जी हां! यह है बागी बलिया और यही है इसका सच

जनपदीय मतदाताओं का आकड़ा जिले की कुल जनसंख्या-32,39,774 जिले में कुल मतदाता-23,58,406 जिले में

By JagranEdited By: Publish:Sat, 20 Apr 2019 07:41 AM (IST) Updated:Sat, 20 Apr 2019 07:41 AM (IST)
जी हां! यह है बागी बलिया और यही है इसका सच
जी हां! यह है बागी बलिया और यही है इसका सच

जनपदीय मतदाताओं का आकड़ा

जिले की कुल जनसंख्या-32,39,774

जिले में कुल मतदाता-23,58,406

जिले में पुरुष मतदाता-12,93,857

जिले में महिला मतदाता-10,64,678

जिले में अन्य मतदाता-71

विधानसभा- बलिया नगर, बैरिया, फेफना, बांसडीह, रसड़ा, सिकंदपुर, बिल्थरारोड। लवकुश सिंह, बलिया

यूपी के आखिरी छोर पर स्थित बलिया जिले में कहीं जाकर पूछ लें तो बड़े गर्व से लोग कहते हैं इसे सिर्फ बलिया नहीं, बागी बलिया कहें। इसके पीछे कारण यह कि इसी धरती के लाल मंगल पांडेय ने अंग्रेजों की सेना में रहते हुए भी 1857 में बागी बन करारा जवाब दिया था। दूसरा इतिहास यह कि यह जिला देश आजाद होने से पांच वर्ष पूर्व ही कुछ दिनों के लिए अपने को आजाद कर लिया था। धार्मिक ग्रंथों में यह धरती महर्षि भृगु की भूमि कही जाती है। इसके अलावा भी भारतीय राजनीति में इस धरती से कई नाम जुड़े हैं, जिस पर जिले के लोग जरूर गर्व करते हैं, लेकिन वहीं पलट जब इस जिले के विकास की बात आती है तो लोग उबल पड़ते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान स्थापित करने वाले बलिया का सच यही है कि इस धरती के लोगों को अपने महापुरुषों के नाम पर इतराने के अलावा और कुछ भी ऐसा नहीं मिला, जिससे कि वह सुकून भरी जिदगी जी सकें।

विकास के नजरिए से पड़ताल करें तो प्रदेश में सबसे खराब हाल में यहां की एनएच-31 है। बलिया से मांझी घाट तक इस पर सकड़ों बड़े गड्ढे हैं जो सरकार के गड्ढामुक्त सड़कों के फरमान को खारिज कर देते हैं। इसी सड़क के बारे में बीते दिनों ददरी मेले में कार्यक्रम देने पहुंचे कवि डा. कुमार विश्वास ने भी बड़ी बात कही थी। अपनी यादों को साझा करते हुए कहा था कि वह 20 साल पहले भी बलिया आए थे, तब भी और अब भी इस सड़क की दशा में कोई बदलाव नहीं आया। सरकारें आती-जाती रहीं लेकिन बलिया वहीं का वहीं खड़ा रहा, उनकी बात सही थी। लोकसभा चुनाव में हालात तो यह हैं कि यहां कोई भी दल विकास को लेकर जनता पर वोट के लिए दबाव बनाने की स्थिति में नहीं है। हां अब भी बड़े नेता यहां आकर केवल बागी बलिया के नाम से संबोधन शुरू करें, यहां महापुरुषों का बखान कर दें, लोग लहराने लगेंगे, लेकिन इससे धरातल के असल सच पर पर्दा नहीं डाला जा सकता। यहां की मूलभूत सुविधाएं वर्षों से रो रही हैं। ट्रेन की सुविधाओं में भी इस जनपद को उपेक्षा ही मिली है। सरकार द्वारा संचालित योजनाएं भ्रष्टाचार का शिकार हो रही हैं। आज तक राशन कार्ड तक का झमेला खत्म नहीं हो पाया। प्रधानमंत्री आवास, आयुष्मान योजना, आंगनबाड़ी पोषाहार, सड़क निर्माण आदि में तो घालमेल के किस्से हर पल सुनाई देते हैं। शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग ज्यादा बदहाल

जिले में कुल राजकीय इंटर कालेजों की संख्या 30 है। वहीं अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालय 91 और वित्त विहीन विद्यालयों की संख्या 479 है। राजकीय व असाशकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों की स्थिति यह है कि 80 फीसद विद्यालयों में तीन से चार शिक्षकों से काम चलाया जा रहा है। प्राथमिक स्तर पर भी हालत ठीक नहीं हैं। जिले में प्राथमिक स्कूलों की संख्या 2048 है। इसमें अंग्रेजी माध्यम के प्राथमिक विद्यालय 208 चयनित हैं लेकिन शिक्षकों की उपलब्धता जितनी चाहिए, नहीं है। प्राथमिक विद्यालयों में जनपद में 5586 शिक्षकों की अवश्यकता है, जिसमें 1948 शिक्षकों की तैनाती है, वहीं रिक्तियां अब भी 3638 है।

स्वास्थ्य महकमे की ओर चलें तो यहां चिकित्सकों के सृजित पद 203 हैं। वहीं सीएचसी, पीएचसी, न्यू पीएचसी और जिला अस्पताल को जोड़कर कुल सौ अस्पताल हैं, लेकिन जनपद में कुल 148 चिकित्सकों की तैनाती है। जिला अस्पताल में ट्रामा सेंटर पिछली सरकार में ही बना है, लेकिन बाद की सरकार ने भी उसे चालू कराना उचित नहीं समझा। जिसके चलते उसमें रखी करोड़ों की मशीनें धूल फांक रही हैं। कुल मिलाकर जिला मुख्यालय तक पर साधारण उपचार की ही व्यवस्था है। किसी भी गंभीर मरीज के लिए वाराणसी या लखनऊ ही विकल्प है। चुनाव में सभी दलों के लोग गरीबों के हित की बात कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुविधाओं की बदहाली पर वे चुप रहने में ही भलाई समझते हैं।

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