सौहार्द की जुबां खामोश, गूंज रहे बिगड़े बोल
बरेली, जेएनएन: उनका जो काम वह अहले सियासत जानें, मेरा पैगाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे। यह शेर अक्स
बरेली, जेएनएन: उनका जो काम वह अहले सियासत जानें, मेरा पैगाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे। यह शेर अक्सर और बेशतर सुनाई दे जाता है लेकिन, आज जब इसकी सख्त जरूरत है तो यह गूंज खामोश है। इससे उलट एक जनप्रतिनिधि ने कह दिया-मैं पहले ¨हदू और बाद में नेता हूं। इन जनप्रतिनिधि से चुनाव में हारे हुए प्रत्याशी का जवाब आया कि माहौल तो कांवड़ियों ने खराब किया है। ऐसे पाखंडियों के खिलाफ लड़ना होगा। सौहार्द के प्रहरियों के सो जाने और बिगड़े बोल के जोर पकड़ने का नतीजा यह हुआ कि उमरिया-खजुरिया में नाराजगी की खाई गहरी हो गई।
शहर से सटे हुए ये दोनों गांव अड़ोस-पड़ोस में हैं। खजुरिया ब्रह्मनान ¨हदू बाहुल्य तो उमरिया में अधिकांश आबादी मुस्लिम है। दोनों गांवों के बीच विवाद की शुरूआत सावन में कांवड़यात्रा के दौरान हुई। खजुरिया ब्रह्मनान के लोगों का कहना था कि वे कांवड़यात्रा उमरिया से लेकर जाएंगे। उमरिया वालों का जवाब आया, हमारे गांव से कांवड़ पहले नहीं निकली, इस बार भी नहीं निकलेंगे। विवाद को देखते हुए प्रशासन ने सुलह के प्रयास शुरू किए। त्योहार रजिस्टर देखने के बाद तय हुआ कि कांवड़यात्रा उमरिया से नहीं निकलेगी। डीएम वीरेंद्र कुमार सिंह के इस एलान पर बिथरी चैनपुर से भाजपा के विधायक पप्पू भरतौल कूद आए। अड़ गए कि कांवड़यात्रा उमरिया से ही जाएगी। तब सावन के अंतिम सोमवार पर दोनों गांवों को पुलिस छावनी में बदला गया। कांवड़यात्रा तो नहीं निकली लेकिन, दिलों में दरार जरूर पड़ गई। उसका असर मुहर्रम पर दिखाई दिया। खजुरिया के ग्रामीणों ने ताजियों का जुलूस उस रास्ते से नहीं निकलने दिया। प्रशासन ने कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपना काम किया लेकिन, दुखद पहलू यह रहा कि कांवड़यात्रा के दौरान विधायक और मुहर्रम के बाद चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने वाले सपा प्रत्याशी वीरपाल सिंह यादव का दिलों की खाई को गहरा करने वाला बयान आया। साफ दिखा कि बिगड़े बोल से वोटों को साधने का प्रयास हो रहा है। इससे भी ज्यादा निराशा की बात यह हुई कि जिन कंधों पर भाईचारा कायम रखने की जिम्मेदारी थी, वे सो रहे हैं। अभी तक किसी भी ऐसे शख्स ने दोनों गांवों का रुख नहीं किया, जो टूटते रिश्तों को जोड़ने में अहम हो सकता था। यह कोई मुश्किल काम भी नहीं है। क्योंकि उमरिया और खजुरिया दोनों ही गांव एकदूसरे से इस तरह जुड़े हैं कि नाराजगी दोनों में रहने वालों के लिए मुश्किल पैदा करेगी। खजुरिया ब्रह्मनान के लोगों को शहर आने के लिए उमरिया जाना पड़ता है। वे ऐसा नहीं करेंगे तो पांच किमी का फेर काटकर जाएंगे। उमरिया वालों की मजबूरी यह है कि उनके खेत खुजरिया ब्रह्मनान से लगे हैं। नफरत का माहौल बनने से नुकसान दोनों का है।
तीखे बोल
मैं पहले ¨हदू हूं, बाद में नेता। अगर समाज के लोगों को धार्मिक आयोजनों से रोका जाएगा तो उनकी आवाज मैं नहीं उठाऊंगा तो कौन उठाएगा। मैंने खजुरिया ब्रह्मनान की कावड़यात्रा को उमरिया से निकलवाने की पैरवी करके कुछ भी गलत नहीं किया है।
-राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल, बिथरी चैनपुर विधायक आपत्तिजनक गाने बजाकर और मुसलमानों के खिलाफ नारे लगाकर कुछ कांवड़ियों ने माहौल खराब किया। राम और भोले के नाम को बदनाम करने वाले ऐसे पाखंडियों के खिलाफ लड़ना होगा। यह काम समाजवादी पार्टी करेगी।
वीरपाल सिंह यादव, सपा के पूर्व प्रत्याशी, बिथरी चैनपुर