19 साल से अंधेरे में जी रही 2500 की आबादी
बलरामपुर जंगल के बीचोबीच नेपाल सीमा से महज 100 मीटर पहले स्थित परसरामपुर गांव बुनियादी सुि
बलरामपुर: जंगल के बीचोबीच नेपाल सीमा से महज 100 मीटर पहले स्थित परसरामपुर गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। बिजली, सड़क व मूलभूत सुविधाओं का टोटा होने से यहां के बाशिदे विकास की मुख्य धारा से नहीं जुड़ सके हैं।
भले ही वर्ष 2014 में इसे राजस्व गांव का दर्जा क्यों न मिला हो, लेकिन आज तक विकास की धारा नहीं बह सकी। गांव में सोलर लाइटें न होने से यहां के लोग घनघोर अंधेरे के बीच दुर्गम रास्तों से आवागमन करने को मजबूर हैं। वहीं, रास्ते में जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता है। कहने को तो गांव से करीब तीन किलोमीटर दूर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र रेहरा है, लेकिन वहां स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर हैं। ऐसे में, सबसे अधिक दिक्कत गर्भवती को होती है, जिन्हें समय से उपचार नहीं मिल पाता है।
नहीं नसीब बुनियादी सुविधाएं:
भारत-नेपाल सीमा पर बसे ग्राम पंचायत परसरामपुर के तीन मजरे हैं। गिद्दहवा, बनगांव व परसरामपुर मजरों के करीब 500 घरों में 2500 से अधिक लोग आबाद हैं। इनमें करीब 1300 मतदाता हैं। जंगल से घिरा होने के नाते यह गांव विकास से कोसों दूर हैं। यहां के लोगों को सड़क, बिजली, आवास, शुद्ध पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाएं नसीब नहीं हैं।
पैरों में चुभते पथरीले रास्ते:
गांव को जाने के लिए लोगों को करीब तीन किलोमीटर जंगल में पथरीले रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। ब्लाक मुख्यालय पहुंचने में महिलाओं, बच्चों, बीमार व गर्भवती को खासा दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। जंगल के बीचोबीच होने से असुरक्षा की भावना ग्रामीणों में रहती है।
ग्रामीण मनीराम, राजमन, सुमित्रा का कहना है कि वर्ष 1984 में गांव में बिजली का खंभा लगाया गया था। कुछ दिन बिजली मिली, लेकिन फिर अंधेरा छा गया। वर्ष 2002 में एक बार फिर से गांव रोशन हुआ, लेकिन बिजली टिक न सकी। गांव में बोरिग नहीं है। अर्रा नाला से खेतों की सिचाई होती है।
नहीं मिल रहा बजट:
ग्राम प्रधान शेखर पांडेय का कहना है कि 14वें व 15वें वित्त का बजट न मिलने से गांव का विकास नहीं हो पा रहा है। गांव की समस्याओं के बारे में आला अधिकारियों को कई बार अवगत कराया जा चुका है। ग्राम पंचायत में सोलर के सहारे उजाला किया जा रहा है। ग्राम पंचायत को अतिरिक्त बजट की दरकार है।