रखूखदारों के मामलों में अपने ही आदेश की अनदेखी कर रहे अधिकारी
शासकीय कामकाज में सियासी दखल व अधिकारियों पर दबाव बनवाते मातहतों के रसूखदारी की बातें कुछ नई नही हैं। लेकिन वर्तमान परिवेश में जनपद के प्रशासनिक गलियारों में इसकी संख्या बढ़ती ही चली जा रही है। आलम ये है कि यहां तत्काल प्रभाव से जारी आदेश का मतलब भी महीनों व सालों से है। यानी जिस मामले में अधिकारी ने तत्काल प्रभाव उसके संपादन के आदेश दिए हों उसके क्रियान्वयन में भी महीनों या सालों की देरी कोई खास महत्व नहीं रखती।
जागरण संवाददाता, बांसडीहरोड (बलिया): शासकीय कामकाज में सियासी दखल व अधिकारियों पर दबाव बनाते मातहतों के रसूखदारी की बातें कुछ नई नही हैं लेकिन वर्तमान परिवेश में जनपद के प्रशासनिक गलियारों में इसकी संख्या बढ़ती ही चली जा रही है। आलम यह है कि यहां तत्काल प्रभाव से जारी आदेश का मतलब भी महीनों व सालों से है। यानी जिस मामले में अधिकारी ने तत्काल प्रभाव उसके संपादन के आदेश दिए हों उसके क्रियान्वयन में भी महीनों या सालों की देरी कोई खास महत्व नहीं रखती।
बानगी के तौर पर विगत 28 जून को जिला पंचायत राज अधिकारी ने दुबहड़ ब्लाक में तैनात एक ग्राम पंचायत अधिकारी के रेवती विकास खंड में स्थानांतरण के आदेश जारी किए। साथ ही उक्त आदेश में यह भी उल्लेखित किया गया कि यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होगा। आदेश दिए जाने के बाद यह आदेश जिलाधिकारी से लेकर मुख्य विकास अधिकारी व तमाम समस्त संबंधित अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत हो गया लेकिन जब तक इसके क्रियान्वयन की रूपरेखा आगे बढ़ती तब तक मामले में ग्रापं अधिकारी के रसूख ने ऐसा दखल दिया कि तत्काल प्रभाव से जारी आदेश सरकारी दफ्तरों के कागजो की भीड़ में जाने कहां खो गया और संबंधित अधिकारी अपने पद पर अब तक बदस्तूर बने हुए हैं। ये तो महज एक बानगी भर है ऐसे और दर्जनों आदेश इन्ही कार्यालयों में मेज और आलमारियों की शोभा बढ़ा रहे है। बस अंतर इतना है कि आदेश जारी करने वाले अधिकारी दूसरे हैं। जो या तो खुद के जारी किए गए आदेश के प्रति गंभीर नही हैं या अपने मातहतों के रसूख के आगे घुटने टेक दे रहे हैं। दर्जनों स्थानांतरण आदेशों पर लगा है रसूख का ग्रहण
पंचायत राज कार्यालय से लेकर जिला विकास कार्यालय से निकले ऐसे दर्जनों तत्काल प्रभाव के आदेश कार्यालयों की धूल फांक रहे हैं। जबकि जिनके सिर इन आदेशों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी थी वे खुद स्थानांतरित सचिवों के रसूख के आगे हथियार डाल चुके हैं। मामला सिर्फ एक विकास खंड का न होकर पूरे जनपद का है। बहुत से लोगों का अन्यत्र स्थानांतरण हुआ है, लेकिन बहुत से आदेश अब तक अपने क्रियान्वयन की बाट जोह रहे हैं। जबकि खुद के स्थानांतरण आदेश को अपने रसूख के दम पर ठंडे बस्ते में डालकर यही सचिव इन्हीं अधिकारियों के सामने गुमान से फुले हुए टहल रहे हैं। लिहाजा इस बात का अंदाजा लगाना सहज है कि जो अधिकारी खुद के आदेश का क्रियान्वयन कराने में सक्षम नही हैं। वे इन्हीं मातहतों से काम कैसे करा पाएंगे।