दिल्ली व कोलकाता के परवल का स्वाद चखेंगे यूपी-बिहार के लोग
जागरण संवाददाता बलिया जनपद में गंगा और सरयू के तटवर्ती इलाकों में भारी पैमाने पर परवल क
जागरण संवाददाता, बलिया : जनपद में गंगा और सरयू के तटवर्ती इलाकों में भारी पैमाने पर परवल की खेती होती है। अक्टूबर में ही परवल की बोआई होती है। इस बार बाढ़ के कारण बिहार में परवल के लत्तर नष्ट हो गए हैं। ऐसे में किसान दिल्ली और कोलकाता से मंगा रहे हैं। अब यूपी और बिहार के लोग दिल्ली और कोलकाता के परवल का स्वाद चखेंगे। इससे लागत तो बढ़ रही है लेकिन किसान परवल की खेती करने से पीछे नहीं हट रहे। बलिया में परवल ओडीओपी में भी शामिल हुआ है। सरकार की ओर से परवल को ब्रांड बनाने की तैयारी है। यदि सबकुछ ठीक रहा तो आने वाले दिनों पर बलिया का परवल ब्रांड बनकर विभिन्न रूपों में देश भर में धमाल मचाएगा। सब्जी के अलावा परवल से मिठाई, अचार सहित कई उत्पाद तैयार होंगे। बलिया में ज्यादातर तुमरिया प्रजाति के परवल की खेती होती है। इसका आकार लंबा होता है। कुछ किसान शंखा प्रजाति के परवल की खेती भी करते हैं। इसका आकार लड्डू के सामान गोल होता है। किसान बताते हैं कि तुमरिया के सापेक्ष शंखा कभी भी महंगे रेट में बिकता है, लेकिन इसका उत्पादन तुमरिया से कम होता है। बलिया में लगभग एक हजार एकड़ में परवल की खेती होती है। बाढ़ खत्म होने के बाद ही यह तय हो पाता है कि खेत परवल के लायक हैं या नहीं। बाढ़ के बाद खेतों में पड़ी नई मिट्टी को देखकर ही किसान परवल की खेती की ओर अपना पांव बढ़ाते हैं।
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एक बंडल लत्तर की कीमत पांच हजार : द्वाबा के किसान धनजी यादव ने बताया कि दिल्ली या कोलकाता से परवल के लत्तर मंगाने पर एक बंडल लत्तर की कीमत पांच हजार रुपये पड़ रही है। वहां के लत्तर के फल अच्छे निकल रहे हैं। पिछले साल भी कुछ किसानों ने दिल्ली से ही लत्तर मंगाया था। बिहार में सस्ते रेट में परवल के लत्तर मिल जाते थे, लेकिन बाढ़ के कारण सिवान, गोपालगंज इलाके में बहुत कम परवल के खेत बचे हुए हैं। ऐसे में किसानों को दिल्ली और कोलकाता से ही परवल मंगाने पड़ रहे हैं। एक बंडल लत्तर में 300 पौधे बन पाते हैं। इस तरह एक एकड़़ खेती के लिए लगभग पांच बंडल लत्तर की जरूरत पड़ती है।
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एक एकड़ में लगाते हैं 1300 पौधे :
किसान नथुनी सिंह ने बताया कि एक एकड़ में परवल के लगभग 1300 पौधे लगाए जाते हैं। परवल की खेती के लिए दोमट मिट्टी की जरूरत रहती है। नीचे मिट्टी और ऊपर रेत वाले खतों में उत्पादन और भी अच्छा होता है। अक्टूबर से नंवबर के प्रथम सप्ताह तक परवल की बोआई हो जाती है। मार्च से उत्पादन शुरू हो जाता है। बाजार अच्छा रहा तो प्रति एकड़ मुनाफा भी दो लाख तक हो जाता है।
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छोटे बाजारों के अलावा बाहर भी होती बिक्री : मार्च से जब परवल निकलने शुरू होते हैं तो बलिया के छोटे बाजारों के अलावा बिहार के छपरा और रिविलगंज परवल की बड़ी मंडी लगती है। यहां भारी संख्या में बाहर के व्यापारी पहुंचते हैं और किसानों से परवल खरीद कर उसे बाहर के बाजारों में ले जाते हैं।