दया पर काटे कुछ दिन फिर कर्ज लेकर मुंबई से आ गए गांव
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संवाद सूत्र, चिल्ला : क्या करते, भूखों मरने की नौबत आ गई थी। कहीं कोई काम नहीं था। लोगों की दया कर कुछ दिन कट गए, हालात मरने जैसे नजर आने लगे थे। रात में नींद नहीं आती थी। जहां काम करते थे, मालिक से घर वापस आने तक का किराया उधार लिया और हालात ठीक होने की बात कह घर चले आए। अब जाना होता है कि या नहीं, यह वक्त तय करेगा। सादीमदनपुर गांव निवासी छह लोग हाल ही में मुंबई से लौटे हैं।
सादीमदनपुर गांव निवासी सरवर, इरफान, अनवर, इलियास अपने बेटे याकूब और पड़ोस में रहने वाले कासिब दिसंबर 2020 में रोजगार के लिए मुंबई गए थे। कुर्ला में रहकर शादी-ब्याह में मंडप सजाने का काम करने लगे। सरवर बताते हैं कि जमीन के नाम पर टुकड़ा होने से पारिवारिक हालात बहुत कष्टदायक थे। आर्थिक तंगी हमेशा परेशान करती थी। जिसके बाद परदेश जाकर कमाने का मन बनाया और चले गए थे।
एक माह पहले से काम हुआ बंद
बताते हैं कि वह लोग विभिन्न जगहों पर जाकर काम करते थे। तभी कोरोना संक्रमण तेज हो गया और काम-धंधा बंद हो गया। मालिक ने भी पैसे देने बंद कर दिए। करीब एक माह तक इसी उम्मीद में रहे कि हालात ठीक हो जाएंगे। इस दौरान जमा पूंजी भी खत्म हो गई। खाने-पीने की परेशानी शुरू हुई तो जान-पहचान वालों ने मदद की और किसी तरह एक समय खाना खाकर गुजर होने लगी। हालात बेकाबू हुए और खुद की जान खतरे में नजर आने लगी। जिसके बाद वापस लौटने में ही भलाई समझी। मालिक से कर्ज मांगा और दोबारा आने पर चुकाने का वादा कर चले आए।
फतेहपुर ट्रेन से फिर ट्रक से पहुंचे घर
सरवर ने बताया कि भूखों मरने की नौबत देख हम सब लोगों ने घर लौटने की बात तय की। कुर्ला से ट्रेन पकड़कर फतेहपुर आए, वहां से ट्रक के जरिए चिल्ला पहुंच गए।
कटाई-मड़ाई कर पाल रहे परिवार
मुंबई से लौटने वालों का कहना है कि यहां आकर दूसरों के खेत में कटाई-मड़ाई कर परिवार पाल रहे हैं। ऐसे हालात में अब जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे। कुछ दिन काम, फिर भागना पड़ेगा यही सोचकर अब यहीं किसी तरह मजदूरी कर गुजर बसर कर लेंगे।