविंद्र सिंह, हेमेंद्र गंगवार, संतोष गंगवार, प्रशांत अग्रवाल, हिमांशु और उमाकांत तैयार हो गए। मयंक ने अपने घर के ही एक हिस्से में जगह बनाई और वहीं खाना बनाना शुरू कर दिया। फेसबुक पर उनकी ओर से कई गई पोस्ट वायरल हुई ओर कई संक्रमितों के मदद के लिए फोन आने लगे। युवाओं की यह टोली प्रतिदिन 30 से 40 घरों में दोनो समय का खाना पहुंचा रहे हैं। मयंक ने बताया कि हम सब आपस में मिलजुल कर ही यह कार्य कर रहे हैं। लेकिन हमारे अन्य मित्रों को जब जानकारी मिली तो वह भी अब हमारे साथ जुड़ने लगे हैं।

खाली पेट मत रहिए, आप बताओ क्या ले आएं

संक्रमित व्यक्ति के घर कम से कम दस दिन तो खाना भेजना ही होता है। जैसे किसी दिन अगर किसी संक्रमित ने फोन कर मना किया तो यह पूछते हैं कि वह मना क्यों कर रहे। ऐसे में अगर उनके द्वारा मन नहीं है या कुछ हल्का खा लेंगे आदि कहा जाता है, तो यह सभी उनसे कहते हैं कि संक्रमण में भूखा नहीं रहना चाहिए। इसलिए आप बताइए खाना नहीं तो क्या ले आएं। इस पर खाने की जगह फल, खीर, देशी घी से तले मखाने, मूंगफली के दाने भी लेकर जाते हैं।

chat bot
आपका साथी