समन्वय बना सौहार्द की डोर को मजबूती दे रहे नौजवान
-मुहर्रम और दशहरा के जुलूस को निकलवाने में सहयोग करते हैं हिदू-मुस्लिम धर्मावलंबी
बाराबंकी: लोधेश्वर महादेव, सूफी संत वारिस अली शाह और सतनामी संप्रदाय के जगजीवन साहेब की सरजमी पर सौहार्द की डोर को समन्वय के जरिए मजबूत बनाया जा रहा है। इस संस्कृति को बल दे रहे हैं हिदू-मुस्लिम समुदाय के नौजवान। यहां दशहरा, दुर्गा पूजा व मुहर्रम के जुलूसों को निकालने के दौरान अमन और सौहार्द की एक नई बेहतरीन तस्वीर देखने को मिलती है।
छह साल से कायम है समन्वय का रिश्ता
दशहरा मेला कमेटी व मुहर्रम कमेटी से जुड़े नौजवानों ने समन्वय के रिश्ते की छह साल पहले शुरुआत की थी। तब से हर साल निकलने वाले इन जुलूसों को लेकर दोनों कमेटियों से जुड़े नौजवान बैठक कर सौहार्द की डोर को मजबूत बनाने का काम कर रहे हैं। इसके बाद से दशहरा मेला व दुर्गापूजा के जुलूस में मोहर्रम कमेटी के पदाधिकारी ताज बाबा राइन, मो. सलमान, आशिफ हुसैन, तैयब बब्बू, ओसामा अंसारी आदि शामिल होने लगे। मोहर्रम के जुलूस में दशहरा मेला कमेटी के कृष्णा गुप्ता, संतोष जायसवाल, शिव कुमार वर्मा, राकेश वर्मा, विवेक शुक्ल, प्रशांत सिंह आदि ने सहयोग करना शुरू कर दिया। इस समन्वय के चलते प्रशासनिक अधिकारियों की चिता दूर हो गई। अधिकारी भी खुले मन से जिले की इस संस्कृति की तारीफ करते हैं।
प्रेरणा बन रही युवाओं की पहल
एसडीएम सदर अभय कुमार पांडेय का कहना है कि 'जो रब है वही राम' का संदेश यहां के सूफी संत हाजी वारिस अली शाह ने देवा से व 'अलह अलख दोऊ एक हैं' का संदेश सतनामी संप्रदाय के आदि प्रवर्तक समर्थ स्वामी जगजीवन साहेब ने कोटवाधाम तीर्थ से दिया। जिले के लोग इन महापुरुषों के संदेश से प्रेरित होकर भाईचारे की संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि दोनों धर्मों के मानने वाले नौजवान न सिर्फ दशहरा, दुर्गापूजा व मोहर्रम आदि के जुलूस में भी बल्कि अन्य त्योहारों में भी बढ़चढ़कर सहयोग करते हैं। किसी त्योहार के मौके पर जब जरूरत होती है। वालंटियर के रूप में सुबह चार बजे से ही सक्रिय हो जाते हैं। नौजवानों की यह पहल कस्बा व ग्रामीण अंचल में भी प्रेरणा बन रही है।