सियासी दलों की गुटबाजी से 'निर्दल' को मिलेगी मजबूती!
जगदीप शुक्ल बाराबंकी करीब ढाई दशक बाद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुए जिला पंचायत अध्यक्ष्
जगदीप शुक्ल, बाराबंकी
करीब ढाई दशक बाद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर नई ताजपोशी चर्चा में है। इस दौरान आए उतार-चढ़ाव से जिले के सियासी समीकरण भी प्रभावित हुए हैं। जिला पंचायत सदस्य पद के लिए हुए चुनाव में भाजपा और सपा में से कोई भी अध्यक्ष के पद के जरूरी 28 सदस्यों के जादुई आंकड़े को हासिल करना तो दूर आसपास तक नहीं फटक सका है। चर्चा में आए सियासी दलों के प्रत्याशियों पर गुट विशेष से जुड़े होने का ठप्पा लगा है। ऐसे में प्रत्याशी पर आम सहमति बनाना और प्रत्याशी की जीत के लिए सभी गुटों एकजुट करना नेतृत्व के सामने बड़ी चुनौती होगी। अगर सियासी दलों ने आपसी गुटबाजी को दूर नहीं किया तो निर्दल न सिर्फ अपना प्रत्याशी उतार सकते हैं बल्कि इसका फायदा भी उन्हें मिलना तय है।
--------------------------
निर्दल के मददगार हो सकते हैं बागी
निर्दल प्रत्याशी के तौर पर अभी तक त्रिवेदीगंज तृतीय से सदस्य चुनी गईं नेहा आनंद नाम चर्चा में है। इसके अलावा किसान संगठन की ओर से भी प्रत्याशी उतारे जाने की बात कही जा रही है। ऐसे में राजनीतिक दलों प्रत्याशी पर आम सहमति न बनने पर बसपा ही नहीं भाजपा व सपा के बागी भी निर्दल प्रत्याशी के मददगार बन सकते हैं। 23 निर्दल सदस्यों ने हासिल की है जीत
चुनाव में राजनीतिक दलों की ओर से घोषित प्रत्याशियों में भाजपा के 12, सपा के 15, बसपा के पांच और कांग्रेस के दो प्रत्याशी ही जीत सके हैं। वहीं, 23 निर्दल सदस्य चुने गए हैं। ऐसे में आंकड़ों के लिहाज से निर्दल आगे हैं। हालांकि, इनमें से 11 पर सपा और आठ पर भाजपा ने अपनी विचारधारा से जुड़े होने का दावा किया है।
---------------------
सियासी दलों के लिए घातक साबित होगी गुटबाजी
इतिहासकार व राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह गुरु जी बताते हैं कि प्रत्याशी के चयन और चुनाव प्रचार में सियासी दलों की गंभीरता का असर परिणाम में दिखता है। जिला पंचायत अध्यक्ष पद के प्रत्याशी का चयन उसकी क्षमता, सामाजिक छवि और राजनीतिक अनुभव के साथ ही सर्वसम्मति के आधार पर किया जाना चाहिए। जल्दबाजी में लिया गया निर्णय सियासी दलों के घातक साबित हो सकता है। कवि शिव कुमार व्यास बताते हैं कि इस बार किसी राजनीतिक दल को जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए स्पष्ट जनादेश नहीं मिला है। इसकी वजह प्रत्याशी चयन और प्रचार तक में हावी रही गुटबाजी है।