मैं तुम्हारी पीठ पर बैठा हुआ घाव हूं, जो तुम्हें दिखेगा नहीं..

जागरण संवाददाता बलिया बलिया की भूमि धार्मिक ²ष्टिकोण से तो धनी है ही यहां के साहित्यका

By JagranEdited By: Publish:Sat, 16 Oct 2021 07:33 PM (IST) Updated:Sat, 16 Oct 2021 07:33 PM (IST)
मैं तुम्हारी पीठ पर बैठा हुआ घाव हूं,  जो तुम्हें दिखेगा नहीं..
मैं तुम्हारी पीठ पर बैठा हुआ घाव हूं, जो तुम्हें दिखेगा नहीं..

जागरण संवाददाता, बलिया : बलिया की भूमि धार्मिक ²ष्टिकोण से तो धनी है ही, यहां के साहित्यकारों ने भी अपनी विद्वता के दम पर राष्ट्रीय फलक पर परचम लहराया है। उन्हीं में से एक नाम है आलोचक व कथाकार दूधनाथ सिंह का। उन्होंने अपनी कहानियों के जरिए आम-ओ-खास के दिलों पर राज किया। उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचना सहित सभी विधाओं में लेखन किया। उनकी 17 अक्टूबर को यानी आज जयंती है। वह हिदी के ऐसे कवि-कथाकार-आलोचक थे जो सिर्फ शब्दों में ही डूबे रहना चाहते थे। उनके शब्दों में जीवन की कितनी घनी संवेदना थी, उनकी इन पंक्तियों से स्वत: स्पष्ट हो जाती है.मैं तुम्हारी पीठ पर बैठा हुआ घाव हूं, जो तुम्हें दिखेगा नहीं। मैं तुम्हारी कोमल कलाई पर उगी हुई धूप हूं, अतिरिक्त उजाला, •ारूरत नहीं जिसकी..। अपनी कविताओं से सामाजिक सरलता की अनुभूति कराने वाले दूधनाथ सिंह ने जब भी लिखा, जो भी लिखा, सार्थक लिखा। उन्होंने अपनी रचनाओं से साठ के दशक में भारतीय परिवारों की सामाजिक, आर्थिक, नैतिक और मानसिक स्थिति को मजबूती से उभारा। सभी क्षेत्रों में पैदा हुई समस्याओं को खुली चुनौती दी।

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--बलिया के सोबंथा गांव में हुआ जन्म

दूधनाथ सिंह का जन्म 17 अक्टूबर 1936 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सोबंथा गांव में हुआ था। इनके पिता देवकीनंदन सिंह सामान्य किसान थे, इसलिए परिवार का भरण-पोषण खेती के जरिए ही होता था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बगल के गांव नरहीं में मौजूद एक प्राथमिक विद्यालय से शुरू हुई थी। गांव में उनके परिवार का अब कोई नहीं रहता। एक मकान है जो बंद पड़ा है। गांव के लोगों ने बताया कि पढ़ाई में अधिक रूचि होने के कारण वह घर से दूर भी चले जाते थे। गांव की मिट्टी से गहरा लगाव था। हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की शिक्षा चितबड़ागांव के मर्चेंट इंटर कालेज से हासिल की। बलिया के सतीशचंद्र कालेज से स्नातक की उपाधि ली। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक की डिग्री ली और कोलकाता विश्वविद्यालय में अध्यापक बन गए। कुछ दिनों बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर सुशोभित हुए। अध्यापन के कार्य के साथ-साथ उन्होंने कई प्रमुख कृतियों की रचना की।

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--यम-गाथा नाटक पर बनी थी फिल्म

उनका चर्चित नाटक यम-गाथा है। इस पर वर्ष 2007 में समर नामक फिल्म भी बनी थी। इसमें मशहूर रंगमंच अभिनेता सुखान बरार ने इंद्र की भूमिका निभाई थी। यह नाटक एक मिथक पर आधारित है। इसका कथानक व्यापक, सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों, सामंतवाद नक्सलवाद, भेदभाव पर आधारित थी।

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--मिले कई सम्मान

दूधनाथ सिंह को कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले हैं उनमें भारतेंदु सम्मान, कथाक्रम सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, शरद जोशी स्मृति सम्मान प्रमुख हैं। इसके अलावा उन्हें कई कई राज्यों का हिदी का शीर्ष सम्मान भी मिला है।

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--साहित्यकार का निधन

प्रसिद्ध साहित्याकर दूधनाथ सिंह का निधन 12 जनवरी 2018 को लंबी बीमारी के बाद हार्ट अटैक से हुआ था। वह प्रोस्टेट कैंसर से भी पीड़ित थे। कैंसर होने के कारण उनका एम्स में इलाज चल रहा था। दूधनाथ सिंह की आखिरी इच्छा थी कि उनकी आंखें मेडिकल कालेज को दान की जाएं जिसे उनके स्वजनों ने पूरा किया।

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--बलिया से रहता था लगाव

बलिया के साहित्यकार डा. नवचंद्र तिवारी ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन के उत्तरार्ध में लेखन को नई धार दी थी। अपनी माटी के लोगों से उनका गहरा लगाव था। वे राष्ट्रीय स्तर पर अपो ज्वलंत विचारों के लिए जाने जाते थे। उन्होंने साहित्य जगत में अलग छाप छोड़ी है। वे स्वयं में एक नई विधा के संपूर्ण युग थे। धन्य है यह बलिया की भूमि जो समय-समय पर ऐसे विद्वान साहित्यकारों को जन्म देती रहती है।

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