मेड़ पर करें अरहर की खेती, पाएं दो गुना लाभ
दलहनी फसलें खाद्यान्न फसलों की अपेक्षा अधिक सूखारोधी होती हैं इसलिये
जागरण संवाददाता, बलिया : दलहनी फसलें खाद्यान्न फसलों की अपेक्षा अधिक सूखारोधी होती हैं इसलिये सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भी अधिक उपज मिलती है। खरीफ की दलहनी फसलों में अरहर प्रमुख है। उन्नत तकनीक से इसका उत्पादन दो गुना किया जा सकता है। इसके लिए किसानों को मेड़ पर बोआई करनी चाहिए। अरहर के लिए भूमि बलुई, दोमट या दोमट तथा पीएच मान 7-8 के बीच हो। वर्षा प्रारंभ होने के साथ खेती शुरू कर देनी चाहिए। देर से पकने वाली प्रजातियों का बीज 15 किलो ग्राम प्रति हेक्टेअर की दर से बोना चाहिए। इसके साथ तिल, बाजरा, ऊड़द एवं मूंग की भी फसलें हैं। बोआई की विधि
मेड़ पर बोआई ज्यादा लाभदायक है। बारिश से फसलें खराब नहीं होतीं। अब कतारों के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें। पौध अंतराल 20-30 सेमी हो। प्रमुख प्रजातियां
अरहर की मुख्य प्रजातियां अमर, आजाद, नरेंद्र अरहर-1, नरेंद्र अरहर-2, पीडीए-11, मालवीय विकास, मालवीय चमत्कार एवं आइपीए 203 है। पकने की अवधि 250-270 दिन है। उपज क्षमता 25-32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। खरीफ की दलहनी फसलों में अरहर का स्थान प्रमुख है। उन्नत तकनीक से उत्पादन दो गुना हो सकता है। मेड़ पर बोआई करने से दो गुना फसल होती है।
- प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, कृषि विज्ञान केंद्र सोहांव