आपसी खींचतान से टूटी स्वास्थ्य सेवाओं में गुणवत्ता की उम्मीद
बाहर से जांच व दवाएं लिखने पर पर्यवेक्षकों ने काटे नंबर गंदगी भवन की सफाई न होना भी बना फेल होने का कारण
बलरामपुर: जिला अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने के लिए वेतन व संसाधन पर लाखों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे हैं, लेकिन उसका नाममात्र भी असर नहीं दिख रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने वित्तीय वर्ष 2020-21 कायाकल्प अवार्ड स्कीम के अंतर्गत क्वालिटी एश्योरेंस प्रोग्राम में अस्पतालों की चिकित्सा सेवाओं की परख कर उनकी स्कोरिग कराई। हाल में आए परिणाम में एक भी जिला अस्पताल कायाकल्प अवार्ड नहीं ला सका। यह आलम तब है जब इसके लिए जिला क्वालिटी प्रबंधक के साथ जिला महिला अस्पताल व संयुक्त जिला अस्पताल में अलग-अलग क्वालिटी प्रबंधकों की तैनाती है। इनके वेतन पर भी हर माह डेढ़ से दो लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। अफसरों की खींचतान, भ्रष्ट कार्यप्रणाली पर्यवेक्षकों को काफी नागवार गुजरा। इसका परिणाम रहा कि तीनों अस्पताल कायाकल्प एवार्ड में फेल हो गए।
बाहर की जांच व दवाएं लिखने से भी कटे अंक:
जनवरी में हुए मूल्यांकन के दौरान पहली लहर खत्म होने के बाद जिला मेमोरियल अस्पताल ने ओपीडी शुरू ही की थी। इसलिए उससे बेहतर की उम्मीद किसी को नहीं थी, लेकिन जिला संयुक्त चिकित्सालय व महिला अस्पताल तैयार थे। संयुक्त जिला चिकित्सालय ने तो दो मूल्यांकनों में बेहतर प्रदर्शन भी किया था। भवन की रंगाई-पोताई नहीं हुई थी। डाक्टर बाहर से जांच व दवाएं लिख रहे थे। जो जांच नहीं हो पाती थी, उन्हें जांच सूची भी दिखाया जा रहा था। महिला अस्पताल चिकित्सक व स्वास्थ्य कर्मियों की मनमानी चलती है। बाहरी जांच केंद्रों व मेडिकल स्टोरों पर मरीजों को दवाएं खरीदते देख पर्यवेक्षक नाराज हो गए। साथ ही वसूली की शिकायतें भी पर्यवेक्षकों को रास नहीं आई जो फेल होने का कारण बनी।
संयुक्त चिकित्सालय के प्रभारी सीएमएस डा. एनके वाजपेयी का कहना है कि आपसी खींचतान के चलते अस्पताल कायाकल्प में फेल हो गया। वहीं, सीएमओ डा. सुशील कुमार ने बताया कि जिला स्तरीय अस्पतालों की व्यवस्था के लिए वहां के मुख्य चिकित्साधीक्षक जिम्मेदार हैं। वार्ता करके सुधार कराई जाएगी।